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Positive India : इस तरीके से बढ़ जाएगी फलों की शेल्फ लाइफ, वैज्ञानिकों ने बनाई ये तकनीक

भारतीय वैज्ञानिकों ने कार्बन (ग्राफीन ऑक्साइड) से बने एक ऐसे मिश्रित कागज को विकसित किया है जिसमें प्रिजर्वेटिव्स मिलाए गए हैं। इससे फलों के तोड़े जाने के बाद उनके शेल्फ जीवन को बढ़ाने में मदद करने के लिए रैपर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Thu, 12 Aug 2021 08:45 AM (IST)Updated: Thu, 12 Aug 2021 08:46 AM (IST)
Positive India : इस तरीके से बढ़ जाएगी फलों की शेल्फ लाइफ, वैज्ञानिकों ने बनाई ये तकनीक
फलों का संरक्षण आसान नहीं होता है। सही तरीके से संरक्षित न करने पर ये जल्द खराब होने लगते हैं।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक का ईजाद किया है जिसके द्वारा फलों की शेल्फ लाइफ बढ़ाई जा सकती है। दरअसल फलों के साथ यह समस्या होती है कि इन्हें संरक्षित करना आसान नहीं होता है। सही तरीके से संरक्षित न करने पर फल बहुत जल्दी खराब होने लगते हैं। इसकी वजह से कुल उत्पादित फलों का 50 प्रतिशत बर्बाद हो ही जाता है। इसकी वजह से उत्पादकों एवं विक्रेताओं को भारी नुकसान होता है। पारंपरिक रूप से फल संरक्षण के लिए मोम, एडिबल पॉलीमर का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने की संभावना रहती है।

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ये किया विकसित

भारतीय वैज्ञानिकों ने कार्बन (ग्राफीन ऑक्साइड) से बने एक ऐसे मिश्रित कागज को विकसित किया है जिसमें प्रिजर्वेटिव्स मिलाए गए हैं। इससे फलों के तोड़े जाने के बाद उनके शेल्फ जीवन को बढ़ाने में मदद करने के लिए रैपर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस नई तकनीक में ये प्रिजर्वेटिव युक्त रैपर जरूरत पड़ने पर ही प्रिजर्वेटिव छोड़ते हैं। इन रैपर्स का पुन: उपयोग किया भी जा सकता है और जो वर्तमान तकनीक में संभव नहीं है। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, मोहाली के डॉ. पी. एस विजयकुमार के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक ऐसे विकल्प की खोज की जो काम न आने वाले पदार्थों से बनाया जा सकता है और जिससे फल में परिरक्षकों का अवशोषण नहीं हो सकेगा।

ये तकनीक अभी होती है इस्तेमाल

फलों को प्रिजर्वेटिव्स के घोल में डुबाने की वर्तमान तकनीक जिसमें प्रिजर्वेटिव्स को अधिकतर फल द्वारा सोख लिया जाता है। जिससे उपभोक्ताओं के शरीर में उपचार न हो सकने वाली विषाक्तता (क्रोनिक टोक्सिसिटी) आ जाती है।

ऐसे बनाया जाता है प्रिजर्वेटिव

इसके लिए सक्रिय किए गए ग्राफीन ऑक्साइड से भरे अणुओं को प्रिजर्वेटिव के साथ मिश्रित किया गया था। इस उच्च प्रिजर्वेटिव लोडेड ग्रेफीन ऑक्साइड को जब फलों को लपेटने के लिए उपयोग किए जाने वाले कागज में डाला जाता है तो यह सुनिश्चित करता है कि फल में विषाक्त (जहरीले) अवशोषित न हो पाएं। लेकिन फल के अधिक पक जाने या रोगजनकों से संक्रमित हो जाने की स्थिति में साइट्रिक एसिड और ऑक्सालिक एसिड के स्राव से अम्लता बढ़ जाती है जिसके बाद ही फल के संरक्षण के लिए प्रिजर्वेटिव उत्सर्जित होने शुरू हो जाते है। अन्यथा प्रिजर्वेटिव कार्बन आवरण के भीतर ही बना रहता है। फल को डुबाने की विधि में प्रिजर्वेटिव फल के साथ ही व्यर्थ हो जाएगा, वहीं फलों की अगली खेप के संरक्षण के लिए फल की खपत के बाद इन रैपरों का फिर से उपयोग किया जा सकता है। यह प्रक्रिया विवरण 'एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेस' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

ये होते हैं फायदे

डॉ. विजयकुमार कहते हैं कि यह नया उत्पाद फलों की तोड़े जाने के बाद शेल्फ लाइफ बढ़ाकर किसानों और खाद्य उद्योग को लाभ पहुंचा सकता है। फलों के लिए इस रैपर का उपयोग करने से यह भी सुनिश्चित होगा कि ग्राहक को स्वस्थ गुणवत्ता वाले फल मिले, क्योंकि हमने फिनोल सामग्री में सुधार देखा है। इस ग्राफीन फ्रूट रैपर के उत्पादन के लिए केवल जैविक पदार्थों (बायोमास) की ऊष्मा से उत्पादित कार्बन की आवश्यकता होती है, इसलिए इससे बायोमास की खपत बढने और रोजगार सृजन में भी लाभ होगा।


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