गंगा को स्वच्छ बनाने की मुहिम, अब तक कईयों ने किया अनशन तो कई गवां चुके हैं जान
स्वामी शिवानंद के अनुसार बदरीनाथ में साधना के दौरान वर्ष 1994 में उन्हें हरिद्वार में गंगा तट पर मातृसदन की स्थापना का ख्याल आया। वह हरिद्वार पहुंचे 1997 में जगजीतपुर में मातृसदन आश्रम की स्थापना की।
नई दिल्ली जागरण स्पेशल। गंगाद्वार हरिद्वार के जगजीतपुर (कनखल) में स्थापित मातृसदन आश्रम अपने अविरल एवं निर्मल गंगा आंदोलन को लेकर आज देश-दुनिया की सुर्खियों में है। इसकी स्थापना गंगा की अविरलता, निर्मलता और पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के उद्देश्य से वर्ष 1997 में स्वामी शिवानंद सरस्वती ने की थी। आश्रम में निवास करने वाले सभी संन्यासी अपनी न्यूनतम जरूरतों के अनुरूप साधना-ध्यान में लीन रहते हैं। स्वामी शिवानंद सरस्वती के अनुसार, इसे ही सत्याग्रह कहा जाता है और मातृसदन इसी में विश्वास करता है। हालांकि, मातृसदन से विवाद भी जुड़े रहे, लेकिन शिवानंद इनकी परवाह किए बिना अपने अभियान को जारी रखे हुए हैं।
स्वामी शिवानंद के हरिद्वार पहुंचने की कहानी भी बड़ी रोचक हैं। कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान विषय में परास्नातक करने के बाद वह शोधकर्ता छात्र के रूप में वहीं अध्यापन करने लगे। इस दौरान वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए खाली समय में साधना में भी लीन रहते थे। अध्यात्म के रास्ते पर चलते हुए उन्हें एक दिन विश्वकल्याण के निमित्त ऋषिकेश में प्रवास का विचार आया और सब-कुछ छोड़कर रीते हाथ ट्रेन से ऋषिकेश के लिए रवाना हो गए। यहां पहुंचकर उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया और साधना के लिए बदरीनाथ चले गए।
स्वामी शिवानंद के अनुसार बदरीनाथ में साधना के दौरान वर्ष 1994 में उन्हें हरिद्वार में गंगा तट पर मातृसदन की स्थापना का ख्याल आया। वह सीधे हरिद्वार पहुंचे और यहां मायादेवी मंदिर में साधना करते हुए वर्ष 1997 में जगजीतपुर में मातृसदन आश्रम की स्थापना की। आश्रम में साधनारत रहते हुए उन्होंने गंगा की दुर्दशा, उसमें जा रही गंदगी और तटों पर हो रहे खनन को नजदीक से देखा। फिर तो मातृसदन ने तप, सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य की शक्ति के आधार पर गंगा की अविरलता, निर्मलता और पवित्रता को अक्षुण्ण रखना अपना ध्येय बना लिया।
17 बार अनशन कर चुके स्वामी शिवानंद
मातृसदन पर्यावरण रक्षा और गंगा रक्षा के लिए 20 वर्षों में 50 से अधिक बार अनशन (तप) कर चुका है। स्वयं मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती अब तक 17 बार तप कर चुके हैं। वह 2012 में छह अगस्त से 10 सितंबर तक 36 दिन तपस्यारत रहे। 2015 में तप के दौरान उन्होंने छह दिन तक जल, नींबू, नमक और शहद भी त्याग कर दिया था।
सभी मौतों को हत्या करार देता है मातृसदन
गंगा रक्षा के लिए संत स्वामी निगमानंद ने 114 दिन के अनशन के बाद देह त्यागी थी, जबकि स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने 112 दिन के अनशन के बाद देह त्यागी। स्वामी गोकुलानंद ने कालाढूंगी (नैनीताल) में वर्ष 2013 में देह का त्याग किया। मातृसदन ने इन सभी मौतों को हत्या करार देते हुए मुकदमे दर्ज कराए। हालांकि, साक्ष्यों के अभाव में सभी मुकदमे खारिज हो गए।
अब तक जिन्होंने किया अनशन
1998 से लेकर अब तक अनशन करने वाले संतों में स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी गोकलानंद सरस्वती, स्वामी निखिलानंद सरस्वती, ब्रह्मचारी दिव्यानंद, ब्रह्मचारी मनोहर दास, ब्रह्मचारी नरेशानंद, स्वामी गुणानंद सरस्वती, स्वामी सच्चिदानंद, निगमानंद सरस्वती, ब्रह्मचारी दयानंद, ब्रह्मचारी यजनानंद, स्वामी पूर्णानंद और स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद शामिल हैं। वर्तमान में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद और पुण्यानंद का संघर्ष जारी है।
विवादों से रहा है नाता
