नई दिल्ली, जेएनएन। जिस देश की वैश्विक वाहनों में हिस्सेदारी महज एक फीसद हो और सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में भागीदारी 10 फीसद हो, तो इस विडंबना को शायद सबसे बड़ी त्रासदी ही कहेंगे। नीम पर चढ़े करेले की स्थिति यह है कि इसको लेकर अन्यमनस्कता तारी है। नीति-नियंताओं पर भी और सड़कों पर जान गंवाने वाले लोगों के स्तर पर भी। हर साल डेढ़ लाख लोग हमारी सड़कों पर दम तोड़ देते हैं। हजारों लोग जीवन भर के लिए अपंग हो जाते हैं।
दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था को सिर्फ यह त्रासदी हर साल तीन फीसद की चोट दे जाती है। अलबत्ता विदेश की तुलना में कड़े और सख्त प्रविधान नहीं है, दूसरे जो प्रविधान और नियम हैं, लोग उनके अनुपालन को ठेंगा दिखाते हैं। हाल ही में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री की सड़क हादसे में मौत ने इस त्रासदी को सबके सामने नए रूप में उजागर किया है। आटोमोबाइल कंपनियों को सीट बेल्ट सहित अन्य सुरक्षा मानकों को लगाने और लोगों से अनुपालन कराया जाना अब अपरिहार्य हो चला है। ऐसे में सड़क दुर्घटनाओं के रूप में देश का अनमोल मानव संसाधन को निगलने वाली इस बड़ी त्रासदी को रोके जाने संबंधी उपायों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
दुर्घटना की स्थिति में कारों में सुरक्षा की दो अहम व्यवस्थाएं हैं सीट बेल्ट और एयरबैग। इनमें से सीट बेल्ट को प्राइमरी और एयरबैग को सेकेंडरी सिस्टम कहा जाता है। सीट बेल्ट में फिजिक्स का प्रयोग होता है और एयरबैग में केमिस्ट्री का।
-दरअसल, जब हम किसी गाड़ी में होते हैं, तो हमारा शरीर गाड़ी की दिशा में उसी गति से चल रहा होता है। एक्सीडेंट या अचानक ब्रेक लगने की स्थिति में गाड़ी तो रुक जाती है, लेकिन हमारा शरीर उसी गति से आगे की ओर जाता है, जिससे हमें झटका लगता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई 100 किमी प्रति घंटा की गति से कार चला रहा हो, तो एक्सीडेंट की स्थिति में गाड़ी की गति तो अचानक बहुत कम हो जाएगी, लेकिन उसका सिर उसी तेज गति से सामने डैशबोर्ड या स्टीयरिंग पर टकराएगा। सीट बेल्ट को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि अचानक ब्रेक लगने की स्थिति में वह आपके शरीर को आगे टकराने से रोक ले। -इसके बाद नंबर आता है एयरबैग का।
एयरबैग में एक रासायनिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। गाड़ी में लगे हुए सेंसर की मदद से किसी भी टक्कर की स्थिति में एयरबैग सिस्टम को एक्टिवेट होने का सिग्नल मिलता है। उसमें सोडियम एजाइड नाम का केमिकल कंपाउंड होता है। सिग्नल मिलते ही उसमें छोटा सा विस्फोट होता है और नायलान के बने एयरबैग में नाइट्रोजन भर जाती है और सामने एयरबैग खुल जाता है। यह सब कुछ मात्र 30 मिलीसेकेंड यानी 0.03 सेकेंड में हो जाता है।
एयरबैग खुलने से आपका सिर ठोस डैशबोर्ड या स्टीयरिंग पर टकराने के बजाय उस एयरबैग पर टकराता है और आप गंभीर चोट से बच जाते हैं। -सीट बेल्ट और एयरबैग का यह सिस्टम मिलकर ही सुरक्षा के चक्र को पूरा करते हैं। यदि सीट बेल्ट न लगी हो तो आप बहुत तेज गति से एयरबैग से टकराएंगे। ऐसे में एयरबैग पूरी सुरक्षा नहीं कर पाएगा। जानकारों का कहना है कि बिना सीट बेल्ट के एयरबैग खुलना भी घातक हो सकता है। यही कारण है कि कई कार कंपनियों ने ऐसा सिस्टम बनाया है, जिसमें सीट बेल्ट नहीं लगाने पर एयरबैग भी नहीं खुलता है।