भुल्लर की फांसी माफी पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। फांसी की कतार में खड़े देविंदर पाल सिंह भुल्लर के लिए उम्मीद की किरण जगी है। सुप्रीम कोर्ट उसकी फांसी माफी की याचिका पर विचार करने को तैयार हो गया है। यह सुनवाई शुक्रवार को होगी। भुल्लर की पत्नी नवनीत कौर ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर भुल्लर की फांसी माफ करने की गुहार लगाई है।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। फांसी की कतार में खड़े देविंदर पाल सिंह भुल्लर के लिए उम्मीद की किरण जगी है। सुप्रीम कोर्ट उसकी फांसी माफी की याचिका पर विचार करने को तैयार हो गया है। यह सुनवाई शुक्रवार को होगी। भुल्लर की पत्नी नवनीत कौर ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर भुल्लर की फांसी माफ करने की गुहार लगाई है।
आतंकी भुल्लर को सितंबर, 1993 में यूथ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एमएस बिंट्टा की कार पर बम विस्फोट करने के जुर्म में मौत की सजा सुनाई गई है। उस हमले में नौ लोग मारे गए थे जबकि बिंट्टा सहित 25 लोग घायल हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट से सजा-ए-मौत पर मुहर लगने के बाद राष्ट्रपति भी भुल्लर की दया याचिका खारिज कर चुके हैं। यहां तक कि दया याचिका निपटाने में देरी के आधार पर फांसी माफी की मांग भी सुप्रीम कोर्ट ठुकरा चुका है।
मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम, न्यायमूर्ति आरएम लोढा, एचएल दत्तू व सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने मंगलवार को नवनीत कौर की क्यूरेटिव याचिका को शुक्रवार को खुली अदालत में सुनवाई के लिए लगाने का आदेश दिया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के गत 21 जनवरी के आदेश के बाद भुल्लर के परिजनों में फिर उम्मीद जगी है।
गत 21 जनवरी को तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दया याचिका निपटाने में देरी और मानसिक अस्वस्थता के आधार पर 15 दोषियों की फांसी उम्रकैद में तब्दील कर दी थी। पीठ ने भुल्लर के मामले में दिए गए फैसले से असहमति भी जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि टाडा और सामान्य कानून दोनों मामलों में देरी का आधार लागू होगा। दया याचिका निपटाने में हुई देरी के आधार पर दोनों मामलों में मौत की सजा को उम्रकैद में बदला जा सकता है।
फांसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण में भुल्लर, सुनवाई 28 को
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने दया याचिका निपटाने में देरी को आधार बनाते हुए फांसी माफ करने की भुल्लर की मांग खारिज कर दी थी। कोर्ट ने भुल्लर की फांसी पर मुहर लगाते हुए कहा था कि टाडा जैसे आतंकवाद निरोधक कानून में दोषी ठहराए गए अपराधी और सामान्य कानून में दोषी ठहराए गए अपराधी के मामले में अंतर है। आतंकी गतिविधियों में शामिल अपराधी की सजा दया याचिका निपटाने में हुई देरी के आधार पर नहीं खारिज की जा सकती।
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