सुप्रीम कोर्ट का सवाल मुझसे नहीं, सरकार से
लोकसभा में नेता विपक्ष (एलओपी) पद के प्रावधानों की व्याख्या करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सुमित्रा महाजन ने अपने फैसले का बचाव किया है। शनिवार को लोकसभाध्यक्ष ने कहा कि उनका फैसला नियम व परंपरा पर आधारित है और शीर्ष अदालत का सवाल मुझसे नहीं, बल्कि केंद्र सरकार से है। लोकसभाध्यक्ष ने कह
नई दुनिया, इंदौर। लोकसभा में नेता विपक्ष (एलओपी) पद के प्रावधानों की व्याख्या करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सुमित्रा महाजन ने अपने फैसले का बचाव किया है। शनिवार को लोकसभाध्यक्ष ने कहा कि उनका फैसला नियम व परंपरा पर आधारित है और शीर्ष अदालत का सवाल मुझसे नहीं, बल्कि केंद्र सरकार से है।
लोकसभाध्यक्ष ने कहा कि 'नेता विपक्ष के नहीं होने पर लोकपाल की नियुक्ति मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछा है, जबकि अटॉर्नी जनरल सरकार के रुख से कोर्ट को अवगत कराएंगे। कोर्ट ने मेरे खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की है।' उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता को एलओपी का पद नहीं दिए जाने का फैसला नियमों व परंपराओं के अध्ययन और विशेषज्ञों की राय के बाद किया गया है। किसी भी विपक्षी दल के पास 55 से ज्यादा सीटें नहीं हैं। नेता विपक्ष का दर्जा पाने के लिए पार्टी के पास सदन में न्यूनतम 10 फीसद सीटें होने के नियम को आज तक नहीं बदला गया है। उन्होंने कहा कि भले ही कोई नेता विपक्ष नहीं हो, लेकिन लोकसभा में विपक्ष मौजूद है और अपना काम बखूबी कर रहा है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि 1980 व 1984 में भी किसी भी दल के पास संख्याबल नहीं होने के कारण लोकसभा में नेता विपक्ष नहीं था।
दरअसल, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा में मान्यता प्राप्त नेता विपक्ष की अनुपस्थिति में लोकपाल समेत अन्य वैधानिक निकायों के नियुक्ति प्रावधानों की व्याख्या करने का निर्णय लिया था। प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने नेता विपक्ष पद की अहमियत पर जोर देते हुए कहा था कि यह सरकार से अलग विचार रखने वालों की आवाज का प्रतिनिधि होता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से दो सप्ताह में इसके प्रावधानों पर रुख स्पष्ट करने को कहा है। मामले की सुनवाई नौ सितंबर को होगी।
आजाद ने किया सुप्रीम कोर्ट का समर्थन
राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने लोकसभा के नेता विपक्ष मामले में सुप्रीम कोर्ट का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि राजग सरकार कांग्रेस को लोकसभा में विपक्ष का दर्जा न देकर लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान पहुंचा रही है। मामले में शीर्ष अदालत द्वारा प्रावधान की व्याख्या करने का निर्णय सही है।