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क्या हमें प्रकृति के इस संतुलन को अपने जीवन से जोड़कर सीख नहीं लेनी चाहिए?

कृति में सारी चीजें एक-दूसरे के साथ संतुलन बनाकर रहती हैं। इसके लिए उसकी एक योजना होती है। जाने-माने अमेरिकी लेखक नेपोलियन हिल ने अपनी पुस्तक ‘सक्सेस हैबिट्स’ में इन बातों पर रोचक चर्चा की है। पेश हैं इसके साभार संपादित अंश

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 11:23 AM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 11:23 AM (IST)
क्या हमें प्रकृति के इस संतुलन को अपने जीवन से जोड़कर सीख नहीं लेनी चाहिए?
जब हम प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं तो मुश्किल में पड़ जाते हैं।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। मुश्किल वक्त में प्रकृति के साथ सामंजस्य या संतुलन की जरूरत हम ज्यादा महसूस कर रहे हैं। हमेशा प्रकृति से छेड़छाड़ करना भारी पड़ता है। जब हम प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं तो मुश्किल में पड़ जाते हैं। दरअसल, प्रकृति में सारी चीजें एक-दूसरे के साथ संतुलन बनाकर रहती हैं। इसके लिए उसकी एक योजना होती है। क्या हमें प्रकृति के इस संतुलन को अपने जीवन से जोड़कर सीख नहीं लेनी चाहिए? जाने-माने अमेरिकी लेखक नेपोलियन हिल ने अपनी पुस्तक ‘सक्सेस हैबिट्स’ में इन बातों पर रोचक चर्चा की है। पेश हैं इसके साभार संपादित अंश :

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जरा सोचिए, जिस छोटी-सी गेंदनुमा पृथ्वी पर हम रहते हैं, वह 365 दिनों में सूर्य का चक्कर लगा लेती है। इस दौरान वह सूर्य और सभी ग्रहों से उचित दूरी भी बनाए रखती है। कितना व्यवस्थित रूप से यह सब चल रहा है। शाम को सूरज अस्त होता है तो हम सोने चले जाते हैं कि अगली सुबह यह पूरब दिशा से निकलेगा। खगोलशास्त्री सैकड़ों साल पहले से यह अनुमान लगा लेते हैं कि किन तारों और ग्रहों के बीच का संबंध कैसा होगा?

प्रकृति अपनी एक निश्चित योजना में नहीं होती तो क्या ऐसा संभव होता? इसके सुचारु रूप से चलने के कारण सभी का अस्तित्व बना हुआ है। चाहे वह सजीव हो या निर्जीव, हर चीज की अपनी प्रकृति होती है। क्या आपने कभी यह सुना कि किसी किसान ने गेहूं बोया हो और गेहूं के बजाय मक्का उग आया हो? सबकी तरह मनुष्यों पर भी यही बात लागू होती है। इन नियमों को लागू करने में प्रकृति अपनी निश्चितता को लेकर कभी बदलाव नहीं करती। क्या यह अपने आप में हैरान करने वाली बात नहीं कि आप ऊर्जा या तत्व को नष्ट नहीं कर सकते? आप दोनों की मात्रा को घटा या बढ़ा नहीं सकते। आप जब ऊर्जा का उपयोग कर लेते हैं तो प्रकृति के पास उसे दोबारा भरने और अपने भंडार को संतुलित करने का अपना तरीका होता है।

चलें प्रकृति के संग : हम गौर करें तो पाएंगे कि प्रकृति अपना फैसला कभी नहीं बदलती। यह कभी लापरवाह नहीं होती है। यदि आप जीवन की निश्चितता को समझना चाहते हैं तो आपको प्रकृति की हर चीज पर गौर करना चाहिए। इंसान के दिमाग को भी प्रकृति ने निश्चित ढंग से बनाया है।

प्रत्येक व्यक्ति चाहे तो अपनी ही पसंद की परिस्थितियां सामने ला सकता है। वह तय कर सकता है कि वह किस रूप में जाना जाएगा। प्रकृति ने इंसान को ऐसी क्षमता दी है, पर इंसान प्रकृति के विधान को बदलकर ऐसा नहीं कर सकता। उसे प्रकृति के संतुलन के नियम पर चलना होगा। जब आप किसी सिद्धांत के मजबूत होने की पुष्टि प्रकृति से कर लें तो आप गलत नहीं हो सकते। इसके नियमों के साथ खुद को ढाल लें तो यह हमारी सहायक बन जाती है और न कर सकें तो यह विध्वंसक हो जाती है।


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