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मेंढक के स्टेम सेल से बने सजीव रोबोट, इस तरह आए अस्तित्व में; रोगों में है कारगर

वैज्ञानिकों ने इन छोटे रोबोट्स को वेरमाउंट विश्वविद्यालय और टफ्ट्स विश्वविद्यालय में विकसित किया है। इसके लिए अफ्रीका के मेढक जीनोपस लेविस के भ्रूण से स्टेम सेल लिए गए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 11:07 AM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 11:09 AM (IST)
मेंढक के स्टेम सेल से बने सजीव रोबोट, इस तरह आए अस्तित्व में; रोगों में है कारगर

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल के जरिए पहली सजीव मशीन बनाने में कामयाबी हासिल की है। इन सजीव रोबोट्स को ‘जीनोबोट्स’ का नाम दिया गया है। एक इंच के 25वें हिस्से के बराबर इन रोबोट्स को कैंसर कोशिकाओं के खात्मे में इस्तेमाल किया जा सकता है। इन्हें समुद्र से माइक्रोप्लास्टिक एकत्रित करने के काम में लाया जा सकता है। यह शोध ‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंस’ में प्रकाशित हुआ है। भविष्य में इन रोबोट्स के अन्य प्रभावी उपयोग सामने आ सकते हैं।

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इस तरह आए अस्तित्व में

वैज्ञानिकों ने इन छोटे रोबोट्स को वेरमाउंट विश्वविद्यालय और टफ्ट्स विश्वविद्यालय में विकसित किया है। इसके लिए अफ्रीका के मेढक जीनोपस लेविस के भ्रूण से स्टेम सेल लिए गए। अमेरिका ने मुहैया कराया धन इस शोध को अमेरिका के डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी के लाइफ लांग लर्निंग मशीन प्रोग्राम ने धन मुहैया कराया है। इसका उद्देश्य मशीनों में जैविक शिक्षा प्रक्रियाओं को फिर से बनाना हैं।

क्रम विकास एल्गोरिदम

रोबोट्स में क्रम विकास को एल्गोरिदम के जरिए सुपर कंप्यूटर में रन कराया जाता है। यह कार्यक्रम पांच सौ से एक हजार त्वचा और हृदय कोशिकाओं के क्रम रहित थ्रीडी कॉन्फिगरेशन के जरिए शुरू होता है। प्रत्येक डिजाइन को एक आभासी वातावरण के जरिए परीक्षण किया जाता है।

रोबोट लेकिन पारंपरिक नहीं

शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि यह न तो कोई पारंपरिक रोबोट है और न ही जंतुओं की कोई ज्ञात प्रजाति है। उनका दावा है कि यह नए ‘कृत्रिम सेल’ लक्ष्य के अनुसार किसी भी तरह की शक्ल ले सकते है। साथ ही यह खत्म नहीं होते और स्वयं की मरम्मत करने में भी सक्षम है। शोधकर्ता जोशुआ बोंगार्ड के मुताबिक, यह न पारंपरिक रोबोट है और न ही जंतुओं की कोई ज्ञात प्रजाति। यह मानव द्वारा निर्मित एक नई प्रजाति है, एक जीवित और प्रोग्राम योग्य जीव है।

ये है उद्देश्य

इस शोध का उद्देश्य इन रोबोट के निर्माण से कहीं अधिक चीजें हासिल करना है। इसका उद्देश्य जीवन के सॉफ्टवेयर को समझना है। यदि आप जन्म के दोष, कैंसर, उम्र से संबंधित बीमारियों के बारे में सोचते हैं, तो इन सभी चीजों को हल किया जा सकता है। यदि हमें यह पता है कि जैविक संरचना कैसे बनाई जाए, तो विकास और आकार पर अंतिम नियंत्रण हो जाता है।

खुद खत्म हो जाते हैं

यह जीनोबोट्स जब अपना काम पूरा कर लेते हैं तो सात दिनों में पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं और एक मृत कोशिका के रूप में रह जाते हैं।

मानवता को होंगे लाभ

इस बारे में शोध करने वालों का अनुमान है कि इससे मानवता को काफी लाभ होंगे। हालांकि वे यह भी स्वीकारते हैं कि इससे जुड़े कुछ नैतिक मसले भी सामने आ सकते हैं।

रोगों में कारगर

इन रोबोट की चौड़ाई एक इंच का 25वां भाग है। इस कारण से यह शरीर के किसी भी हिस्से में दवा पहुंचाने का काम भी बहुत ही सहजता से कर सकते हैं। जिस हिस्से में दवा की जरूरत है वहां पर सीधे दवा पहुंचा सकते हैं। इस तरह से यह कैंसर जैसी बीमारियों में कारगर हो सकते हैं।


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