ब्लड कैंसर का इलाज खोजने में सहायक हो सकती है 'एसरिज', पढ़िए पूरी खबर
शोधकर्ता मनीषा एस. ईनामदार ने कहा कि स्टेम सेल प्रोटीन की मदद से धीरे-धीरे विकास करने वाले विभिन्न ब्लड कैंसर की टार्गेटेड थेरेपी ईजाद की जा सकती है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। शोधकर्ताओं ने ऐसे स्टेम सेल प्रोटीन की पहचान की है, जो ब्लड कैंसर का इलाज खोजने में मददगार हो सकता है। चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया है कि एसरिज कहा जाने वाला स्टेम सेल प्रोटीन स्टेम कोशिकाओं में ट्यूमर सप्रेशर पी53 का अच्छा रेगुलेटर है। बेंगलुरु स्थित जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च की शोधकर्ता मनीषा एस. ईनामदार ने कहा कि इसकी मदद से धीरे-धीरे विकास करने वाले विभिन्न ब्लड कैंसर की टार्गेटेड थेरेपी ईजाद की जा सकती है।
विज्ञान पत्रिका ‘ब्लड’ में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि कैंसर के विकास के लिए पी-53 का निष्क्रिय होना जरूरी है। ऐसे में इस ट्यूमर सप्रेशर को लक्ष्य करते हुए कैंसर से निपटने के लिए टार्गेटेड थेरेपी का रास्ता खुल सकता है।
जानें कैसे होता है ब्लड कैंसर
आमतौर पर ब्लड कैंसर होने के कई कारण हो सकते हैं। ल्यूकीमिया सबसे आम ब्लड कैंसर है। ल्यूकीमिया होने पर कैंसर के सेल्स शरीर के रक्त बनाने की प्रक्रिया में दखल देने लगते हैं। ल्यूकीमिया रक्त के साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) पर भी हमला कर देता है।
ब्लड कैंसर के लक्षण
ब्लड कैंसर रोगी के रक्त, अस्थि मज्जा और लसीका प्रणाली में होता है। ब्लड कैंसर की जल्द पहचान के लिए जरूरी है कि इसके लक्षणों को पहचाना जाए और जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क कर इलाज शुरू किया जाए। आइए जानें ब्लड कैंसर को पहचानने के लिए कुछ खास लक्षणों के बारे में।
थकान महसूस होना
ब्लड कैंसर के ज्यादातर मामलों में रोगी को थकान और कमजोरी महसूस होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्य कम होने लगती है जिससे व्यक्ति में खून की कमी हो जाती है।
बार-बार संक्रमण की चपेट में आना
रक्त कैंसर से ग्रस्त व्यक्ति बार-बार संक्रमण की चपेट में आ जाता है। जब शरीर में ल्यूकीमिया के सेल विकसित होते हैं तो रोगी के मुंह, गले, त्वचा, फेफड़ो आदि में संक्रमण की शिकायत देखी जा सकती है।
वजन गिरना
जिन लोगों को कैंसर होता है उनका वजन असामान्य रूप से कम होने लगता है। अगर बिना किसी प्रयास के शरीर का वजन ज्यादा कम हो जाये तो इसे कैंसर का प्राथमिक लक्षण के रूप में देखा जा सकता है।
अचानक बुखार होना
बुखार कैंसर का एक सामान्य लक्षण होता है। कैंसर मरीज की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, इसलिए मरीज को अक्सर बुखार रहने लगता है। ब्लड कैंसर, ल्यूकीमिया इत्यादि में अक्सर बुखार के लक्षण नजर आते हैं।
ज्यादा ब्लीडिंग होना
