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Sanskarshala 2022: नाराज हो गई हमारी बुलबुल.., एक कहानी जो बच्चों और पैरेंट्स को सिखाती इंटरनेट का अनुशासन

Sanskarshala 2022 कहां तो सोचा था कि अम्मा-बाबा के साथ मस्ती होगी लेकिन हर समय मोबाइल पर आंख गड़ाए रहती थी। अम्मा ने उसे रात भर जागते देखा था। अगली सुबह वह बोलीं-ये पूरी रात तू मोबाइल लेकर क्या कर रही थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 13 Sep 2022 07:29 PM (IST)Updated: Tue, 13 Sep 2022 07:29 PM (IST)
Sanskarshala 2022: नाराज हो गई हमारी बुलबुल.., एक कहानी जो बच्चों और पैरेंट्स को सिखाती इंटरनेट का अनुशासन
Sanskarshala 2022: इंटरनेट का अनुशासन। फाइल फोटो

क्षमा शर्मा। कोरोना महामारी के दौरान सब कुछ बंद था। बाजार, घूमना, फिरना, किसी का आना-जाना और सबसे बड़ी बात तो स्कूल। रीना जिसे लगता था कि कब ऐसा होगा कि स्कूल की ज्यादा छुट्टियां हों। घूम-फिर सके, कुछ मौज-मस्ती हो, लेकिन अब वह इतनी लंबी छुट्टियों ,आनलाइन कक्षाओं से उकता चुकी थी। उसका मन करता था कि जल्दी से जल्दी स्कूल खुलें और वह अपनी सहेलियों के साथ पहले की तरह खेल-कूद सके। जब  कोरोना खत्म होने लगा, तो स्कूल , बाजार सब खुल गए। 

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रीना भी अपने माता-पिता और सहेलियों के साथ घूमने-फिरने लगी। सब कुछ पहले जैसा हो गया। ऐसा लगने लगा कि कोरोना जैसी बातें कभी हुई ही नहीं थीं। जब इम्तिहान हो गए, तो एक सुबह जब रीना सोकर उठी तो उसने अपने सिरहाने एक लिफाफा देखा। खोला तो मुंह से निकला-अरे वाह। वे गोवा जाने की हवाई जहाज टिकट थीं। अगले हफ्ते जाना था। अम्मा-बाबा भी साथ होंगे। रीना की खुशी का ठिकाना न रहा। दादा-दादी उसे बहुत प्यार करते थे। मीना दौड़ी-दौड़ी पापा के पास गई और उनके गले से लटक गई-आपने कैसे जान लिया कि मैं गोवा जाना चाहती हूं।

-बस, देख लो अपने बच्चे के मन की बात समझ जाते हैं। जादू आता है हमें।

-अम्मा-बाबा कब आएंगे।

-बस आते ही होंगे।

-अब वो मन ही मन प्लान बनाने लगी कि अम्मा-बाबा के साथ कैसे मस्ती की जाएगी। पापा जब बस अड्डे से उन्हें लेकर आए और अम्मा ने सामान  खोला- तो उसमें उसके पसंद की आलू की कचौरियां थीं। रीना ने एक कचौरी उठाई और यमी-यमी करती पूरे कमरे में कूदने लगी।सब गोवा जाने की तैयारियों में बिजी हो गए और रीना अपने मोबाइल के स्क्रीन में खो गई। वो गूगल पर लगातार गोवा के बारे में पढ़  रही थी। मीरा मार, अंजुना, कलंगुटे, बागा समुद्र तट, चर्च, मंगेश-महालक्ष्मी मंदिर, काजू के पेड़, बाजार में मिलने वाले शंख और सीपियां। क्या पता लता मंगेशकर के गांव जाने का भी मौका मिल जाए। वह रात भर सोई ही नहीं। पूरी रात मोबाइल या कंप्यूटर पर गोवा के बारे में सर्च करती रही। वह कई बार ऐसा करती थी –रात भर। कभी अपने दोस्तों से चैट करती, तो कभी दो-दो फिल्में देखती। गेम में उलझी रहती। कोरोना में जब बंदी था तो उसका अधिकतर समय फेसबुक और इंस्टाग्राम पर बीतता था। वो आदत जा नहीं पा रही थी। कहां तो सोचा था कि अम्मा-बाबा के साथ मस्ती होगी लेकिन हर समय मोबाइल पर आंख गड़ाए रहती थी। अम्मा ने उसे रात भर जागते देखा था। अगली सुबह वह बोलीं-ये पूरी रात तू मोबाइल लेकर क्या कर रही थी।

