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संस्कृत मशीनी युग के लिए भी सबसे उपयोगी भाषा, गणितीय समस्याओं के समाधान में सहायक

संस्कृत एल्गोरिथम और मशीनी ज्ञान को बढ़ाने में सहायक है।आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में संस्कृत अपना महत्व दर्शा रही है।

By Arti YadavEdited By: Published: Sun, 22 Apr 2018 08:01 AM (IST)Updated: Sun, 22 Apr 2018 08:01 AM (IST)
संस्कृत मशीनी युग के लिए भी सबसे उपयोगी भाषा, गणितीय समस्याओं के समाधान में सहायक

नई दिल्ली (प्रेट्र)। संस्कृत केवल अध्यात्म या दर्शन शास्त्र या साहित्य के क्षेत्र में ही उपयोगी भाषा नहीं है बल्कि एल्गोरिथम (गणितीय समस्याओं के समाधान) और मशीनी ज्ञान को बढ़ाने में भी सहायक है। आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में संस्कृत अपना महत्व दर्शा रही है। यह बात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कही है। वह श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के 17 वें दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे।

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राष्ट्रपति ने कहा, हमारी बौद्धिक क्षमता के विकास में संस्कृत भाषा, साहित्य और विज्ञान ने महत्वपूर्ण अध्याय जोड़े हैं। संस्कृत में भारत की आत्मा झलकती है। संस्कृत बहुत सारी भाषाओं की जननी है। सबसे बड़ी बात यह है कि जो संदेश संस्कृत भाषा के जरिये दिए गए हैं वे विश्व के कल्याण के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी हैं। यह ज्ञान और विज्ञान की भाषा है।

संस्कृत के जरिये वैज्ञानिकों और गणितज्ञों ने अपने ज्ञान और आविष्कारों को आगे बढ़ाया है। जिन विभूतियों ने ये कार्य किए उनमें आर्यभट्ट, वराह मिहिर, भाष्कर, चरक और सुश्रुट प्रमुख हैं। अब योग पूरी दुनिया को अपना महत्व बता रहा है। 21 जून को पूरी दुनिया योग दिवस मनाती है। यह भी संस्कृत और प्राचीन भारत की कलाओं से जुड़ा क्षेत्र है। इसी प्रकार से दुनिया में आयुर्वेद का भी महत्व बढ़ रहा है। जिसका मूल संस्कृत में विद्यमान है। तमाम विद्वानों ने माना है कि संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से ज्यादा तार्किक और नियमबद्ध है। इसीलिए यह मशीनी ज्ञान के विकास और आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस को बढ़ावा देने में ज्यादा सहायक है। राष्ट्रपति ने संस्कृति भाषा को जन-जन की भाषा बनाने के लिए और ज्यादा प्रयासों पर जोर दिया।

इंटरनेट और उपनिषद की होगी 21 सदी

21 वीं सदी में भारत इंटरनेट ही नहीं बल्कि उपनिषदों के लिए भी दुनिया में अपनी पहचान बनाएगा। यह बात राष्ट्रपति कोविंद ने महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य का उल्लेख करते हुए कही। राष्ट्रपति ने यह बात पवन वर्मा की आदि शंकराचार्य पर लिखी पुस्तक का विमोचन करने हुए कही।


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