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संकट में फंसे श्रीलंका ने भारत से मांगी मदद, कोलंबो जा रहे विदेश सचिव करेंगे जरूरत का आकलन

श्रीलंका की स्थिति बेहद खराब है और इससे उसका रवैया भी बदला नजर आ रहा है। कभी चीन के साथ रिश्तों को लेकर बहुत गर्मजोशी दिखाने वाले पीएम महिंदा राजपक्षे की सरकार को न तो चीन की तरफ से मदद मिल रही है और न ही पश्चिमी देशों से।

By TaniskEdited By: Published: Fri, 01 Oct 2021 10:06 PM (IST)Updated: Fri, 01 Oct 2021 10:06 PM (IST)
चीन व पश्चिमी देशों से मदद नहीं मिलने से श्रीलंका हलकान।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कोरोना की वजह से पड़ोसी देश श्रीलंका की स्थिति बेहद खराब है और इस वजह से उसका रवैया भी बदला नजर आ रहा है। कभी चीन के साथ रिश्तों को लेकर बहुत गर्मजोशी दिखाने वाले पीएम महिंदा राजपक्षे की सरकार को न तो चीन की तरफ से मदद मिल रही है और न ही पश्चिमी देशों से। ऐसे में श्रीलंका सरकार ने विगत कुछ हफ्तों में भारत को एक तरह से त्राहिमाम संदेश भेजा है। विदेश सचिव हर्ष शृंगला शनिवार से श्रीलंका यात्रा के दौरान भारत की तरफ से दी जाने वाली संभावित मदद का आकलन करेंगे। साथ ही वहां के हुक्मरानों को यह बात भी साफ तौर पर बताया जाएगा कि उन्हें भारत के हितों का भी ख्याल रखना होगा। भारत की तरफ से विदेशी मुद्रा एक्सचेंज से लेकर अनाज व दवाइयों तक की मदद देने का एलान अगले कुछ दिनों के भीतर हो सकता है।

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विदेशी पर्यटकों और विदेशी मदद पर आश्रित श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पिछले पांच दशकों के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। कोरोना महामारी से भी यह देश बुरी तरह से ग्रसित है। एक तरफ यूरोपीय देश उस पर राजनीतिक दबाव बना रहे हैं तो दूसरी तरफ चीन की तरफ से भी एक सीमा के बाद ज्यादा मदद देने से इन्कार किया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक चीन श्रीलंका की खस्ताहाल वित्तीय स्थिति को समझ रहा है और यह जानता है कि उसकी तरफ से दी जाने वाली वित्तीय मदद को वह चुकाने की स्थिति में नहीं होगा। श्रीलंका भी एक सीमा के बाद चीन के आर्थिक दबाव में नहीं आना चाहता। पिछले दिनों अमेरिका में विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात के दौरान श्रीलंका के विदेश मंत्री जीएस पीरिस ने भारतीय मदद पर चर्चा की। इसके बाद ही भारत ने विदेश सचिव श्रृंगला को वहां का आकलन के लिए भेजने का फैसला किया है।

भारत के हितों का रखना होगा ख्याल

सूत्रों ने कहा कि श्रीलंका चीन के साथ अपने रिश्ते को जैसी मर्जी हो वैसा रखे लेकिन हम बस यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वहां भारतीय हितों का भी ख्याल रखा जाए। वहां भारत के हितों के विपरीत जो काम हुए हैं उसे सुधारना होगा। अच्छी बात यह है कि म¨हदा राजपक्षे सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री यह समझ रहे हैं कि भारत के साथ बेहतर रिश्तों के बिना उनके देश का भला नहीं होने वाला। भारत वहां ऊर्जा क्षेत्र में काम करना चाहता है खास तौर पर अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में। लंबी अवधि में भारत श्रीलंका में बड़े पैमाने पर सोलर व गैस परियोजनाओं पर काम करना चाहता है और वहां से उत्पादित बिजली को आयात भी करना चाहता है। भारत रक्षा क्षेत्र में, आतंकवाद के खिलाफ और सामुद्रिक सुरक्षा के क्षेत्र में वहां की सरकार के साथ करीबी तौर पर काम करना चाहता है। इन सभी मुद्दों पर दोनों देशों के बीच लंबे समय से कोई वार्ता नहीं हुई है। इस बारे में विदेश सचिव की यात्रा के दौरान बात होगी।

ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल पर होगी बात

भारतीय विदेश सचिव की तरफ से कोलंबो पोर्ट पर स्थित ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल का मुद्दा भी उठाया जाएगा जो भारत व जापान आपसी सहयोग से वहां लगाने चाहते थे। श्रीलंका सरकार ने उसे रद कर दिया था और इसके पीछे चीन का हाथ माना जाता है। हालांकि शुक्रवार को निजी क्षेत्र के अदाणी समूह ने श्रीलंका की सरकारी कंपनी पोर्ट अथारिटी के साथ पोर्ट के पश्चिमी हिस्से में वेस्टर्न कंटेनर टर्मिनल बनाने का समझौता किया। एक भारतीय कंपनी को वहां कंटेनर बनाने का ठेका मिलने को एक सकारात्मक कदम के तौर पर देखा जा रहा है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों कहना है कि इस समझौते के बावजूद ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल का मुद्दा श्रीलंका के साथ कूटनीतिक स्तर पर उठता रहेगा।


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