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नेताओं के भाषण में हस्तक्षेप से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार

अभिव्यक्ति की आजादी महत्वपूर्ण है। उसमें इस तरह कटौती नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं से नफरत फैलाने वाले भाषण न देने का हलफनामा लिए जाने की मांग ठुकराते हुए ये टिप्पणी की।

By Edited By: Published: Mon, 03 Mar 2014 08:28 PM (IST)Updated: Mon, 03 Mar 2014 11:47 PM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अभिव्यक्ति की आजादी महत्वपूर्ण है। उसमें इस तरह कटौती नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं से नफरत फैलाने वाले भाषण न देने का हलफनामा लिए जाने की मांग ठुकराते हुए ये टिप्पणी की।

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न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की पीठ ने वकील एमएल शर्मा की मांग ठुकराते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका का अधिकार मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए है, उसे खत्म करने के लिए नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहुत महत्वपूर्ण अधिकार है उसमें इस तरह कटौती नहीं की जा सकती। आखिर यह कैसे तय होगा कि कौन सा बयान नफरत फैलाने वाला है और कौन सा नहीं। एक व्यक्ति के लिए एक भाषण घृणा फैलाने वाला हो सकता है जबकि दूसरे के लिए ऐसा नहीं भी हो सकता है। इस स्थिति में एक समान आदेश पारित करना ठीक नहीं होगा। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और वही इस मामले को देखेगी। ये देखना उसकी जिम्मेदारी है। जब शर्मा ने बार-बार घृणा फैलाने वाले भाषणों के बारे में दलील जारी रखी तो पीठ ने कहा कि हर तरह के विचार लोगों के सामने आने चाहिए ताकि वे स्वयं तय कर लेंगे।

एमएल शर्मा की याचिका में मांग की गई थी कि चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवारों से हलफनामा लिया जाए कि घृणा फैलाने वाला भाषण या बयान नहीं देंगे। न ही झूठे वादे करेंगे।

सरकारी विज्ञापनों के खिलाफ दायर याचिका खारिज

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करने वाले विज्ञापनों के लिए दिशा-निर्देश तय करने से इन्कार कर दिया है। इस बाबत दायर जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि आम चुनाव निकट हैं, ऐसे में दिशा निर्देश जारी करना उचित नहीं होगा।

याची के चित्तिलापिल्ली ने याचिका में आरोप लगाया है कि सत्तारूढ़ पार्टी और इसके नेताओं के गुणगान वाले सरकारी विज्ञापनों पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। लिहाजा, इसे नियंत्रित करने की जरूरत है। मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'आप सही हैं, लेकिन इसका समय उचित नहीं है। चुनाव के बाद मौका तलाश कीजिए (याचिका दायर करने का)। हमलोग इस याचिका पर फिलहाल सुनवाई नहीं कर सकते।' पीठ ने याची के अंतिम समय में कोर्ट आने पर भी सवाल उठाया।

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