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बड़ा संकट बन रहे छोटे फ्लाइंग रोबोट, चीन कर रहा पाकिस्तान को इस नए हथियार की आपूर्ति

ड्रोन को आम भाषा में फ्लाइंग रोबोट कहा जा सकता है। इन्हें दूर बैठे नियंत्रित किया जा सकता है। इनके माध्यम से न केवल किसी स्थान विशेष की 24 घंटे निगरानी की जा सकती है बल्कि ये आपको रियल टाइम पिक्चर्स भी भेज सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 05 Jul 2021 11:56 AM (IST)Updated: Mon, 05 Jul 2021 11:56 AM (IST)
बड़ा संकट बन रहे छोटे फ्लाइंग रोबोट, चीन कर रहा पाकिस्तान को इस नए हथियार की आपूर्ति
2019 में सुरक्षाकर्मियों ने पाकिस्तान से 167 ड्रोन और 2020 में 77 ड्रोन देखे जाने की जानकारी दी।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। ड्रोन का जिक्र होते ही हमारे दिमाग में आमतौर पर एक छोटे से रोबोटिक विमान की छवि बनती है। कुछ फीट का विमान, जिसे रिमोट के जरिये कहीं दूर से संचालित किया जाता है। हालांकि ड्रोन यानी मानवरहित विमान (यूएवी) का परिचय सिर्फ इतना नहीं है। ड्रोन का अर्थ सिर्फ दो-तीन फीट का रिमोट से चलने वाला विमान ही नहीं होता है। हेलिकॉप्टर के आकार के बड़े युद्धक ड्रोन भी बहुतायत में हैं। दुनिया के ज्यादातर देश ऐसे घातक युद्धक ड्रोन विकसित करने में सक्रियता से जुटे हैं। कई युद्धक ड्रोन 1,000 किलोग्राम से भी ज्यादा वजन के हथियार लेकर उड़ने और कई-कई घंटे लगातार हवा में रहने में सक्षम हैं। हाल के दिनों में आतंकियों द्वारा इनके इस्तेमाल ने सबकी चिंता बढ़ा दी है।

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आई आफ द स्काई भी कहे जाते हैं ड्रोन : ड्रोन को आम भाषा में फ्लाइंग रोबोट कहा जा सकता है। इन्हें दूर बैठे नियंत्रित किया जा सकता है। इनके माध्यम से न केवल किसी स्थान विशेष की 24 घंटे निगरानी की जा सकती है, बल्कि ये आपको रियल टाइम पिक्चर्स भी भेज सकते हैं। इन्हीं सब विशेषताओं के चलते इसे आई आफ द स्काई (आसमान की आंख) कहा जाता है।

1917 से जुड़ते हैं ड्रोन की कहानी के शुरुआती तार : ड्रोन के आधुनिक स्वरूप के तार 1917 से जुड़ते हैं। चाल्र्स कैटरिंग ने एक हवाई तारपीडो बनाया था, जिसे बग नाम दिया गया था। यह किसी जगह पहुंचकर वहां बम गिराने में सक्षम था। 1937 में अमेरिकी नौसेना ने रेडियो तरंगों से नियंत्रित होने वाला मानवरहित तारपीडो एन2सी-2 बनाया था। 1973 में रूस ने सैन्य निगरानी के लिए ड्रोन बनाया। इसके बाद अमेरिकी सेना ने 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान ड्रोन का पहली बार सैन्य इस्तेमाल किया था। अमेरिका का रहस्यमयी एक्स-37बी स्पेस प्लेन भी ड्रोन की ही श्रेणी में आता है। अमेरिका की वायुसेना इसे नियंत्रित करती है। इसे अंतरिक्ष में जाकर वापस आ सकने वाले विमान के तौर पर विकसित किया गया है।

बनते जा रहे हैं आतंकवादियों के हाथ का हथियार : द एसोसिएशन आफ द यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी (एयूएसए) ने फरवरी, 2021 में ‘द रोल आफ ड्रोन्स इन फ्यूचर टेररिस्ट अटैक्स’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें बताया गया कि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएस) ने पहली बार आतंकी गतिविधियों में ड्रोन का इस्तेमाल किया था। एक गैर सरकारी संगठन मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख के हवाले से कहा कि अगस्त, 2014 में आइएस ने युद्ध के मैदान की खुफिया जानकारी एकत्र करने और आत्मघाती विस्फोटों के प्रभावों का पता लगाने के लिए ड्रोन का उपयोग करना शुरू किया था। यह आतंकी संगठन छोटे ड्रोन पर बम बांधकर हमले की भी कई कोशिशें कर चुका है। पिछले वर्ष अक्टूबर में इराक में ऐसे एक हमले में कई कुर्द लड़ाकों की जान चली गई थी। इससे पहले 2013 में अलकायदा ने ड्रोन का इस्तेमाल करके पाकिस्तान में आतंकी हमले की कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली थी। 2016 से इराक और सीरिया में हमला करने के लिए आइएस लगातार ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। इस्लामिक स्टेट के अलावा फलस्तीन और लेबनान में सक्रिय हिजबुल्लाह, हूती विद्रोही, तालिबान के साथ पाकिस्तान में सक्रिय कई आतंकी संगठन हमलों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

भारत में हथियार गिराने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर चुका है पाक

भारत-पाकिस्तान सीमा और नियंत्रण रेखा पर ड्रोन देखे जाने की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। कुछ ड्रोन का प्रयोग भारतीय सीमा में हथियार गिराने के लिए भी किया गया।