शरीर में ल्यूकीमिया सेल्स का असामान्य निर्माण अस्थि मज्जा को स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को बनाने से रोकता है जैसे प्लेटलेट्स। प्लेटलेट्स कोशिकाओं का ही एक हिस्सा होता है जो चोट लगने पर ज्यादा रक्त आने से रोकता है। लेकिन इसकी कमी के कारण रोगी के नाक से, मासिक धर्म के दौरान, मसूड़ों आदि से ज्यादा ब्लीडिंग की समस्या देखी जा सकती है।
हड्डियों और जोड़ों में दर्द
हड्डियों और जोड़ों में दर्द होना सिर्फ अर्थराइटिस ही नहीं रक्त कैंसर का भी लक्षण हो सकता है। रक्त कैंसर अस्थि मज्जा में होने वाला रोगा है जो कि हड्डियों और जोड़ों के आसापास ज्यादा मात्रा में पाया जाता है जैसे श्रोणी क्षेत्र और उरोस्थि क्षेत्र। यह मैरो में सफेद रक्त कोशिकाओं की मात्रा बढ़ जाने के कारण ऐसा होता है।
पेट की समस्यायें
असामान्य सफेद रक्त कोशिकाएं लिवर में जमा होने से एकत्र हो जाती हैं जिससे पेट में सूजन और अन्य समस्याएं हो जाती है। इस तरह की सूजन से आपकी भूख भी कम हो सकती है। थोड़ा सा खाने पर ही आपका पेट भरा लगने लगता है। ऐसे में आपको डॉक्टर से जरूर संपर्क करना चाहिये।
स्टेम सेल से ब्लड कैंसर का इलाज
स्टेम सेल्स अस्थि मज्जा की रक्त बनाने वाली कोशिकाएं हैं ये लगातार धमनियों व शिराओं में नई रक्त कोशिकाओं को विभाजित करता है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कीमोथेरेपी व रेडिएशन थेरेपी को मजबूत बनाने में सक्षम है जिससे ल्यूकीमिया के सेल्स को खत्म किया जा सके। क्षतिग्रस्त बोन मेरो को स्टेम सेल से ट्रांसप्लांट कर देते हैं जिससे नई रक्त कोशिकाएं बन सकें।
आईए जानें ट्रांसप्लांट के लिए स्टेम कोशिकाएं कहां से मिलती हैं
- अस्थि मज्जा
- सफेद रक्त कोशिकाओं
- अंबिकल कॉर्ड कोशिका
ये कोशिकाएं सावधानीपूर्वक स्टोर करके रखी जाती है जब तक रोगी का ल्यूकीमिया को खत्म करने के लिए हाई डोज की दवाएं दी जाती हैं। यह ट्रांसप्लांट कीमोथेरेपी के तीन दिन के कोर्स के बाद किया जाता है।
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट दो तरह का होता है।
ओटोलोगस एससीटी
ओटोलोगस स्टेम सेल ट्रांसप्लांट को ओटोलोगस बोन मेरो ट्रांसप्लांट के नाम से भी जाना जाता है। इसमें रोगी के अस्थि मज्जा से ही स्टेम सेल निकाल कर ही उसको ट्रांसप्लांट करते हैं। स्टेम कोशिकाओं के ट्रांसप्लांट के लिए इस तकनीक का उपयोग बहुत कम होता है क्योंकि इसमें सामान्य कोशिकाओं के ल्यूकीमिया से प्रभावित होने का खतरा होता है।
ऐलोजेनिक एससीटी
ऐलोजेनिक एससीटी को एलोजेनिक बोन मेरो ट्रांसप्लांट के नाम से भी जाना जाता है। इसमें किसी अन्य व्यक्ति के स्वस्थ सेल्स मिला करके रोगी के क्षतिग्रस्त सेल्स से स्थानांतरित कर देते हैं। इसके लिए रोगी के परिवार वालों में से ही किसी व्यक्ति को चुना जाता है क्योंकि उनके सेल्स रोगी के सेल्स से मिलते हुए होते हैं। एलोजेनिक डोनर सेल्स रोगी को ल्यूकीमिया सेल्स से लड़ने में मदद करते हैं।