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ब्रिटेन और ब्राजील वाले से ज्यादा घातक है कोरोना वायरस का दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट

अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि कोविड-19 वैक्सीन नए वैरिएंट पर काम नहीं करता लेकिन दक्षिण अफ्रीका में चल रहे क्लीनिकल ट्रायल यह बताते हैं कि वैक्सीन का पुराने वैरिएंट के मुकाबले नए वैरिएंट पर प्रभाव कम हो जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 04 Feb 2021 03:24 PM (IST)Updated: Thu, 04 Feb 2021 03:28 PM (IST)
ब्रिटेन और ब्राजील वाले से ज्यादा घातक है कोरोना वायरस का दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट
कोविड-19 वैक्सीन के प्रभाव को कम करने में वायरस की मदद करता है।

नई दिल्‍ली जेएनएन। विज्ञानी जब से कोरोना वायरस पर नजर रख रहे हैं, तब से अब तक उसमें कई बदलाव हो चुके हैं। पिछले साल के अंतिम महीनों में हुए बदलावों के बाद से अब तक कोरोना के मुख्य रूप से तीन वैरिएंट प्रकाश में आ चुके हैं। ब्रिटेन और ब्राजील में कोरोना के नए वैरिएंट पिछले ही साल आ चुके थे, जबिक हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में इसके एक और वैरिएंट की पहचान हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कोरोना का नया स्ट्रेन ज्यादा संक्रामक और वैक्सीन व एंटीबॉडी के प्रभावों को कम करने वाला है। यह कम समय में कई देशों में फैल चुका है।

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अन्य दो से है अलग: डब्ल्यूएचओ के अनुसार, ब्रिटेन व ब्राजील में पाए गए कोरोना वायरस के नए वैरिएंट से दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट कई मायने में अलग है। इसे 20एच/501वाई.वी2 या बी.1.351 के नाम से जाना जाता है। यह मूल वायरस से ज्यादा संक्रामक है। हालांकि, इसके पहचान में आने से पहले ब्रिटेन वाला वैरिएंट यानी बी.1.1.7 ज्यादा संक्रामक था और वह अमेरिका समेत 40 देशों में पहुंच चुका है।

एन501वाई म्युटेशन चिंता की बड़ी वजह: दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट के एक म्युटेशन (बदलाव) को एन501वाई के नाम से जाना जाता है। इससे वायरस का नया वैरिएंट ज्यादा संक्रामक हो गया है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, यह वैरिएंट एंटीबॉडी के प्रभावों को भी कम कर सकता है। दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं का मानना है कि नया वैरिएंट पुराने दोनों से 50 फीसद ज्यादा संक्रामक है। हालांकि, डब्ल्यूएचओ ने इस पर और अध्ययन की जरूरत बताते हुए कहा कि दक्षिण अफ्रीका में हुए अब तक के अध्ययन इससे दोबारा संक्रमित होने के खतरे का इशारा नहीं करते।

हुए कई बदलाव: विज्ञानियों के लिए दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट इसलिए भी चिंता की वजह है, क्योंकि इसमें काफी बदलाव हुए हैं। खासकर स्पाइक प्रोटीन वाले बदलाव, जिसके जरिये वायरस मानव शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करता है। वैक्सीन के निर्माण और एंटीबॉडी के जरिये इलाज में इसी स्पाइक प्रोटीन को लक्षित किया जा रहा है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि ब्रिटेन वाले वैरिएंट में भी एन501वाई म्युटेशन हुआ है, लेकिन दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट में हुआ बदलाव उससे अलग है।

वैक्सीन का प्रभाव कर सकता है कम: दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट में हुए एक अन्य बदलाव को ई484के नाम दिया गया है। यह बदलाव ब्रिटेन वाले वैरिएंट में नहीं हुआ है। यह किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देने और कोविड-19 वैक्सीन के प्रभाव को कम करने में वायरस की मदद करता है। 


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