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मासिक चक्र से जुड़ी स्वास्थ्य योजनाओं के लिए राज्य जिम्मेदार, बेहतर स्वच्छता के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध

केन्द्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह बच्चियों और किशोरियों को मासिक चक्र के दौरान बेहतर स्वच्छता मुहैया कराने को प्रतिबद्ध है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि उसने जागरुकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। फाइल फोटो।

By AgencyEdited By: Sonu GuptaPublished: Sat, 01 Apr 2023 11:32 PM (IST)Updated: Sat, 01 Apr 2023 11:32 PM (IST)
मासिक चक्र से जुड़ी स्वास्थ्य योजनाओं के लिए राज्य जिम्मेदार, बेहतर स्वच्छता के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध
मासिक चक्र से जुड़ी स्वास्थ्य योजनाओं के लिए राज्य जिम्मेदार।

नयी दिल्ली, पीटीआई। केन्द्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह बच्चियों और किशोरियों को मासिक चक्र के दौरान बेहतर स्वच्छता मुहैया कराने को प्रतिबद्ध है। हालांकि स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है क्योंकि जन स्वास्थ राज्य सरकार का विषय है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि उसने जागरुकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं।

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जन स्वास्थ्य राज्य का विषय

मंत्रालय ने कहा कि यह सूचित किया जाता है कि जन स्वास्थ्य राज्य का विषय है और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। मंत्रालय ने कहा, "मासिक चक्र से जुड़ी स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करने के लिए केन्द्र सरकार या उसकी संस्थाएं जिम्मेदार नहीं हैं। हालांकि इन योजनाओं को लागू करना राज्यों और उनकी एजेंसियों की जिम्मेदारी है।"

बच्चियों को मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने की मांग

मंत्रालय ने कहा कि केन्द्र सरकार किशोरियों और बच्चियों को मासिक चक्र के दौरान बेहतर स्वच्छता मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है और उन्हें आवश्यक संसाधान उपलब्ध करा रही है। मालूम हो कि केंद्र द्वारा यह हलफनामा कांग्रेस नेता जया ठाकुर की जनहित याचिका पर दाखिल किया गया था। ठाकुर ने अदालत से अनुरोध किया था कि वह देशभर के स्कूलों में पढ़ने वाली छठवीं से 12वीं कक्षा तक की बच्चियों को मुफ्त में सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने का निर्देश जारी करे।

बच्चियों को नहीं मिलती है सुरक्षित स्वच्छता सुविधाएं

मंत्रालय ने कहा कि मासिक चक्र और मासिक चक्र के दौरान की बातें वर्जना से भरी पड़ी हैं। इस दौरान भारत में बच्चियों से लेकर महिलाओं तक पर तमाम सामाजिक-सांस्कृतिक पाबंदियां होती हैं और ना सिर्फ सैनिटरी पैड तक उनकी पहुंच सीमित है, बल्कि उन्हें सुरक्षित स्वच्छता सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं।

गरीब पृष्ठभूमि से आने वाली लड़कियों को होती है परेशानी

मालूम हो कि ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा है कि गरीब पृष्ठभूमि से आने वाली 11 से 18 साल की लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने में भी परेशानी होती है और संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन होता है।


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