  • 2019 में सुरक्षाकर्मियों ने पाकिस्तान से 167 ड्रोन और 2020 में 77 ड्रोन देखे जाने की जानकारी दी।
  • 2019 सितंबर: में पंजाब पुलिस ने ड्रोन से गिराए गए हथियारों की एक खेप को जब्त कर एक आतंकी माड्यूल का भंडाफोड़ किया था। जिन हथियारों को बरामद किया गया था, उसमें एके-47 राइफल और चीन निíमत पिस्टल शामिल थीं।
  • 2020 जून: पंजाब के गुरदासपुर में ड्रोन से गिराए गए हथियारों की एक और खेप जब्त की गई।
  • उसी महीने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने जम्मू के हीरा नगर सेक्टर में एक ड्रोन को मार गिराया था। इसमें अमेरिका में बनी एम4 राइफल मिली थी।
  • 2021 जनवरी: जम्मू-कश्मीर पुलिस ने दो लोगों को पकड़ा, क्योंकि वे ड्रोन से गिराए गए हथियारों की खेप उठा रहे थे।

चीन कर रहा है पाकिस्तान को इस नए हथियार की आपूर्ति : पाकिस्तान के पास स्वदेशी ड्रोन बनाने वाली फैक्टियां बहुत नहीं हैं, लेकिन पाकिस्तान को और उसके आतंकी संगठनों को चीन से ड्रोन आसानी से मिल जाते हैं। पाकिस्तान द्वारा भेजे गए ड्रोन द्वारा गिराई गई खेप में अक्सर चीन में बने हथियार और गोला-बारूद होते हैं।

ड्रोन हमलों को रोकने में मुश्किल क्यों आती है? : भारत द्वारा सीमाओं या नियंत्रण रेखा पर तैनात रडार सहित निगरानी तकनीक का उपयोग बड़ी वस्तुओं, हेलीकॉप्टरों, विमानों और मिसाइलों पर नजर रखने के लिए किया जाता है, लेकिन ड्रोन बहुत छोटे होते हैं। कई ड्रोन तो बमुश्किल दो फीट के होते हैं। इसीलिए ये रडार की पकड़ में नहीं आते। ड्रोन हमलों को रोकने के लिए ड्रोन सिस्टम को जाम करना और उन्हें नीचे गिराना आवश्यक है। ड्रोन हमलों के खिलाफ रक्षा प्रणाली के रूप में लेजर आधारित निर्देशित ऊर्जा हथियार (डीईडब्ल्यू) के बारे में बात की जा रही है। भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने दो ड्रोन विरोधी सिस्टम विकसित किए हैं। ये दो किमी की दूरी पर उड़ रहे ड्रोन को निशाना बनाने के लिए 10 किलोवाट के शक्तिशाली लेजर का उपयोग करते हैं। हालांकि, इन प्रणालियों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होना अभी बाकी है।

भारत की है देखो और मार गिराओ की रणनीति : सीमा सुरक्षा बल और विभिन्न पुलिस इकाइयों की सीमावर्ती यूनिट ने 3,323 किलोमीटर लंबी सीमा पर ड्रोन को हवा में दिखते ही मार गिराने की रणनीति अपनाई है। इसके लिए सुरक्षा प्रहरी को सतर्क रहना होता है। उसे लगातार किसी भी ड्रोन जैसी हलचल पर नजर रखना होता है और ड्रोन दिखते ही उसे इंसास राइफल जैसे हथियार से मार गिराना होता है।

इस नए संकट से निपटने को कई प्रणालियों पर हो रहा काम : ड्रोन हमलों को रोकने के लिए स्काई फेंस, ड्रोन गन, एथेना, ड्रोन कैचर और स्काईवाल-100 जैसी विशिष्ट ड्रोन रोधी तकनीकों पर काम किया जा रहा है।

ड्रोन गन

यह पायलट और ड्रोन के बीच रेडियो सिग्नल को जाम करने के साथ ही ड्रोन को उतरने पर मजबूर कर देती है।

स्काई फेंस

इसके माध्यम से ड्रोन पर इस तरह के सिग्नलों का प्रयोग किया जाता है, जिससे वह अपना रास्ता भटक जाता है।

एथेना

एडवांस्ड टेस्ट हाई एनर्जी एसेट (एथेना) पर भी काम चल रहा है। यह उच्च क्षमता की लेजर बीम के जरिये ड्रोन को नष्ट करता है।

ड्रोन कैचर

यह तेजी से दुश्मन ड्रोन के पास पहुंचता है और हवा में ही उस पर जाल फेंककर उसे काम करने से रोक देता है।

कुछ ध्यान रखने की बातें

  • भारत में बहुत कम कंपनियां अभी ड्रोन पर रिसर्च कर रही हैं। कुछ कंपनियां विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर रिसर्च में सक्रिय हैं। इस दिशा में सरकार की ओर से सहयोग और निवेश बढ़ाने की जरूरत है।
  • भारत में नागरिक ड्रोन को लेकर कोई डाटा मौजूद नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में चार से पांच लाख ड्रोन मौजूद हैं।
  • डीजीसीए ने मार्च, 2021 में ड्रोन उड़ाने को लेकर यूएएस रूल 2021 जारी किया था। इसके तहत ड्रोन उड़ाने से पहले डीजीसीए से इजाजत लेना जरूरी है।

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