Shaheed Diwas 2019: क्यों सबसे अलग थे शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव
अंग्रेजी हुकूमत भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव से इतना खौफ खाती थी की उनको एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया था।
नई दिल्ली, जेएनएन। 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा...।' ये महज कुछ पंक्तियां नहीं बल्कि शहीदों की शहादत के लिए एक क्रांतिकारी द्वारा लिखी हुई गाथा है। आज 23 मार्च है यानी शहीदों की शहादत को याद करने का दिन। 23 मार्च 1931 को आज ही के दिन आजादी के तीन मतवालों ने हसते हसते फांसी के फंदे को चूम लिया था।
आज के दिन को इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। 23 मार्च की आधी रात को अंग्रेज हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फंसी पर लटका दिया था। देश की आजादी के लिए खुद को देश पर कुर्बान करने वाले इन महान क्रांतिकारियों को याद करने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तीनों शहीदों को याद करते हुए एक ट्वीट किया है। इस ट्वीट में उन्होंने शहीदों को नमन किया है।
आजादी के अमर सेनानी वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद दिवस पर शत-शत नमन। भारत माता के इन पराक्रमी सपूतों के त्याग, संघर्ष और आदर्श की कहानी इस देश को हमेशा प्रेरित करती रहेगी। जय हिंद! pic.twitter.com/IpdJqjhR9q — Chowkidar Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2019
भारत उन क्रांतिकारियों की कर्मभूमी है, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किये बिना देश के लिए अपने को न्यौछावर कर दिया। वैसे तो देश को आजाद कराने के लिए अनगिनत विरों ने अपने प्रणों की कुर्बानी दी, लेकिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की लोकप्रियता सबसे अलग थी। तीनों क्रांतिकारियों ने अपने दम पर अंग्रेजी हुकूमत को हीला कर रख दिया था।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की लोकप्रियता अंग्रेज हुकूमत को इतनी ज्याद खटक रही थी की तीनों को एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया। दरअसल 8 अप्रैल 1929 को चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 'पब्लिक सेफ्टी' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' के विरोध में सेंट्रेल असेंबली में बम फेंका गया, और बिल विरोधी नारे लगाए गए। इस दौरान भगत सिंह ने अपनी गिरफ्तारी दी। जिसके बाद क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया।
भगत सिंह की गिरफ्तारी की खबर से देश में आजादी की आग और तेज हो गई। अंग्रेज हुकूमत को इस आंच को झेल पाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए भारत के तीनों क्रांतिकारियों को एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया।