Move to Jagran APP

पिछड़ा घोषित करने के राज्य के अधिकार छीनने के फैसले पर पुनर्विचार की मांग

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से मराठों को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र के कानून को रद कर दिया था और आरक्षण की 50 फीसद सीमा तय करने वाले 1992 के मंडल फैसले को बड़ी पीठ को भेजने से इन्कार कर दिया था।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 14 May 2021 07:02 PM (IST)Updated: Fri, 14 May 2021 07:02 PM (IST)
पिछड़ा घोषित करने के राज्य के अधिकार छीनने के फैसले पर पुनर्विचार की मांग
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, संविधान संशोधन से राज्यों के अधिकार नहीं छीने

नई दिल्ली, प्रेट्र। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके उसके पांच मई के बहुमत के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान के 102वें संशोधन ने नौकरियों और प्रवेश में आरक्षण प्रदान करने के लिए राज्य सरकारों के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) घोषित करने के अधिकार छीन लिए हैं।

loksabha election banner

केंद्र सरकार का कहना है कि संविधान संशोधन ने एसईबीसी की पहचान और उनकी घोषणा के राज्य सरकारों के अधिकार नहीं छीने थे और संशोधन में जो दो प्रविधान जोड़े गए थे वे संघीय ढांचे का उल्लंघन नहीं करते।

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से मराठों को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र के कानून को रद कर दिया था और आरक्षण की 50 फीसद सीमा तय करने वाले 1992 के मंडल फैसले को बड़ी पीठ को भेजने से इन्कार कर दिया था। पीठ ने 3:2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि 102वां संविधान संशोधन केंद्र सरकार को एसईबीसी की पहचान करने और उनकी घोषणा करने का विशिष्ट अधिकार देता है और सिर्फ राष्ट्रपति ही सूची को अधिसूचित कर सकते हैं। इसी संविधान संशोधन के जरिये नेशनल कमीशन फार बैकवर्ड क्लासेज (एसीबीसी) का गठन किया गया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.