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मुश्किल वक्त में भी कुछ राज्यों को चाहिए अपनी पसंद की दालें, साबुत की बजाय तैयार दालों की रखी मांग

केंद्रीय सरकारी एजेंसी नैफेड के गोदामों में तकरीबन 32 लाख टन दालों का बफर स्टॉक है जो जरूरत के मुकाबले बहुत अधिक है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 30 Mar 2020 07:52 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2020 07:54 PM (IST)
मुश्किल वक्त में भी कुछ राज्यों को चाहिए अपनी पसंद की दालें, साबुत की बजाय तैयार दालों की रखी मांग
मुश्किल वक्त में भी कुछ राज्यों को चाहिए अपनी पसंद की दालें, साबुत की बजाय तैयार दालों की रखी मांग

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। कोरोना वायरस के चलते लागू देशव्यापी लॉकडाउन के मुश्किल वक्त में भी कुछ राज्यों को अपनी पसंद दालें चाहिए, जिसकी उन्होंने फरमाइश भी कर दी है। हैरानी उस समय हुई, जब उत्तरी राज्यों ने प्रीमियम दालों की मांग रखीं, जिन्होंने कभी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) पर दाल नहीं बांटी। ऐसे राज्य हमेशा दाल बांटने को जहमत बताकर पल्ला झाड़ते रहे हैं। इसमें भी कई राज्यों ने साबुत दलहन लेने के बजाय तैयार दालों की मांग रखी हैं।

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केंद्रीय सरकारी एजेंसी नैफेड के गोदामों में तकरीबन 32 लाख टन दालों का बफर स्टॉक है, जो जरूरत के मुकाबले बहुत अधिक है। लॉकडाउन से उपभोक्ताओं को राहत पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरु की है, जिसमें गेहूं चावल के साथ दाल देने का प्रावधान किया गया है। अनाज व दालों का भारी स्टॉक है, जो बांटने के काम आ जाएगा। पीडीएस की जरूरतों के बाबत केंद्र ने राच्यों के साथ पिछले सप्ताह सभी राच्यों के मुख्य सचिवों से वीडियो कांफ्रेंसिंग की, जिसमें उनकी दालों की जरूरत के बारे में पूछा गया।

कई राज्यों में चने की दाल खाने की है परंपरा

सूत्रों के मुताबिक इस दौरान राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जहां चना दाल खाने की परंपरा है। वहां की सरकारों ने केंद्र से इसकी जगह प्रीमियम कही जाने वाली मूंग व उड़द की दाल मांगी। आमतौर पर दालों के बफर स्टॉक से जब भी जरूरत हुई तो दक्षिणी राच्यों ने समय-समय पर दालों का उठाव किया, लेकिन उत्तरी राच्य इसे जहमत मानते हुए इससे बचते रहे। नैफेड के पास फिलहाल दालों का जो स्टॉक है, उसका आधा हिस्सा चना है।

पुराना स्टॉक खाली करना जरूरी

सूत्रों ने बताया कि आगामी रबी खरीद सीजन चालू होते ही चना और मसूर की खरीद फिर चालू होने वाली है, जिसके लिए पुराना स्टॉक खाली करना जरूरी हो गया है। ऐसे में केंद्र सरकार अप्रैल, मई और जून के लिए पीडीएस पर साबुत चना बांटने का फैसला ले सकती है। हालांकि दाल मिलों की नजर इस पुराने स्टॉक पर बनी हुई है, जिसे वो औने-पौने भाव पर लेना चाहेंगी। राशन दुकानों से बांटने के लिए प्रति परिवार एक किलो दाल देने का प्रावधान किया गया है, जिसके लिए कुल 2.1 लाख टन दालों की जरूरत होगी। जबकि तीन महीनों के लिए कुल जरूरत 6.30 लाख टन होगी।

गरीब उपभोक्ता के लिए चना सबसे मुफीद

दलहन बाजार के जानकारों के मुताबिक अरहर को छोड़कर बाकी दालें चना, मसूर, उड़द और मूंग साबुत भी खायी जाती हैं। साबुत दलहन से दालें बनाने में समय के लागत बढ़ जाएगी। गरीब उपभोक्ता के लिए चना सबसे मुफीद साबित हो सकता है, जिसे कच्चा, भिगोकर, सब्जी, बेसन, रोटी और न जाने के कितने तरीके से उपयोग में लाया जा सकता है। चना, उड़द, और मूंग का सबसे ज्यादा स्टॉक मध्य प्रदेश और राजस्थान के विभिन्न उत्पादक मंडियों के इर्द गिर्द है। जबकि चना और अरहर का स्टॉक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में है। मसूर का ज्यादा स्टॉक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में है। राशन प्रणाली के माध्यम से ज्यादातर हिस्सों में चना ही वितरित किया जा सकता है।

इसी दौरान नैफेड ने खुले बाजार में भी दालों की बिक्री का टेंडर जारी कर दिया है। ताकि सरकारी गोदामों से दालों का पुराना स्टॉक खाली हो सके। देश के सभी 21 करोड़ परिवार पीडीएस में लाभार्थी उपभोक्ता हैं, जिन्हें निर्धारित मात्रा में मिल रहे अनाज के साथ पांच किलो अतिरिक्त अनाज देने का फैसला किया गया है। इसके साथ प्रति परिवार एक किलो दाल दी जाएगी।


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