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900 करोड़ के हीरे को पेपर वेट बनाने वाले निजाम की हैरतअंगेज कहानी, पहनते थे फटा कुर्ता

हैदराबाद के सातवें निजाम के बारे में कहा गया है कि वह दुनिया के सबसे अमीर शख्‍स थे। हालांकि उनके जीवन के कुछ दूसरे दिलचस्‍प पहलू भी हैं जिन्‍हें जानकार आप हैरान रह जाएंगे...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 04 Oct 2019 04:50 PM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 09:06 AM (IST)
900 करोड़ के हीरे को पेपर वेट बनाने वाले निजाम की हैरतअंगेज कहानी, पहनते थे फटा कुर्ता

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। हैदराबाद के तत्कालीन सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान (Mir Osman Ali Khan) का नाम इन दिनों सुर्खियों में है। इसकी वजह उनकी 300 करोड़ रुपये की बची संपत्ति है, जिसे लेकर लंबी चली कानूनी लड़ाई के बाद ब्रिटेन की हाईकोर्ट ने भारत और निजाम के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया है। हालांकि, यह संपत्ति तो निजाम के उस अकूत खजाने का एक छोटा-सा हिस्‍सा भर है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मीर उस्मान अली खान के पास इतनी अकूत दौलत और कई वजनदार हीरे थे, जिनका इस्‍तेमाल वह पेपरवेट की तरह करते थे। रिपोर्ट के मुताबिक, उनके पास 230 अरब डॉलर की संपत्ति थी और वह उस समय में दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक थे। आइये जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ दिलचस्प पहलुओं के बारे में... 

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चूहों ने कुतर दिए थे नौ मिलियन पाउंड के नोट 

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1911 से 1948 तक हैदराबाद पर शासन करने वाले मीर उस्‍मान अली खान असल में एक सम्राट जैसा वैभव वाले निजाम थे। उनके पास इतनी दौलत थी कि उसकी समय से हिफाजत नहीं हो पाती थी। एकबार तो नौ मीलियन पाउंड के नोट जिसे उन्‍होंने अपने तहखाने में रखे थे, चूहों ने कुतर कर नष्‍ट कर दिया था। जवाहरातों के उनके कलेक्‍शन में एक 185 कैरेट का जैकब डायमंड था जो एक शुतुरमुर्ग के अंडे के बराबर आकार वाला था। इसकी कीमत 900 करोड़ रुपये है। यह दुनिया का सातवां सबसे बड़ा हीरा है। फ‍िलहाल, इसका मालिकाना हक भारत सरकार के पास है।

दिलचस्‍प है जैकब डायमंड की कहानी

कहते हैं कि हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खां पाशा ने इस हीरे को जैकब नाम के व्यापारी से खरीदा था। उसी व्‍यापारी के नाम पर इस हीरे का नाम जैकब रखा गया। वैसे इस हीरे को इंपीरियल या ग्रेट व्हाइट या विक्टोरिया के नाम से भी जाना जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका की किंबर्ली खान में मिला था और तराशने से पहले इसका वज़न 457.5 कैरट था। रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच फुट तीन इंच लंबे मीर उस्‍मान अली खान अपनी सल्‍तनत को लेकर डरे रहते थे। वह धूम्रपान के आदी थे। उनके महल के बगीचे में तिरपाल के नीचें लॉरियां थी जो कि बेशकीमती जवाहरातों और सोने की सिल्लियों से भरी थीं। यह लॉरियां बगीचे में एक ही जगह पड़े-पड़े सड़कर खराब हो गईं।

यह बदलाव देख होती है हैरानी 

रिपोर्ट के मुताबिक, वह लॉरियों के साथ सारी रकम लेकर फरार हो सकते थे, लेकिन उन्‍होंने सभी लॉरियों को तिरपाल के नीचे पड़ा रहने दिया, जिससे वे वहीं सड़ कर खराब हो गईं। हालांकि, उनकी सुरक्षा में तीन हजार अफ्रीकी अंगरक्षक तैनात रहते थे। कहते हैं कि उनके पास अकेले 100 मीलियन पाउंड के सोने के गहने थे। अन्‍य धातुओं के गहनों की कीमत 400 मिलियन पाउंड थी। मौजूदा वक्‍त में यह रकम अरबों पाउंड के बराबर कीमत की थी। हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया वह कंजूस होते गए। रिपोर्ट कहती है कि समय के साथ हुए इस बदलाव से लोगों को कई बार हैरानी होती है। वह खुद के बुने मोजे पहनने लगे और फटे कुर्तों को सिलकर पहनने लगे, जबकि उनकी अलमारियां बेशकीमती कपड़ों से भरी रहती थीं। यही नहीं वह महीनों तक इन कपड़ों को बदलते भी नहीं थे। बुढ़ापे में वह एक साधारण बरामदे में सोते थे जिसमें बकरी भी बंधी होती थी।

रकम को सुरक्षित रखने के लिए उठाया कदम पड़ा भारी 

रिपोर्टों में कहा गया है कि आजादी के बाद भारत में जब रियासतों का विलय जारी था, तब निजाम मीर उस्मान अली खान ने 1948 में करीब 10,07,940 पाउंड और नौ शिलिंग की रकम को ब्रिटेन में पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहीमतुल्ला को अपने वित्त मंत्री के जरिए सुरक्षित रखने के इरादे से दी थी। तभी से यह रकम नैटवेस्ट बैंक पीएलसी के उनके खाते में जमा है। यह रकम अब बढ़कर करीब 300 करोड़ रुपये हो गई है। कहते हैं कि हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के बाद सन 1950 में निजाम ने इस रकम पर अपना दावा किया, लेकिन उच्चायुक्त रहिमतुल्ला ने पैसे वापस करने से इनकार कर दिया था और कहा कि ये अब पाकिस्तान की संपत्ति बन गई है। 

70 साल लंबी लड़ाई के बाद मिला हक 

साल 1954 में 7वें निजाम और पाकिस्तान के बीच इस रकम को लेकर कानूनी जंग की शुरुआत हुई थी। नि‍जाम ने अपने पैसे वापस पाने के लिए ब्रिटेन की हाईकोर्ट का रुख किया था। पाकिस्तान के सॉवरेन इम्यूनिटी का दावा करने से केस की प्रक्रिया रुक गई थी। हालांकि, साल 2013 में पाकिस्तान ने रकम पर दावा करके सॉवरेन इम्यूनिटी खत्म कर दी। इसके बाद मामले की कानूनी प्रक्रिया फिर शुरू हुई थी। पाकिस्तान सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई में सातवें निजाम के वंशजों और हैदराबाद के आठवें निजाम प्रिंस मुकर्रम जाह तथा उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह ने भारत सरकार से हाथ मिला लिया था। अब लंदन की रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा है कि धन पर सातवें निजाम का अधिकार था और अब उनके उत्तराधिकारियों और भारत का इस पर अधिकार है।


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