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शारदीय नवरात्र : जानिए मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप देवी ‘शैलपुत्री’ के बारे में

शारदीय नवरात्र का प्रारंभ मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की उपासना से होता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 10 Oct 2018 11:41 AM (IST)Updated: Wed, 10 Oct 2018 11:41 AM (IST)
शारदीय नवरात्र : जानिए मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप देवी ‘शैलपुत्री’ के बारे में

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

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तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्मांडेति चतुर्थकम्।।

पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं

कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नमानि ब्रह्मणैव महात्मना।।

[पं. अजय कुमार द्विवेदी]। शारदीय नवरात्र का प्रारंभ मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की उपासना से होता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं। श्वेत व दिव्यस्वरूप वाली देवी वृषभ पर आरूढ़ हैं। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है। कथा के अनुसार, मां शैलपुत्री पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं, जिनका विवाह शिव से हुआ था।

यज्ञ के आयोजन में दक्ष द्वारा शिव को अपमानित करने से सती ने योगाग्नि में अपने तन को भस्म कर दिया था। अगले जन्म में हिमालय पुत्री के रूप में उनका अवतरण हुआ और वे शैलपुत्री कहलाईं। इन्हें पार्वती भी कहते हैं, जो भगवान शंकर की अद्र्धांगिनी हैं।

स्वरूप का ध्यान

मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमारे मन को परिमार्जित कर हमारे भीतर विनम्रता व सौम्यता का विकास करता है। जिस प्रकार श्वेत रंग प्रकाश की सभी रश्मियों को परावर्तित कर देता है, उसी प्रकार मां का यह स्वरूप हमें जीवन में निस्पृह रहने का संदेश देता है। यह हमें जीवन के कठिन संघर्षों में भी धैर्य, आशा व विश्वास के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता है। मां का श्वेत स्वरूप हममें सद्प्रवृत्ति का आत्मिक तेज प्रदान करता है। मां वृषभ पर आरूढ़ हैं। वृषभ धर्म का प्रतीक है। सद्प्रवृत्तियां ही धर्म हैं, अत: हमें उन्हें धारण करने का संदेश मिलता है। बाएं हाथ में कमल हमें पवित्र कर्मों में प्रवृत्त होने का संदेश प्रदान करता है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल हमारे त्रितापों (दैहिक, दैविक व भौतिक) को नष्ट करता है।

आज का विचार

संसार के विषयों से निरासक्त होकर हमारे भीतर सरलता का आविर्भाव होता है।

ध्यान मंत्र

वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृत शेखराम्।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।। 


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