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सबरीमाला मंदिर मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मंदिर हर वर्ग का होता है

सबरीमाला मंदिर मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मंदिर हर वर्ग का होता है, यहां कोई भी आ सकता है।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Tue, 31 Jul 2018 02:50 PM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 03:55 PM (IST)
सबरीमाला मंदिर मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मंदिर हर वर्ग का होता है
सबरीमाला मंदिर मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मंदिर हर वर्ग का होता है

नई दिल्ली (जेएनएन)। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। मंगलवार को कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि मंदिर हर वर्ग का होता है और यहां कोई भी आ सकता है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सवाल पूछा, 'क्या महिलाओं को उम्र के हिसाब से मंदिर में प्रवेश देना संविधान के मुताबिक है?' अदालत ने समानता के अधिकार का उल्लेख करते हुए कहा कि आर्टिकल 25 सभी वर्गों (पुरुष/महिला) के लिए बराबर है। बता दें कि केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।

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'धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए'

बीतें कई दिनों से सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर सुुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने यह दलील दी थी कि अदालत को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। वहीं, मंगलवार को कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के पक्ष के वकील वीके बीजू ने कहा, 'यह धार्मिक मान्यताओं और विश्वास का मुद्दा है। महिलाओं को मंदिर में प्रवेश मिला, तो इसके सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। जिससे बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है।'

मंदिर हर वर्ग के लिए है : कोर्ट

कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि मंदिर किसी विशेष वर्ग के लिए नहीं बल्कि हर वर्ग के लिए है। हर किसी को मंदिर में आने का अधिकार है। संविधान पीठ ने कहा कि संविधान इतिहास पर नहीं चलता, बल्कि ये संगठित व गतिशील है।

पिछली सुनवाई में पाबंदी पर SC ने क्या कहा

- कोर्ट ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर में पुरुषों की तरह महिलाओं को भी प्रवेश करने और प्रार्थना करने का संवैधानिक अधिकार है।

- कोर्ट ने इस पाबंदी को अतार्किक और भेदभाव पूर्ण कहा है।

- शीर्ष अदालत ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के बारे में कोई कानून नहीं होने के बावजूद इस मामले में उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। मंदिर में प्रवेश के अधिकार के लिए किसी कानून की जरूरत नहीं है। यह संवैधानिक अधिकार है।

पिछले साल बनाई गई थी संविधान पीठ

पिछले साल 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने अनुच्छेद-14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद-15 में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव रोकने, अनुच्छेद-17 में छुआछूत को समाप्त करने जैसे सवालों सहित चार मुद्दों पर पूरे मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ के हवाले कर दी थी।

क्‍या है मामला

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं हैं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे।


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