Move to Jagran APP

दहेज प्रताड़ना मामले में SC का अहम आदेश, अब नहीं होगी तुरंत गिरफ्तारी, पुलिस लेगी फैसला

दहेज उत्पीड़न मामले में कोर्ट ने कहा है कि शिकायतों के निपटारे के लिए परिवार कल्याण कमेटी की जरूरत नहीं है। पुलिस को आवश्यक लगे तो वह आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर सकती है।

By Arti YadavEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 12:47 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 01:55 PM (IST)
दहेज प्रताड़ना मामले में SC का अहम आदेश, अब नहीं होगी तुरंत गिरफ्तारी, पुलिस लेगी फैसला
दहेज प्रताड़ना मामले में SC का अहम आदेश, अब नहीं होगी तुरंत गिरफ्तारी, पुलिस लेगी फैसला
नई दिल्ली [माला दीक्षित]। दहेज उत्पीड़न के मामलों में पति और उसके परिवार वालों को तत्काल गिरफ्तारी से मिला संरक्षण समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए पिछले वर्ष जारी किये गए अपने दिशानिर्देशों में बदलाव करते हुए दहेज उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए परिवार कल्याण समिति गठित करने और समिति की रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी न करने का निर्देश रद कर दिया है। यानि अब अगर पुलिस को गिरफ्तारी का पर्याप्त आधार लगता है तो वह आरोपित को गिरफ्तार कर सकती है।

हालांकि कोर्ट ने पुलिस को सचेत किया है कि वह जरूरी और पर्याप्त आधार होने पर ही गिरफ्तारी करेगी। कोर्ट ने गिरफ्तारी से संरक्षण के लिए अभियुक्त के पास अग्रिम जमानत का विकल्प छोड़ा है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ ने पिछले वर्ष दो न्यायाधीशों की पीठ के 27 जुलाई के राजेश शर्मा फैसले में संशोधन करते हुए दिया है।

कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न में दंड का विधान करने वाली आइपीसी की धारा 498ए के प्रावधान और उसके दुरुपयोग पर चर्चा करते हुए कहा है कि आरोपित कोर्ट में ये स्थापित करते हैं कि उन्हें प्रताडि़त करने और बदला लेने के लिए कानून का दुरुपयोग किया गया है। लेकिन दुरुपयोग रोकने के लिए प्रावधान हैं। गिरफ्तारी से संरक्षण के लिए अग्रिम जमानत का प्रावधान है। यहां तक कि कानून का संतुलन कायम करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया निरस्त करने का भी प्रावधान है।

अदालत लगातार इस बात के लिए सजग रही है कि पीड़ि पक्ष कानून और सहानुभूति का लाभ लेकर दूसरे पक्ष को प्रताडि़त न कर पाए। ऐसी स्थिति मे विधायिका का दायित्व है कि वह इससे संरक्षण के कानून लाए और कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह उन उपायों को अच्छी तरह जांचे ताकि समाज की ये बुराई खत्म हो। कोर्ट ने पूर्व आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि हर जिले में परिवार कल्याण समिति गठित करने का आदेश कानून सम्मत नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने धारा 498ए को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध बनाया है। कमी जांच ऐजेंसियों की है जो कि कई बार दिमाग इस्तेमाल किये बगैर कार्रवाई कर बैठती हैं। सुप्रीम कोर्ट गिरफ्तारी के बारे में कई फैसलों में व्यवस्था तय कर चुका है। अरनेश कुमार मामले में गिरफ्तारी के बारे में सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए के प्रावधानों का पालन करने को कहा गया है। ये धारा कहती है कि सात साल तक की सजा के अपराधों में पुलिस जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी करेगी।

कोर्ट ने पूर्व आदेश में दी गई इस व्यवस्था को सही ठहराया कि धारा 498ए में जमानत अर्जी पर विचार करते समय जमानत के लिए उचित शर्ते लगाई जा सकती हैं लेकिन दहेज के विवादित सामान की बरामदगी न होना जमानत नकारने का आधार नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि पूर्व फैसले में मामला दर्ज होने के बाद समझौते से मामला निपटाने की व्यवस्था देना सही नहीं है। क्योंकि जो आपराधिक मामला कानूनन समझौते योग्य नहीं है उसे रद कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती है। पीठ ने कहा कि जब दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाए तो वे हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकते हैं और हाईकोर्ट उसे सही पाने पर मामला निरस्त कर सकता है।

क्या था पुराना आदेश
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल (अब सेवानिवृत) और यूयू ललित की पीठ ने गत वर्ष 27 जुलाई को दहेज उत्पीड़न की धारा 498ए के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई दिशानिर्देश जारी किये थे।
कोर्ट ने कहा था कि - जिला विधिक सेवा प्राधिकरण प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति गठित करेगी।
- धारा 498ए के तहत मजिस्ट्रेट या पुलिस को मिलने वाली हर शिकायत जांच के लिए समिति को भेजी जाएगी। - समिति पक्षकारों से बातचीत करके एक माह में रिपोर्ट देगी।
- समिति की रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
- दोनों पक्षों के बीच समझौता होने की स्थिति में जिला एवं सत्र न्यायाधीश आपराधिक कार्यवाही समाप्त कर सकता है।
- दहेज का विवादित सामान बरामद न होना जमानत नकारने का आधार नहीं हो सकती। 

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.