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तो क्या अब Facebook, Twitter और YouTube चलाने के लिए भी आधार देना पड़ेगा ?

क्या सोशल मीडिया अकाउंट के साथ आधार लिंक करना अनिवार्य होना चाहिए। Facebook इसके खिलाफ है सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और टेक्नोलॉजी कंपनियों से मांगा जवाब।

By Digpal SinghEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 03:43 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 04:53 PM (IST)
तो क्या अब Facebook, Twitter और YouTube चलाने के लिए भी आधार देना पड़ेगा ?
तो क्या अब Facebook, Twitter और YouTube चलाने के लिए भी आधार देना पड़ेगा ?

नई दिल्ली, पीटीआई। Aadhaar पिछले कुछ वर्षों में नागरिकता की पहचान का अहम आधार बन गया है। आधार के संबंध में ही सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को Facebook की एक याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में फेसबुक ने मांग रखी है कि आधार को सोशल मीडिया प्रोफाइल से लिंक करने के लिए मद्रास हाईकोर्ट, बॉम्बे हाईकोर्ट और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय में चल रहे मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांस्फर किया जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, गूगल, ट्विटर, यूट्यूब और अन्य को नोटिस भेजकर 13 सितंबर तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।

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ईमेल से भेजें नोटिस
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने इस सुनवाई के दौरान कहा कि अगर यह नोटिस मामले से जुड़ी किसी पार्टी तक नहीं पहुंच पाता है तो उन्हें ई-मेल के जरिए नोटिस भेजा जाए। यही नहीं दो जजों की इस बेंच ने कहा कि आधार को सोशल मीडिया से लिंक करने के संबंध में सुनवाई मद्रास हाईकोर्ट में चलती रहेगी, लेकिन इस संबंध में कोई भी अंतिम निर्णय देने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। 

क्यों सोशल मीडिया से आधार लिंक
तमिलनाडु सरकार ने इसकी पहल की है। राज्य सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि सोशल मीडिया प्रोफाइल को आधार नंबर से जोड़ने पर फेक न्यूज, आपत्तिजनक और पोर्नोग्राफिक कंटेंट पोस्ट करने वालों की पहचान हो पाएगी। ऐसा होने से सोशल मीडिया के जरिए राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वालों पर भी नकेल कसी जा सकेगी।

क्या कहते हैं साइबर एक्पर्ट
इस संबंध में हमने साइबर एक्पर्ट रक्षित टंडन से बात की। उन्होंने कहा, फेक न्यूज फैलाने वाले और नकली पहचान रखने वालों को कंट्रोल करने के लिए यह मंशा गलत नहीं लगती। हर मोबाइल और सोशल मीडिया यूजर वैरिफाइड होना चाहिए। आज तक 130 करोड़ की जनसंख्या के सिम कार्ड की वैरिफिकेशन तो हम ठीक से कर नहीं पाए हैं। पुलिस की जांच में भी 100 में से 90 सिम नकली पहचान पर लिए हुए निकलते हैं। ऐसे ही कुछ हालात बैंक खातों को लेकर भी हैं। इसलिए मुझे यह कहीं से भी ठीक नहीं लगता। 

चिंता की बात तो यह है
दैनिक जागरण से बातचीत में रक्षित टंडन ने तमिलनाडु सरकार की इस पहल पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि फेसबुक का डाटा पहले भी चोरी हो चुका है। कई गलत संस्थानों ने इस डाटा का गलत इस्तेमाल भी किया है। इस मामले में सबसे बड़ा उदाहरण को कैंब्रिज एनालिटिका का ही है। कैंब्रिज एनालिटिका के डाटा के जरिए ही अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों को प्रभावित किया गया था। फेसबुक से ही कैंब्रिज एनालिटिका को यह डाटा मिला था। ऐसे कड़वे अनुभवों के आधार पर तो सोशल मीडिया से आधार लिंक करना खतरे से खाली नहीं है। 

