हिंदी को सभी भारतीयों की भाषा नहीं माना जा सकता: शशि थरूर
शशि थरूर ने कहा कि मैं हिंदी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि हिंदी सभी भारतीयों की भाषा है।
जयपुर, जेएनएन। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन रविवार को आयोजित एक सत्र में सांसद और लेखक शशि थरूर ने कहा कि मैं हिंदी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि हिंदी सभी भारतीयों की भाषा है। आप ऐसा कर सकते हैं कि भाषा को लेकर जोशी और शुक्ला के लिए तो आसानी हो जाए और सुब्रमण्यम और स्वामी को परेशानी हो।
भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ लिखी गई अपनी किताब 'अंधकारकाल' पर आधारित सत्र में दैनिक जागरण के अनंत विजय और पत्रकार सौरभ द्विवेदी से बातचीत करते हुए थरूर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया जा सकता है, लेकिन उसे समझेगा कौन। अपने वोटरों को कोई संदेश पहुंचाने के लिए वहां हिंदी में भाषण देना चाहते हैं तो अलग बात है। उन्होंने कहा कि भारत बहुभाषी देश है और यह नहीं भूलना चाहिए कि भाषा को लेकर दक्षिण भारत में दंगे तक हो चुके हैं और इसी के बाद त्रिभाषा फॉर्मूला लागू किया गया था।
भारत में ब्रिटिश राज की बात करते हुए शशि थरूर ने कहा-'अंग्रेजों के कारण ही भारत में पहले अकाल के कारण करोड़ों लोगों की जान गई। बंगाल के अकाल के समय लोग यहां मर रहे थे और अंग्रेज अपने यहां बफर स्टॉक के लिए यहां का अनाज वहां भेज रहे थे। अंग्रेजों ने ही जलियांवाला बाग जैसी घटना की। मैं मानता हूं कि अंग्रेज राजपरिवार को यहां जलियांवाला बाग आकर यहां के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। इसे लेकर वहां के भारतीय मूल के एक सांसद मुहिम भी चला रहे हैं। हालांकि लगता नहीं है कि अंग्रेज ऐसा करेंगे, क्योंकि उन्हें फिर बहुत चीजों के लिए माफी मांगनी पड़ जाएगी। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि अंग्रेजों ने एक पूरी सभ्यता को न सिर्फ लूटा, बल्कि बर्बाद कर दिया।'
अनंत विजय ने उनसे पूछा कि क्या माफी वाले मामले पर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहयोग लेना चाहेंगे तो थरूर सवाल टाल गए और बोले कि कुछ सवालों का जवाब नहीं देना ही बेहतर होता है। इस किताब को लेकर भाजपा नेताओं की ओर से मिल रही तारीफों को लेकर पूछे गए सवाल पर थरूर ने कहा कि किताब में ऐसा कुछ है ही नहीं, जिससे किसी को कोई दिक्कत हो। उन्होंने कहा- 'मैंने जो लिखा है, उससे हर भारतीय सहमत होगा।' कोहिनूर की वापसी के सवाल पर थरूर ने कहा- 'मुझे नहीं लगता कि कोहिनूर वापस हो पाएगा, क्योंकि लंदन में जितने संग्रहालय हैं, वे बड़े चोर बाजार की तरह है। वहां ज्यादातर चीजें इधर-उधर से चुराकर लाई गई हैं। अंग्रेज कोहिनूर लौटाएंगे तो उन्हें कई देशों का बहुत कुछ लौटाना पड़ेगा।' उन्होंने कहा कि ब्रिटेन अपने बच्चों को उपनिवेशकाल के बारे में कुछ नहीं पढ़ाता और उस काल की बातें छुपाना चाहता है।
गांधी के अंहिसक आंदोलन के बारे में किताब में की गई टिप्पणी पर थरूर ने कहा कि गांधी के अंहिसक आंदोलन को अंग्रेज तो समझ गए और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जो कुछ किया, वह बिल्कुल सही था, लेकिन सवाल यह है कि हिटलर या आज के आतंकवादियों की सोच के आगे गांधी के उपवास क्या असर डाल पाएंगे? हमें यह तो देखना ही होगा कि हमारा दुश्मन कैसा है।
हिंदुत्व पर लिखी किताब के बारे में जब अनंत विजय ने कहा कि आखिर भाजपा ने आपको इतना तो उकसा ही दिया कि आपको हिंदुत्व पर किताब लिखनी पड़ी। इस पर थरूर ने कहा- 'मैंने यह किताब सिर्फ इसलिए लिखी कि मैं यह बताना चाहता था कि मेरा हिंदुत्व सावरकर या गोलवलकर का हिंदुत्व नहीं है, बल्कि विवेकानंद का हिंदुत्व है।' अनंत विजय ने पूछा कि क्या 2019 में आप भाषा को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो थरूर ने कहा कि 2019 में हमारे पास मोदी सरकार के खिलाफ बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था की खराब हालत जैसे कई मुद्दे हैं।
जो मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था नहीं संभाल सकते, उन्हें पद पर रहने का अधिकार नहीं : शोभा डे
फिल्म पद्मावत को लेकर उठा विवाद जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भी लगातार छाया है। चौथे दिन एक बार फिर इस पर बात हुई और लेखिका शोभा डे ने कहा कि जो मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था नहीं संभाल सकते, उन्हें पद पर रहने का अधिकार नहीं है। 'दोज वर द डेज' सत्र में पत्रकार वीर सिंघवी से बातचीत करते हुए शोभा डे ने कहा- 'मैंने फिल्म पद्मावत देखी है। मैं कह सकती हूं कि इस फिल्म पर राजपूतों को गर्व होना चाहिए। मुझे अभी तक समझ नहीं आ रहा है कि वे विरोध किस बात का कर रहे हैं। भारत एक खोज धारावाहिक में श्याम बेनेगल इसे दिखा चुके हैं, लेकिन तब कोई विरोध नहीं हुआ, लेकिन आज इसका राजनीतिकरण किया गया है।' कहा कि फिल्म के विरोध के नाम पर बच्चों की स्कूल बस को निशाना बनाया जा रहा है तो यह कैसा विरोध है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता किसी करणी सेना से। कानून व्यवस्था बनाए रखना सरकार का काम है और जो मुख्यमंत्री ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें पद पर नहीं रहना चाहिए।