जन्मदिन विशेष: 'अटल' और फौलादी इरादे वाले 'दूसरे गांधी' अन्ना हजारे
अन्ना हजारे का जन्म 15 जून सन् 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी नेता अन्ना हजारे का आज 82वां जन्मदिन है। वही अन्ना हजारे, जिन्हें हम सभी भ्रष्टाचार के खिलाफ और इससे निपटने के लिए सख्त लोकपाल विधेयक की मांग कर अनशन पर बैठने वाले इंसान के रूप में जानते हैं। अन्ना हजारे गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक सच्चे समाजसेवक हैं जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करने में भरोसा रखते हैं। अन्ना हजारे का वास्तविक नाम किसन बाबूराव हजारे है। 15 जून सन् 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्म लेने वाले अन्ना हजारे का बचपन बड़ी गरीबी में गुजरा। अन्ना हजारे के पिता मजदूर थे और दादा फौज में थे। अन्ना हजारे के छह भाई हैं। फौज में रहने वाले उनके दादा की पोस्टिंग भी भिंगनगर में ही थी। अन्ना का पुश्तैनी गांव अहमद नगर जिले में स्थित रालेगण सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगण सिद्धि आ गया।
फौज में ऐसे शामिल हुए अन्ना हजारे
अन्ना हजारे का बचपन बेहद गरीबी में बीता था। उनके परिवार की आर्थिक हालत को देखते हुए अन्ना हजारे की बुआ उन्हें अपने साथ मुंबई लेकर गईं, जहां अन्ना हजारे ने मुंबई में सातवीं तक पढ़ाई की और फिर कुछ कामकाज के लिए एक फूल की दुकान पर काम करने लगे। 60 के दशक के आसपास अन्ना हजारे का मन बदला और वो भी अपने दादा की तरह फौज में भर्ती हो गए। फौज में रहते हुए अन्ना हजारे ने बतौर ड्राइवर फौज में रहते हुए पंजाब में काम किया। फौज में काम करते हुए अन्ना पाकिस्तानी हमलों से बाल-बाल बचे थे।
यूं बदला अन्ना हजारे का जीवन
अपनी फौज की नौकरी के दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक किताब कॉल टू द यूथ फॉर नेशन खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित करने की ठान ली। इसके बाद उन्होंने महात्मा गांधी और विनोबा भावे को भी पढ़ा और उनके शब्दों को अपने जीवन में जैसे ढ़ाल लिया। इन सभी महान लोगों का अन्ना के जीवन और उनकी सोच पर गहरा असर पड़ा। जिसके परिणामस्वरूप अन्ना हजारे ने साल 1970 में आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय कर लिया। 1975 में अन्ना ने फौज की नौकरी से वॉलंटरी रिटायरमेंट ले लिया और इसके बाद वो गांव में जाकर बस गए। अन्ना हजारे का मानना था कि देश की असली ताकत गांवों में है और इसीलिए उन्होंने गांवो में विकास की लहर लाने के लिए मोर्चा खोल दिया। यहां तक की उन्होंने खुद अपनी पुस्तैनी जमीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दे दी।
अन्ना हजारे ने 1975 से सूखा प्रभावित रालेगांव सिद्धि में काम शुरू किया। वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायो गैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गांव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गांव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है।1998 में अन्ना हजारे उस समय अत्यधिक चर्चा में आ गए थे जब उन्होंने बीजेपी-शिवसेना वाली सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज उठाई थी। 2005 में अन्ना हजारे ने कांगेस सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए प्रेशर डाला था। अन्ना की कार्यशैली बिलकुला गांधी जी की तरह है जो शांत रहकर भी भ्रष्टाचारियों पर जोरदार प्रहार करती है।
अन्ना का लोकपाल विधेयक आंदोलन'
जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में 5 अप्रैल 2011 को समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ। इसमें अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण आदि शामिल थे। देखते ही देखते इस आंदोलन का प्रभाव पूरे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की।
अन्ना हजारे को मिले सम्मान
अन्ना हजारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें 1990 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया और 1992 में उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया। कभी अपने जीवन से तंग आ चुके अन्ना हजारे ने कई जिंदगियों को आगे बढ़ने का मौका दिया है।
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