-कुछ नहीं, देख रही थी कि गोवा में हम क्या-क्या कर सकते हैं। कहां जा सकते हैं।

-लेकिन ये सब तो तू दिन में भी कर सकती थी।

रीना को दादी के टोकने पर गुस्सा आ गया-अब मुझे कब क्या करना है, यह तो मैं ही तय करूंगी।

अम्मा, मम्मी, पापा को उसका इस तरह जवाब देना बुरा लगा। लेकिन अम्मा ने गुस्से के बदले प्यार से कहा-बिल्कुल वही करना चाहिए, जो तुम्हें अच्छा लगे। लेकिन इतना तो मैं भी जानती हूं न कि मोबाइल या कंप्यूटर को चौबीस घंटे देखने, काम करने से आंखें खराब हो सकती हैं। बीमार पड़ सकती हो।

-जब बीमार पड़ेंगे, तब देखा जाएगा। मेरे तो सभी दोस्त ऐसा करते हैं। क्या मैं दोस्तों से चैट भी नहीं कर सकती, ग्रुप में अपनी बात भी नहीं रख सकती।

तूने ही तो बताया था कि तेरी कक्षा का एक लड़का हर वक्त कंप्यूटर पर रहता था। किसी से मिलता-जुलता तक नही था। मना करो तो घर की चीजें तोड़ता-फोड़ता था। बड़ी मुश्किल से काउंसलर ने धीरे-धीरे करके उसकी यह आदत छुड़ाई थी।–मम्मी ने रीना को टोकते हुए कहा।

अच्छा बाबा हो गईं न शुरू। कहती हुई, वह धम-धम करती, अपने कमरे में चली गई और दरवाजा जोर से बंद कर लिया।

थोड़ी देर बाद बाबा उसके कमरे में आए। बोले- नाराज हो गई हमारी बुलबुल। लेकिन रीना मुंह फुलाकर ही पड़ी रही।

अपनी अम्मा और मम्मी की बात का बुरा मान रही हो। वैसे तुम्हें भी पता है न कि इन गैजेट्स का ज्यादा उपयोग स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। तुम भी तो पढ़ती रहती हो, इन बातों के बारे में। कल को तबियत और आंखें खराब हो गईं तो तुम्हारा ही तो नुकसान होगा।

-आप सब बड़े हम बच्चों की तो सुनते ही नहीं। मैं तो इंस्टा में रील देखकर अपडेट भी तो होती हूं, फेसबुक के पोस्ट देखकर नॉलेज भी बढ़ती है। बस हमें ही सुनाते रहते हैं जैसे कि बच्चे हमेशा गलत होते हों।

-नहीं, बच्चे हमेशा गलत हो ही नहीं सकते। वे तो तुम्हारी तरह ही बहुत प्यारे और अपने बड़ों की बातें मानने वाले होते हैं। अब चलो उठो। मेरे साथ बाजार चलो।

-बाजार क्यों।

-मुझे गोवा में पहनने के लिए कपड़े नहीं दिलवाओगी।

रीना थोड़ी देर तो यों ही पड़ी रही। फिर बोली-चलिए।

इस तरह नहीं। खुश होकर चलो। तुम खुश तो, तभी तो हम सब खुश। बाबा ने कहा तो रीना मुस्कुराने लगी।

बाहर निकलने से पहले उसने सोच लिया था कि अब वह मोबाइल और कंप्यूटर पर उतना ही समय बिताएगी , जितना जरूरी है क्योंकि इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताने से संबंधों पर भी तो असर पड़ता है।  


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