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सुप्रीम कोर्ट का बैलट पेपर से फिर लोकसभा चुनाव कराने का निर्देश देने की मांग पर तत्‍काल सुनवाई से इन्‍कार

सुप्रीम कोर्ट ने वकील मनोहर शर्मा द्वारा दायर अपील की तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया जिसमें मतपत्रों का उपयोग करके नए सिरे से लोकसभा चुनाव कराने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 14 Jun 2019 11:52 AM (IST)Updated: Fri, 14 Jun 2019 11:54 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट का बैलट पेपर से फिर लोकसभा चुनाव कराने का निर्देश देने की मांग पर तत्‍काल सुनवाई से इन्‍कार

नई दिल्‍ली, जेएनएन। लोकसभा चुनाव 2019 की वैधता को चुनौती देते हुए बैलट पेपर के ज़रिये फिर आम चुनाव कराने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इन्‍कार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा से इसके लिए रजिस्ट्रार के पास अर्जी दाखिल करने को कहा है। शर्मा ने याचिका में कहा है कि कानूनन लोकसभा चुनाव ईवीएम से कराए ही नहीं जा सकते हैं। ईवीएम की विश्‍वसनीयता पर कांग्रेस समेत कई दल सवाल उठा चुके हैं। हालांकि, चुनाव आयोग साफ कर चुका है कि ईवीएम में छेड़छाड़ करना लगभग असंभव है।

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बता दें कि लोकसभा चुनाव में आरोपों के दौर से सुरक्षित निकलने के बाद चुनाव आयोग अब आत्मनिरीक्षण के दौर से गुज़र रहा है। चुनाव खत्म होने के बाद आयोग ने हाल ही में बीते चुनाव से मिले अच्छे बुरे अनुभवों से सबक सीखने का मन बनाया है। चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार, चुनाव खर्च, आदर्श चुनाव आचार संहिता, मीडिया संपर्क, चुनाव सामग्री, चुनाव प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी आदि नौ विषयों पर एक कार्य समिति का गठन किया है। यह समिति अगस्त माह तक अपनी रिपोर्ट देगी, जिसके बाद आयोग फिर से अधर में लटके चुनाव सुधार के कामों और चुनाव से जुड़े कानूनों को धार देने का काम करेगा। इसके साथ ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के सीईओ से गत चुनाव के अनुभवों से आयोग को अवगत कराने को कहा है।

राजनीतिक दलों और समाज के अलग-अलग तबको से आलोचना झेल रहा आयोग का मानना है कि सीमित शक्तियों के साथ आयोग काम करता है, ऐसे में आयोग के कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाना आयोग के साथ अन्याय करना है। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार निर्वाचन आयोग की मंशा है कि जल्द से जल्द चुनाव सुधार को लेकर सुझाये गए सुझावों को अमल में लाये जाए ताकि आयोग के हाथ और मजबूत हो सके, लेकिन इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि आमतौर पर चुनाव सुधार का रास्ता शीर्ष अदालत से होकर निकला है।
 

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