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इस बस्ती में सालभर गढ़ी जाती हैं दुर्गा प्रतिमाएं, पूरी दुनिया मानती है कुम्हार टोली का लोहा

कोलकाता की कुम्‍भार टोली के मूर्तिकारों द्वारा बसाई गई इस बस्ती ने मूर्तिकला को देश ही नहीं विश्व पटल पर नया आयाम दिया है। इसे 19वीं सदी की शुरुआत में मूर्तिकारों ने ही बसाया था।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 09:13 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 06:30 PM (IST)
इस बस्ती में सालभर गढ़ी जाती हैं दुर्गा प्रतिमाएं, पूरी दुनिया मानती है कुम्हार टोली का लोहा

विनय कुमार, कोलकाता। कोलकाता का दुर्गोत्सव विश्वविख्यात है। यहां की 90 फीसद दुर्गा प्रतिमाओं की आपूर्ति 200 साल पुरानी कुम्हार टोली बस्ती करती है। मूर्तिकारों द्वारा बसाई गई इस बस्ती ने मूर्तिकला को देश ही नहीं, विश्व पटल पर नया आयाम दिया है। इस त्योहार के लिए भी मूर्तिकारों ने पूरे साल मेहनत कर करीब दस हजार मूर्तियों को श्रद्धा और आस्था के गहरे रंगों से गढ़ा है। ये प्रतिमाएं देश-विदेश के विविध पूजा पंडालों में सुशोभित होंगी।

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कभी कम नहीं हुई मूर्तियों की मांग 

पिछले पांच दशकों से मूर्तियां तैयार कर रहे कुम्हार टोली के 81 वर्षीय मूर्तिकार पाल ने बताया कि तकरीबन तीन एकड़ में फैली इस बस्ती को 19वीं सदी की शुरुआत में मूर्तिकारों द्वारा ही बसाया गया था। इसने इस विधा में कई प्रतिमान भी गढ़ें, और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। न कभी मूर्तियों की मांग कम हुई और ना ही लोगों का हम पर भरोसा। बीते इन सालों में काफी कुछ बदल गया। हां, हम जहां थे, वहीं खड़े रह गए..।

90 फीसद प्रतिमाओं की आपूर्ति करती है बस्‍ती 

पाल ने बताया कि कोलकाता में होने वाली दुर्गापूजा की 90 फीसद प्रतिमाओं की आपूर्ति अकेले यह बस्ती ही करती आई है। यहां प्रत्येक वर्ष करीब दस हजार दुर्गा प्रतिमाएं तैयार होती हैं। लेकिन इन प्रतिमाओं को किन परिस्थितियों में कितनी चुनौतियों के बीच तैयार किया जाता है, ये आम लोग नहीं जानते। कुम्हार टोली की सबसे बड़ी दिक्कत यहां का अव्यवस्थित ढांचा है।

माटी की मूर्तियों में डालते हैं जान

संकरी गली में टाट के बने वर्कशाप और प्लास्टिक के आवरण तले सालभर सैकड़ों मूर्तिकार माटी से मूर्तियों में जान डालते हैं। बारिश के दिनों में छत से टपक रहे पानी के बीच मूर्तियां तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं है। पहले यहां की गलियां इतनी संकरी नहीं थीं। एक जमाने में यहां खुला मैदान हुआ करता था, जहां लोग बांस के घर में मूर्तियां बनाते थे। समय बीतता गया और मूर्तिकार आकर यहां बसते गए, जिससे कभी खुशगवार लगने वाला मैदान तंग गलियों में तब्दील होता चला गया..।

ऐतिहासिक बस्ती बदहाली का शिकार

तंग गलियां, टाट के बने वर्कशॉप, बदहाल सड़कें और हजारों निर्माणाधीन मूर्तियां, कोलकाता स्थित कुम्हार टोली की अब यही पहचान है। दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बनाने वाली मूर्तिकारों की यह ऐतिहासिक बस्ती बदहाली का शिकार है। स्थानीय मूर्तिकारों की मानें तो बस्ती की बदहाली के लिए बंगाल का बदलता मौसम और राज्य सरकार की उदासीनता, दोनों ही जिम्मेदार हैं। ऐसे में मूर्तिकारों ने अपनी समस्याओं से अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अवगत कराने की सोची है। इस बाबत वे जल्द ही उन्हें पत्र लिखेंगे।

पीएम मोदी से लगाएंगे गुहार 

कुम्हार टोली प्रगतिशील मृदा शिल्पसाज समिति के अध्यक्ष कालीचरण पाल कहते हैं, वाममोर्चा के शासनकाल में कुम्हार टोली के मूर्तिकारों के लिए हब तैयार करने की परियोजना बनी थी। उस समय बुद्धदेव भट्टाचार्य बंगाल के मुख्यमंत्री थे। परियोजना की अनुमानित लागत 60 करोड़ रुपये थी, जो बाद में बढ़ाकर 70 करोड़ की गई, लेकिन काम कभी शुरू नहीं हुआ। पिछले साल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी आश्वासन दिया, लेकिन अब तक राज्य सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई है। अब हम पीएम मोदी से गुहार लगाएंगे। उम्मीद है कि वे हमारी समस्याओं का निदान करेंगे। पूजा बाद उन्हें पत्र लिखा जाएगा। 


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