रक्षित टंडन ने आगे कहा, अभी तक हम मोबाइल कंपनियों को तो आधार लिंक करा नहीं पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही ऐसा करने से मना कर दिया था। आधार की शुरुआत में यही सोचा गया था कि आधार इन सब चीजों से जुड़ जाएगा, इससे फ्रॉड सिम और फ्रॉड बैंक खाते रोके जा सकेंगे। जब हम हिंदुस्तानी कंपनियों को आधार से नहीं जोड़ पाए तो फिर विदेशी कंपनियों को कैसे अपना आधार डाटा दे सकते हैं।

फेसबुक ने जताई आपत्ति
तमिलनाडु सरकार के इस सुझाव पर सबसे बड़े सोशल मीडिया ग्रुप Facebook ने आपत्ति जतायी है। फेसबुक का कहना है कि 12 नंबर का आधार और बायोमीट्रिक सोशल मीडिया अकाउंट से लिंक करने पर यूजर्स की प्राइवेसी खत्म हो जाएगी और यह प्राइवेसी नियमों का उल्लंघन होगा। फेसबुक का कहना है कि वह यूजर्स का आधार नंबर किसी थर्ड पार्टी के साथ शेयर नहीं कर सकते। 

कहां-कहां लिंक हुआ आधार
सरकार ने आधार को लगातार सपोर्ट किया है और इसे बैंक खातों के लिए अनिवार्य कर दिया गया। यही नहीं पैन और आधार को लिंक करना भी जरूरी बना दिया गया। इसके अलावा DBTL (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर) यानि पेंशन, गैस सब्सिडी आदि के लिए भी इसे जरूर कर दिया गया। प्रॉपर्टी रजिस्टर करने और बैंक लोन लेने के लिए भी आधार जरूरी है।

यहां मजबूरी का सौदा बना आधार देना
आज अगर आप कोई मोबाइल फोन कनेक्शन खरीदने जाते हैं तो वैरिफिकेशन के नाम पर आधार मांग लिया जाता है। आप नहीं देना चाहते तो न दें, लेकिन ऐसे में आपका वैरिफिकेशन होने में 3-4 दिन लगने की बात कहकर आपको आधार की कॉपी देने के लिए एक तरह से मजबूर किया जाता है। इसके अलावा तमाम पेमेंट ऐप आपके और हमारे फोन में मौजूद हैं, जो यूपीआई पेमेंट करने के लिए भी आधार वैरिफिकेशन मांगते हैं। 

ये है रास्ता
साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन ने बातचीत में कहा कि आज अगर हिंदुस्तान की सभी मोबाइल कंपनियां मिलकर अपनी केवाईसी दुरुस्त कर लें तो फेसबुक या किसी सोशल मीडिया कंपनी को आधार देने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। क्योंकि, जब भी हम सोशल मीडिया अकाउंट बनाएंगे तो हमें अपना मोबाइल नंबर देना होगा और उसकी केवाईसी मोबाइल कंपनी के पास पहले से ही होगी। इसलिए वह फर्जी नंबर हो ही नहीं सकता। इसके अलावा जब सोशल मीडिया अकाउंट खुलेगा तो ओटीपी से भी उस नंबर को वैरिफाइ किया जाता है। 

क्या होना चाहिए
अब सरकार को चाहिए कि मोबाइल कंपनियों से कहे कि वो अपने सभी नंबरों की केवाईसी पूरी करवाए। जिन नंबरों की केवाईसी तय तारीख के अंदर न हो उन्हें बंद कर दिया जाए। इससे नकली पहचान से लिए गए मोबाइल नंबर तुरंत बंद हो जाएंगे और सरकार के पास एक-एक यूजर की जानकारी भी होगी। मोबाइल कंपनियां मदद करें, कोर्ट इस संबंध में ट्राइ और कंपनियों को आदेश दे कि तय समय सीमा के अंदर केवाईसी पूरी कर ले तो हर यूजर वैरिफाइड होगा और ऐसे में आधार को सोशल मीडिया से लिंक करने के लिए तमिलनाडु सरकार ने जो तर्क दिया है उसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। केवाईसी के लिए आधार ही जरूरी नहीं है, इसके लिए ड्राइविंग लाइसेंस, पैन, वोटर कार्ड और पासपोर्ट का भी इस्तेमाल हो सकता है।


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