मातृसदन का विवादों से भी नजदीकी रिश्ता रहा है। खासकर गंगा रक्षा के मुद्दे पर सरकार, शासन-प्रशासन और गंगा एवं उसकी सहायक नदियों में हो रहे वैधअवैध खनन को लेकर स्टोन क्रशर मालिकों, खनन माफियाओं और खनन कार्य में लगे लोगों को लेकर विवाद उभरते रहे हैं। इसके लिए मातृसदन को कई बार भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा। मातृसदन पर अक्सर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वह सिर्फ सरकारी पट्टे पर होने वाले खनन का ही विरोध करता है। यही नहीं, उसके ऊपर आध्यात्मिक संस्था होने के बावजूद किसी भी तरह के सनातनी कार्यक्रमों का आयोजन न करने का भी आरोप है। हालांकि, मातृसदन इससे इत्तेफाक नहीं रखता। स्वामी शिवानंद के अनुसार मातृसदन किसी भी सरकारी कार्य का विरोध नहीं करता। वह तो बस पर्यावरण और गंगा रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है। उसका विरोध करने वाले वही लोग हैं जो गंगा को निर्मल, अविरल और पवित्र नहीं देखना चाहते।
गंगा रक्षा को प्राण त्यागने वाले संत
स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल)
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल वैज्ञानिक और प्रख्यात पर्यावरणविद होने के साथ ही संत के रूप में भी प्रसिद्ध रहे। 20 जुलाई 1932 को मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) के कांधला कस्बे में जन्मे जीडी अग्रवाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज (अब आइआइटी) से सिविल व पर्यावरणीय इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। वहां से लौटने पर उन्होंने 17 वर्षों तक आइआइटी कानपुर में बतौर प्राध्यापक सेवाएं दीं। 2009 में भागीरथी नदी पर टिहरी बांध के निर्माण के विरोध में अनशन करने के कारण वह पर्यावरण रक्षक के तौर पर प्रसिद्ध हुए।
वह गंगा महासभा, जिसकी स्थापना 1905 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने थी, के संरक्षक भी रहे। इसके अलावा संन्यासी के रूप में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सदस्य होने का श्रेय भी उन्हें जाता है। जुलाई 2011 में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से काशी में संन्यास दीक्षा लेकर प्रोफेसर जीडी अग्रवाल से वह स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद बन गए। गंगा रक्षा के लिए 112 दिन के अनशन के बाद इसी वर्ष 11 अक्टूबर को उन्होंने ऋषिकेश एम्स में अंतिम सांस ली।
स्वामी निगमानंद
दो अगस्त 1976 को दरभंगा (बिहार) में जन्मे गंगापुत्र के नाम से विख्यात मातृसदन के ब्रह्मचारी स्वामी निगमानंद आरंभ से ही स्वामी शिवानंद के साथी रहे और उन्हीं के साथ संन्यास दीक्षा भी ली। विज्ञान से स्नातक स्वामी निगमानंद ने गंगा रक्षा को लगातार 114 दिन के अनशन के बाद 13 जून 2011 को अपनी देह का त्याग किया।
स्वामी गोकुलानंद
स्वामी गोकुलानंद ने कुमाऊं क्षेत्र में नदियों का खनन कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे लोगों के खिलाफ 66 दिन तक अनशन करते हुए वर्ष 2013 में देह का त्याग किया था। परास्नातक स्वामी गोकुलानंद भी स्वामी शिवानंद के साथ आरंभ से ही जुड़े रहे।
अनशनरत संत
ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद
विज्ञान विषय से स्नातक 27 वर्षीय आत्माबोधानंद ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में पीजी डिप्लोमा किया हुआ है। उन्होंने मीडिया कंपोजिंग में भी छह माह का कोर्स किया है। वर्तमान में उन पर मातृसदन के इंटरनेट, सोशल मीडिया और सीसीटीवी से संबंधित सभी कार्यों की जिम्मेदारी है। गंगा रक्षा को लेकर इससे पहले वह सात बार अनशन कर चुके हैं। एक बार वह 46 दिन तक अनशन पर रहे। यह उनका आठवां अनशन है। वर्ष 2014 में वह आश्रम में आए और स्वामी शिवानंद से दीक्षा लेकर आश्रम को सर्मिपत हो गए।
स्वामी पुण्यानंद
बिहार के रहने वाले विज्ञान से स्नातक स्वामी पुण्यानंद दिल्ली में अपना व्यवसाय करते थे। मातृसदन के संपर्क में आने के बाद पुण्यानंद को सासांरिक मोह-माया से विरक्ति हो गई और उन्होंने संन्यासी का जीवन धारण कर लिया। वर्ष 1962 में जन्मे 56 वर्षीय स्वामी पुण्यानंद वर्ष 2017-18 में स्वामी शिवानंद के तप पर रहने के दौरान दिसंबर-जनवरी में अन्न का त्याग कर तप कर चुके हैं। हालांकि, वह पिछले कई वर्षों से मातृसदन से जुड़े हुए थे, लेकिन पिछले पांच वर्षों से तो पूरी तरह आश्रम को समर्पित हैं।