संघर्ष क्षेत्र में तैनात सीआरपीएफ की महिलाओं के लिए लगाई जाएंगी सैनेटरी नैपकिन मशीनें
सीआरपीएफ की महिला कर्मियों ने कहा था कि उन्हें काम के दौरान अपने कपड़े धोने और अंतवस्त्रों को सुखाने के लिए सही जगह नहीं मिलती। सैनेटरी पैड खरीदने में मुश्किल आती है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए सरकार ने पहली बजटीय व्यवस्था के तहत संघर्ष के क्षेत्रों में तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की महिला कर्मियों के वास्ते 500 से अधिक सैनेटरी पैड डिस्पेंसर (वितरण करने वाली मशीन) और इंसिनेरटर (बेकार नैपकिन को नष्ट करने वाली मशीन) लगाने के वास्ते विशेष निधि मंजूर की है।
इन पैडों के वितरण के लिए कुल 288 वितरक मशीनों और इस्तेमाल के बाद उन्हें वैज्ञानिक ढंग से नष्ट करने वाली उतनी ही इंसिनेटर मशीनों की खरीद के लिए पैसा दिया गया है। सीआरपीएफ को उसकी सभी छह महिला बटालियनों, त्वरित कार्यबल की 15 विशेष दंगारोधी इकाइयों के लिए और प्रशिक्षण संस्थानों में कपड़े सुखाने के लिए स्टील के 783 फ्रेम स्टैंड खरीदने के लिए भी अधिकृत किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन सभी के लिए दो करोड़ 10 लाख 69, 000 रुपये मंजूर किए हैं।
गृह मंत्रालय के इस आदेश के अनुसार इन वितरण करने वाली मशीनों पर प्रति मशीन 25000 रुपये, नष्ट करने वाली मशीनों के लिए 40,000 रुपये प्रति मशीन और कपड़े सुखाने वाले स्टैंड के लिए प्रति स्टैंड 3000 रुपये का खर्च आएगा। यह खर्चा मंजूर बजटीय अनुदान से पूरा किया जाएगा।
सीआरपीएफ के प्रवक्ता उपमहानिरीक्षक मौसेस दिनाकर ने कहा, 'इस मंजूरी से सीआरपीएफ को संघर्ष के क्षेत्रों में कार्यरत 8000 से अधिक महिला कर्मियों के लिए बेहतर जीवनस्तर सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।' उन्होंने कहा, 'महिला कर्मियों को देशभर में कानून व्यवस्था बनाए रखने, नक्सलविरोधी अभियानों और अन्य कार्यो के लिए तैनात किया गया है।
उत्तर प्रदेश में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और सशस्त्र सीमा बल में महानिरीक्षक रह चुकीं रेणुका मिश्रा ने कुछ वर्षो पहले एक अध्ययन में महिला कर्मियों के लिए कार्यस्थल पर पेश आने वाली चुनौतियों का उल्लेख किया था।
अध्ययन के दौरान राज्य पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की महिला कर्मियों ने उन्हें बताया था कि कई बार यूरीन से बचने के लिए वे लंबे समय तक पानी नहीं पीती हैं। उन्हें काम के दौरान अपने कपड़े धोने और अंतवस्त्रों को सुखाने के लिए सही जगह नहीं मिलती। ड्यूटी के दौरान उन्हें सैनेटरी पैड खरीदने में बड़ी मुश्किल आती है। साथ ही उन्हें इन नैपकिन को निपटाने में उतनी ही कठिनाई होती है।