पीएम मोदी ने की थी जिसकी तारीफ, आज कबाड़ में पड़ा है वो अविष्कार
श्याम राव का मानना है कि राजनीति के चलते उनके आविष्कार की यह हालत हो गई कि अब यदि उनसे इस बारे में कोई बात भी करता है तो वे घबरा जाते हैं।
रायपुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहने वाले श्याम राव सिर्के के इनोवेशन ने उन्हें अचानक चर्चा में ला दिया था। दस अगस्त 2017 को बायोफ्यूल डे के मौक पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान नाले की गैस से चाय बनाने वाले एक शख्स का किस्सा सुनाया था। इस उदाहरण के बाद कई लोगों ने पीएम मोदी का मजाक उड़ाया। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कर्नाटक में एक रैली के दौरान मोदी के किस्से पर तंज कसा।
दरअसल श्याम राव ने ऐसा यंत्र तैयार किया था, जिसमें नाली में बनने वाली मीथेन गैस का इस्तेमाल बायोफ्यूल के रूप में किया जाता था और इससे वे अपना चाय का व्यवसाय चलाते थे। साल 2016 में श्याम राव ने यह उपकरण तैयार किया था, लेकिन अब उनका यह शानदार इनोवेशन कबाड़ में पड़ा है।
कबाड़ में बदला आविष्कार
दरअसल उनके इनोवेशन की चर्चा होने के बाद उस पर राजनीति शुरू हो गई। श्याम राव का मानना है कि राजनीति के चलते उनके आविष्कार की यह हालत हो गई कि अब यदि उनसे इस बारे में कोई बात भी करता है तो वे घबरा जाते हैं।
पीएम की तारीफ के बाद मिली आर्थिक सहायता
पीएम मोदी द्वारा उनके आविष्कार की सराहना किए जाने के बाद स्थानीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने भी उनकी मदद की। उपकरण को और बेहतर बनाने के लिए उन्हें 40 हजार रुपयों की आर्थिक सहायता भी दी गई। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई।
कमजोर पड़ा मनोबल
पीएम मोदी के विरोधियों ने सीधे श्याम राव पर ही हमले शुरू कर दिए। नगर निगम के कर्मचारियों ने उपकरण को तोड़कर कचरे में डाल दिया। श्याम राव इस प्रोजेक्ट का ग्लोबल पेटेंट भी करवा चुके हैं, लेकिन उपकरण को दोबारा इन्स्टॉल करने से घबरा रहे हैं। इस इनोवेशन को प्रोत्साहित करने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी की मंशा यही थी कि इस तरह देश में बायोफ्यूल के उपयोग को बढ़ावा मिले, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। अब श्याम राव का मनोबल भी कमजोर पड़ता नजर आ रहा है।
ऐसे एकत्र की गैस
श्याम राव ने बताया कि साल 2016 में मैंने नालियों से पानी इकट्ठा किया। पानी के बुलबुले इकट्ठा करने के लिए मिनी 'कंडक्टर' बनाया। गैस होल्डर के लिए मैंने एक ड्रम का इस्तेमाल किया। मैंने जब इसका परीक्षण किया तो यह काम करने लगा। इसे मैंने गैस स्टोव से जोड़ा और फिर चाय बनाने लगा। फिर मैंने इसे अपने घर पर भी लगाया, जहां इसकी मदद से खाना बनाया।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अमित दुबे ने बताया कि श्याम राव सिर्के का बनाया इक्यूपमेंट काफी कारगर था। इसे वृहद स्तर तक पहुंचाने के लिए हमारे संस्थान ने उन्हें 40 हजार रुपये की वित्तीय सहायता दी थी। इसके बाद उसे तैयार कर उपयोग किया जाने लगा। कुछ समय बाद जब उन्होंने बताया कि निगम के सफाईकर्मियों ने उनके इक्यूपमेंट को फेंक दिया तो हमने एफआरआई करवाने के लिए भी कहा था।