महाराष्ट्र में भाजपा का वर्चस्व शिवसेना को नापसंद
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। लोकसभा चुनाव परिणाम आते ही महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना-भाजपा के बीच वर्चस्व की खींचतान शुरू हो गई है। भाजपा पांच महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भी लोकसभा चुनाव जैसी ही सफलता हासिल कर मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोकना चाहती है, जबकि शिवसेना को सूबे की राजनीति में भाजपा का वर्चस्व मंजूर नहीं है। ि
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। लोकसभा चुनाव परिणाम आते ही महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना-भाजपा के बीच वर्चस्व की खींचतान शुरू हो गई है। भाजपा पांच महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भी लोकसभा चुनाव जैसी ही सफलता हासिल कर मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोकना चाहती है, जबकि शिवसेना को सूबे की राजनीति में भाजपा का वर्चस्व मंजूर नहीं है।
शिवसेना-भाजपा का गठबंधन करीब 29 साल पुराना है। दोनों दलों के दो दिवंगत नेताओं बालासाहब ठाकरे और प्रमोद महाजन ने इस गठबंधन की नींव रखी थी। गठबंधन की शुरुआत से ही शिवसेना राज्य की राजनीति में ज्यादा रुचि लेकर केंद्र में भाजपा के कनिष्ठ सहयोगी की भूमिका निभाती रही। इस नीति के तहत ही विधानसभा चुनाव में शिवसेना अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती है और लोकसभा चुनाव में भाजपा। इसके बावजूद यह नियम बनाया गया था कि राज्य में जिस दल की सीटें ज्यादा आएंगी, मुख्यमंत्री या विपक्ष का नेता उसका ही बनेगा। 1995 में इन्हीं नियमों का पालन करते हुए शिवसेना को मुख्यमंत्री का पद मिला था। लेकिन, 2009 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 171 सीटों पर लड़कर भी 117 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा से पीछे रह गई और विपक्ष के नेता का पद गंवा बैठी।
शिवसेना को आशंका है कि पांच महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी मोदी लहर का असर रहेगा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष देवेंद्र फणनवीस ने अमित शाह को महाराष्ट्र चुनाव की जिम्मेदारी देने की मांग भी रख दी है, ताकि यहां भी शाह उत्तर प्रदेश जैसा जादू चला सकें। लेकिन, शिवसेना को महाराष्ट्र भाजपा की यह मांग फूटी आंखों नहीं सुहा रही है। इसलिए शिवसेना ने अभी से कहना शुरू कर दिया है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा की अधिक सीटें आने के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर दावा शिवसेना का ही रहेगा।
दूसरी ओर, भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं 1995 की गठबंधन सरकार में राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे गोपीनाथ मुंडे अभी से मुख्यमंत्री पद पर नजर गड़ाए हैं। भाजपा सूत्रों के अनुसार वह केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री पद पाने की इच्छा भी नहीं रखते और अगले पांच महीनों तक पूरा ध्यान महाराष्ट्र पर देना चाहते हैं।