आम्रपाली के अधूरे प्रोजेक्ट पूरा करेगी एनबीसीसी
इस संबंध में कंपनी के निदेशकों को 25 सितंबर तक डीआरटी के सामने पेश होने को कहा गया है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। आम्रपाली समूह की अधूरी परियोजनाओं को अब सरकारी कंपनी एनबीसीसी पूरा करेगी। वहीं इस रियल एस्टेट फर्म से जुड़ी वाणिज्यिक संपत्तियों को नीलाम करने की जिम्मेदारी ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) को दी गई है। इस संबंध में कंपनी के निदेशकों को 25 सितंबर तक डीआरटी के सामने पेश होने को कहा गया है। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने बुधवार को दिया।
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट में एक एस्क्रो अकाउंट खोलने का भी निर्देश दिया है, जिसमें संपत्तियों की नीलामी से मिलने वाली रकम को जमा किया जाएगा। बाद में यह पैसा ग्रुप-ए और बी की अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने वाली कंपनी नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन (एनबीसीसी) को दिया जाएगा। पीठ ने इसके साथ ही वर्ष 2008 से जोतिंद्र स्टील सहित सभी 46 कंपनियों से जुड़े दस्तावेज और बैंक खातों का विवरण फोरेंसिक ऑडिटर्स को देने का निर्देश दिया है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा है, 'परियोजनाओं को पूरा करने और इनके संबंध में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए एनबीसीसी को नियुक्त किया गया है। वह परियोजना के वित्त पोषण के लिए बैंकों के समूहों से भी बात कर सकता है। पर यह ध्यान रखिएगा कि जब हमने आपको एक बार जिम्मेदारी दे दी तो आप इससे मुंह नहीं मोड़ सकते हैं।' पीठ ने अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए आम्रपाली समूह को बैंकों, हुडको और अन्य वित्तीय संस्थाओं से बात करने की अनुमति दे दी है। इसके साथ ही पीठ ने समूह के फ्रीज बैंक खातों से पांच लाख रुपये डीआरटी को स्थानांतरित करने के साथ ही समूह के अधिकारियों को संपत्ति बेचने में सहायता करने को कहा है।
हम जानना चाहते हैं कि पैसे कहां गए
पीठ ने समूह के 2015 से इनकम टैक्स रिटर्न नहीं दाखिल करने पर भी सवाल उठाया। पूछा कि आपके आडिटर क्या कर रहे थे। इस पर समूह की तरफ से पेश वकील गौरव भाटिया ने कहा कि मुकदमे के चलते आइटी रिटर्न फाइल नहीं किया जा सका। इस पर पीठ ने कहा कि समूह ने रिटर्न फाइल नहीं किया। हम जानना चाहते हैं कि आखिर पैसा गया कहां और उसके साथ क्या किया गया। इसके साथ ही पीठ ने समूह के सीएमडी अनिल शर्मा को संपत्तियों के संबंध में दिए हलफनामे को वापस लेने का निर्देश देने के साथ ही पूछा है कि आखिर 847.88 करोड़ रुपये की संपत्ति चार सालों में 67 करोड़ रुपये कैसे रह गई।