भाजपा को हैसियत बताना चाहती है शिवसेना
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र में चल रहे गणपति उत्सव को ध्यान में रखकर शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] ने 20 सितंबर के राष्ट्रव्यापी बंद में शामिल न होने का निश्चय किया है। लेकिन इसी बहाने शिवसेना मुंबई में भाजपा को उसकी जमीनी हैसियत का अहसास भी कराना चाहती है।
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र में चल रहे गणपति उत्सव को ध्यान में रखकर शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [मनसे] ने 20 सितंबर के राष्ट्रव्यापी बंद में शामिल न होने का निश्चय किया है। लेकिन इसी बहाने शिवसेना मुंबई में भाजपा को उसकी जमीनी हैसियत का अहसास भी कराना चाहती है।
महाराष्ट्र और विशेषकर मुंबई में पिछले 40 वर्षो से किसी भी राजनीतिक बंद की सफलता शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के इशारों पर निर्भर रहती आई है। पिछले 25 वर्षो से महाराष्ट्र में गठजोड़ की राजनीति करती आ रही भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में अब वह गरमाहट नहीं रह गई है। विधान परिषद में नेता विरोधी दल का पद पहले ही भाजपा के पास था। पिछले विधानसभा चुनाव में संख्याबल में शिवसेना से आगे निकलने के बाद विधानसभा के नेता विरोधी दल का पद भी भाजपा के पास आ गया है। इससे शिवसेना को यह डर भी सताने लगा है कि 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद यही स्थिति रही तो सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद पर भाजपा दावा ठोक सकती है।
इस आशंका को ध्यान में रखते हुए ही शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने स्वयं पहल कर नाराज भतीजे राज ठाकरे को मनाने की शुरुआत कर दी है। बताया जाता है कि पुत्र उद्धव की बीमारी के समय स्वयं बाल ठाकरे ने अलीबाग जा रहे राज से संपर्क कर उन्हें मुंबई वापस लौटने एवं उद्धव की देखरेख करने के आदेश दिए थे। उसके बाद से दोनों चचेरे भाइयों के बीच जमी बर्फ पिघलती दिखाई दे रही है। राज के सकारात्मक रुख को देखते हुए बाल ठाकरे एवं उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के भी हौसले बुलंद हैं। सभी मानते हैं कि राज और उद्धव के एक साथ आने के बाद न सिर्फ भाजपा को मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से रोका जा सकता है, बल्कि अपनी शर्तो पर किसी भी दल से समझौता कर सत्ता हासिल की जा सकती है। यही कारण है कि हमेशा मोदी की प्रशंसा करने वाले ठाकरे ने हाल ही में प्रधानमंत्री पद के लिए सुषमा का नाम लेकर भाजपा में एक और दरार डालने की कोशिश की है। माना जा रहा है कि 20 अगस्त को महंगाई के विरोध में विपक्ष द्वारा आहूत बंद को महाराष्ट्र में वैसी सफलता हासिल नहीं होगी, जैसी शिवसेना समर्थित बंद को मिला करती थी। बंद असफल होने पर मुंबई में शिवसेना यह संदेश देने में सफल होगी कि उसके सहयोग के बिना महाराष्ट्र में भाजपा शून्य है। भाजपा को कमजोर साबित करके शिवसेना 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से अपनी शर्तो पर सीटों का बंटवारा करना चाहती है। ताकि 1995 की तरह मुख्यमंत्री पद पर उसका दावा बरकरार रहे।
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