सत्येंद्र लोहिया ने ट्रेनिंग के लिए गिरवी रखा मकान, बिन पैर सागर पार कर रचा इतिहास
सत्येंद्र के पास ट्रेनिंग के पैसे नहीं थे तो उन्होंने 18 लाख में अपना घर गिरवी रखा। वीजा के लिए जब नकदी की कमी हुई तो ब्याज पर दो लाख रुपये उधार लिए।
ग्वालियर (नईदुनिया)। बिना पैर सागर पार। जी हां, यह कहावत चरितार्थ की है ग्वालियर के सत्येंद्र लोहिया ने। सत्येंद्र दिव्यांग हैं, लेकिन उन्होंने वह करिश्मा कर दिखाया, जो आज तक एशिया में कोई नहीं कर पाया था। तैराक सत्येंद्र लोहिया ने 12 घंटे और 26 मिनट में 36 किलोमीटर तैरकर इंग्लिश चैनल पार किया है। रिले की तर्ज पर सत्येंद्र ने अपने तीन साथियों महाराष्ट्र के चेतन राउत, बंगाल के रीमो शाह और राजस्थान के जगदीश चंद्र के साथ यह उपलब्धि हासिल की है।
भारतीय टीम ने गत रविवार को ब्रिटेन के सैम्फायर बीच से फ्रांस में ऑढिंगम बीच तक का सफर तय किया। टीम ने भारतीय समयानुसार दोपहर 12.10 बजे सफर शुरू किया और रात 12.36 बजे इंग्लिश चैनल पार कर लिया। यह पहला मौका है, जब भारत की पैरा स्वीमिंग टीम ने इंग्लिश चैनल पार किया है। अब अगस्त में सत्येंद्र अकेले ही यह करिश्मा करने फिर से सागर में छलांग लगाएंगे।
16 मेडल जीत चुके हैं सत्येंद्र
गौरतलब है कि विक्रम अवार्डी सत्येंद्र ने तैराकी स्पर्धाओं में अब तक 16 मेडल जीते हैं। हालांकि, सत्येंद्र की यहां तक पहुंचने की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो संसाधनों का रोना रोते हैं। सत्येंद्र के पास ट्रेनिंग के पैसे नहीं थे तो उन्होंने 18 लाख में अपना घर गिरवी रखा। ब्रिटेन के वीजा के लिए जब नकदी की कमी हुई तो साहूकार से तीन रुपये सैकड़ा ब्याज पर दो लाख उधार लिए। सत्येंद्र की इस उपलब्धि पर मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी ट्वीट करके बधाई दी है।
2009 में मिला पहला मेडल
सत्येंद्र को इंग्लैंड छोड़कर हाल ही में ग्वालियर लौटे उनके कोच प्रो. वीके डबास ने बताया कि सत्येंद्र 2007 में उनके पास प्रशिक्षण के लिए आए थे। उन्होंने कोलकाता में 2009 में पहला मेडल हासिल किया। सत्येंद्र वर्तमान में इंदौर के सेल टैक्स विभाग में लिपिक पद पर कार्यरत हैं।
बचपन में ही खराब हो गए थे पैर
सत्येंद्र जब 15 दिन के थे तभी ग्लूकोज ड्रिप के रिएक्शन के चलते उन्होंने अपने पैर खो दिए थे। उन्हें बचपन से ही तैराकी का शौक था, लेकिन दिव्यांगता के चलते शुरुआत में उन्हें खासी समस्याओं का सामना करना पड़ा। हालांकि, दिव्यांगता को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया और मध्य प्रदेश के भिंड जिले के मेहगांव तहसील के अंतर्गत अपने गाता गांव की बैसली नदी में तैराकी करने लगे। इसके बाद तैराकी उनका जुनून बन गया।
खुद के दम पर पाई सफलता
सत्येंद्र ग्वालियर के रजिस्ट्रार ऑफिस में नौकरी करते थे, लेकिन प्रैक्टिस का समय नहीं मिलता था। पूर्व कलेक्टर पी. नरहरि के बुलावे पर इंदौर गए। स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट की मदद से सेल टैक्स में नौकरी मिली। संभागायुक्त राघवेंद्र सिंह ने मदद की। राघवेंद्र सिंह ने कहा कि सत्येंद्र सिंह को हमने प्रोत्साहित जरूर किया, लेकिन आज वह जिस मुकाम पर पहुंचा है, यह उसकी खुद की मेहनत है।
बेटे पर नाज है
ग्वालियर के मुरार उपनगर स्थित सुरेश नगर में रह रहे सत्येंद्र के पिता ग्याराम लोहिया एवं मां नारायणीदेवी ने कहा कि उन्हें बेटे पर नाज है।
बिना व्हील चेयर के चल भी नहीं सकते सत्येंद्र
भारतीय टीम में सत्येंद्र सर्वाधिक दिव्यांग श्रेणी में आते हैं। उनकी एस-7 कैटेगरी है। यानी वह बिना व्हीलचेयर के चल ही नहीं सकते।
डर लगा लेकिन हिम्मत नहीं हारी
सत्येंद्र के अनुसार टीम ने प्रतिदिन सुबह और शाम लगातार चार-चार घंटे प्रैक्टिस की। कभी-कभी बहुत तनाव हो जाता था। ठंडक के अलावा पानी के अंदर के जीव आसपास आ जाते थे। हालांकि, एक विशेष क्रीम लगाकर पानी में उतरते थे, जिससे वे पास नहीं आते, लेकिन ध्यान तो रखना ही पड़ता था। यही नहीं, लहरों के विपरीत तैरना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।
जो मन से कमजोर वह है दिव्यांग
सत्येंद्र ने अपनी इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा कि सही मायने में वह व्यक्ति दिव्यांग है, जो मन से कमजोर है। अगर हौंसला बुलंद हो तो रास्ते अपने आप बनते जाते हैं। प्रकृृति भी साथ देने लगती है।
मांगने पर भी नहीं मिली मदद
सत्येंद्र ने तैयारी के लिए खेल विभाग से करीब 24 लाख 27 हजार रुपये की वित्तीय सहायता मांगी थी, लेकिन नहीं मिली। उन्होंने बताया कि तीन साथियों के साथ रिले में इंग्लिश चैनल पार किया है। तीनों को वहां की सरकार से आर्थिक मदद मिली है। खेल एवं युवक कल्याण विभाग के डायरेक्टर सुजॉय थॉमसन ने कहा कि इंग्लिश चैनल पार करना एडवेंचर में आता है और इसके लिए मदद के लिए खेल विभाग में कोई नीति नहीं है। हम उनकी मदद के लिए विशेष प्रकरण बनाकर प्रशासन को भेजेंगे।