एससी-एसटी कोटे का विवाद पहुंचा PMO, यूजीसी के नए सर्कुलर को वापस लेने की मांग
केंद्रीय मंत्री गहलोत ने पीएमओ को लिखे पत्र में कहा है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सुझाव के अनुसार इसकी पुन: समीक्षा की जाए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विश्वविद्यालय और कालेजों में एससी-एसटी कोटे को लेकर उठे विवाद के बीच केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने पीएमओ से दखल देने की मांग की है। यूजीसी के नए सर्कुलर को संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ बताते हुए उन्होंने यूजीसी से इसे वापस लेने की मांग की है। उन्होंने इसी तरह का एक पत्र केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर को भी लिखा है। पत्र में इस मामले में उचित कार्यवाही करने को कहा है।
केंद्रीय मंत्री गहलोत ने पीएमओ को लिखे पत्र में कहा है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सुझाव के अनुसार इसकी पुन: समीक्षा की जाए। वर्तमान में विश्वविद्यालय और कालेजों में लागू आरक्षण व्यवस्था को एक यूनिट मानकर रोस्टर जारी रखा जाए। विवि और कालेजों में एससी-एसटी कोटे में शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर यह विवाद तब तेज हुआ है, जब पांच मार्च को यूजीसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद एक सर्कुलर जारी किया। इसके तहत विवि और कालेजों को शिक्षकों की भर्तियों के लिए विभाग और विषयवार रोस्टर तैयार करने को कहा है। अभी तक यह रोस्टर विवि और कालेज स्तर पर तैयार किया गया है।
पीएमओ और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री जावड़ेकर को लिखे पत्र में गहलोत ने कहा कि विषय व विभागवार आरक्षण रोस्टर में सातवां पद एससी का और 14वां पद एसटी के लिए आरक्षित होता है। इस तरह से यूजीसी के इस सर्कुलर से देश के किसी भी विवि और कालेज में जब तक प्राध्यापक या सहायक प्राध्यापक के एक ही विषय और विभाग में 14 पद नहीं होंगे, तब तक एससी-एसटी का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। मौजूदा समय में देश के बड़े-बडे विवि में भी एक ही विषय और विभाग में प्राध्यापकों और सहायक प्राध्यापकों के 14 पद नहीं है। ऐसे में यूजीसी के इस नए आरक्षण आदेश के लागू होने से इन वर्गो का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाएगा।
गौरतलब है कि यूजीसी के आरक्षण रोस्टर को लेकर जारी किए गए नए सर्कुलर से एससी-एसटी वर्ग लगातार विरोध कर रहा है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने भी इसे लेकर एससी-एसटी सांसदों की एक बैठक की थी।