सिख संगठन ने की पंजाबी लेन से संबंधित मामले में मेघालय के राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग
मेघालय मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह एक उच्च-स्तरीय समिति द्वारा इस क्षेत्र के अवैध निवासियों को स्थानांतरित करने की सिफारिश का समर्थन किया जिसकी शुरुआत सरकारी कर्मचारियों को शहर में उनके आधिकारिक आवासों में स्थानांतरित करने से हुई थी।
शिलांग, प्रेट्र। दिल्ली के एक सिख संगठन ने गुरुवार को पंजाबी लेन या थेम लीयू मावलोंग इलाके से गैर-सरकारी कर्मचारियों को स्थानांतरित किए जाने के प्रयास को लेकर मेघालय सरकार पर अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर कार्रवाई करने का आरोप लगाया और पंजाबी लेन के अवैध निवासियों को हटाने से रोकने के लिए राज्यपाल सत्यपाल मलिक से हस्तक्षेप की मांग की। हाल ही में मेघालय के उपमुख्यमंत्री प्रेस्टन टायन्सांग के नेतृत्व वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों पर मेघालय कैबिनेट द्वारा थेम ल्यू मालौंग क्षेत्र (पंजाबी लेन) में रहने वाले सिखों को दूसरी जगह बसाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है।
राज्य मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह एक उच्च-स्तरीय समिति द्वारा इस क्षेत्र के अवैध निवासियों को स्थानांतरित करने की सिफारिश का समर्थन किया, जिसकी शुरुआत सरकारी कर्मचारियों को शहर में उनके आधिकारिक आवासों में स्थानांतरित करने से हुई थी। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के प्रतिनिधिमंडल ने राजभवन में राज्यपाल मलिक से मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा। इसमें उल्लेख किया गया कि उनके हस्तक्षेप के बिना इस समस्या का समाधान संभव नहीं होगा।
समिति के अध्यक्ष एम एस सिरसा ने ज्ञापन में कहा कि इलाके से गैर-सरकारी कर्मचारियों का प्रस्तावित स्थानांतरण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और इस कदम से सांप्रदायिक हिंसा भड़क सकती है।ज्ञापन में कहा गया, 'हमें उम्मीद है कि आप पेश की गई जानकारी के आधार पर हस्तक्षेप करेंगे और लंबे समय से बसे लोगों/हरिजन समुदाय को तत्काल समाधान उपलब्ध कराएंगे।'
200 साल से भी अधिक समय से शिलांग में यह सिख समुदाय बसा हुआ है और इसलिए सिखों के अधिकारों की किसी भी कीमत पर उल्लंघन नहीं होने दिया जाएगा। भाजपा गठबंधन वाली मेघालय सरकार यह फैसला तुरंत वापस ले। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का माहौल प्रदान करने और उनमें विश्वास पैदा करने में नाकाम रही है। पूरे देश में अल्पसंख्यक वर्ग असुरक्षित महसूस कर रहा है। इसका ताजा उदाहरण जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश में देखने को मिला हैं। यह संविधान की मूल भावना के उलट है जिसमें सबको समान अधिकार मिला है।