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झारखंड के 'वाटरमैन' को सरकार पद्मश्री अवार्ड से करेगी सम्मानित

झारखंड के रहने वाले सीमोन ओरानो को सरकार पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित करने जा रही है। झारखंड में वाटरमैन के नाम से जाने वाले सीमोन ने कुछ ऐसा कर दिया जिससे आज पूरे देश को उनपर नाज है। जानिए सीमोन की कहानी और क्या है उनका प्रयोग

By Atul GuptaEdited By: Published: Tue, 01 Mar 2016 03:28 PM (IST)Updated: Tue, 01 Mar 2016 03:47 PM (IST)
झारखंड के 'वाटरमैन' को सरकार पद्मश्री अवार्ड से करेगी सम्मानित

नई दिल्ली। झारखंड का बीडो ब्लॉक में रहने वाले सिमोन ओरान को केद्र सरकार पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित करने जा रही है। सीमोन वो व्यक्ति हैं जिन्होंने ना सिर्फ अपने गांव को सूखे की समस्या से बचाया बल्कि आसपास के कई गांवों को भूखमरी और बदहाली के कगार पर पहुंचने से बचा लिया।

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सूखे की वजह से छोड़ दी पढ़ाई

दरअसल सीमोन की कहानी सन 1960 से शुरू होती है जब वो चौथी कक्षा में पढ़ा करते थे। उस दौरान उनके इलाके में भयंकर सूखा पड़ा, लोग भूख से मरने लगे और इलाके को छोड़कर पलायन करने लगे। स्थिति को समझते हुए सीमोन ने पढ़ाई छोड़ दी और पानी की समस्या को सुलझाने की कोशिश करने लगे।

सुखे की समस्या को दूर करने का जुनून

बारिश के दौरान सीमोन उस तरफ भागते जहां पानी का बहाव होता। एक दिन बारिश के दौरान उन्होंने देखा कि पानी का एक तेज बहाव उंचाई से गिर रहा है और नीचे कई धाराओं में बनकर बह रहा है। सीमोन को ख्याल आया कि क्यों ना यहां एक बांध बना दिया जाए जहां वो पानी को संचित कर सके और उसे नहर की तरह सूखाग्रस्त इलाकों तक ला सके।

कई दिनों तक पानी के बहाव और उसकी दिशा को समझते हुए 28 साल के सीमोन ओरान ने अपने दोस्तों के साथ 1961 में जयघट में डैम बनाने का काम शुरू किया। लेकिन ये कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि तीन बारिश के बाद बांध पानी का बहाव नहीं सह पाया और वो टूट गया। लेकिन इस कोशिश के बाद सीमोन ने और ज्यादा मजबूत डैब बनाने का फैसला किया। सीमोन ने इसके लिए सरकार की मदद मांगी और राज्य के जल विभाग की मदद से वहां एक मजबूत बांध का निर्माण करा दिया।

खुद ही उठाया इलाके को हरा भरा करने का बीड़ा

बाद में बिना किसी सहायता से ओरान ने देशबली, झारिया, आम, जामुन के करीब 30 हजार पेड़ पूरे इलाके में लगाए। इस दौरान सरकार और गांववालों की तरफ से सीमोन को कोई खास सहायता भी नहीं मिली ।
इसके बाद सीमोन ने लोगों से बांध बनाने के लिए उनकी जमीन मांगी लेकिन जब लोगों ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया तो उन्होंने खुद की जमीन को बांध बनाने में लगा दिया।सीमोन ने हरिहरपुर, जमटोली, खाकसीटोली, बैतोली और भसनंदा में तालाब बनाए और उन्हें बांध से जोड़ा। सीमोन की ये कोशिश रंग लाई और बीडो में अच्छा खासा पानी जमा होने लगा जिससे साल में कम से कम एक खेती की सिचाई के लायक पानी उपलब्ध हो गया।

सरकार पद्मश्री अवार्ड से करेगी सम्मानित

सीमोन ओरानो अब 83 साल के हो चुके हैं और उन्हें उनके इस प्रयास के लिए सरकार ने पद्मश्री अवार्ड देने का निर्णय किया है। सीमोन का उनके गांव और आसपास के गांवों में बहुत नाम है। लोग उन्हें सम्मान से इंजीनियर कहते हैं जबकि सीमोन ने कोई खास पढ़ाई नहीं की है, लेकिन उनके प्रयास से उनके और उनके आसपास के कई गांव अब पानी की समस्या से दो चार नहीं होते बल्कि वहां उगने वाला अनाज और फल सब्जियां दूसरे जिलों में बेची जाती है।


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