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फांसी पर लटकाने से पहले सजायाफ्ता के कान में जल्लाद कहता है आखिरी शब्द, क्या सच में पूछी जाती है अंतिम इच्छा?

किसी भी आरोपी को सजा-ए-मौत दिए जाने के 14 दिन बाद ही फांसी के फंदे पर लटका सकते हैं। इन दिनों में यदि कैदी कुछ खाना पढ़ना या लिखना चाहता है तो उसकी उन इच्छाओं को पूरा किया जाता है। हालांकि इन 14 दिनों तक उस कैदी को बाकी कैदियों से अलग और अकेले रखा जाता है। जेल मैनुअल के मुताबिक ही आरोपी को फांसी पर लटकाया जाता है।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariPublished: Fri, 30 Jun 2023 04:05 PM (IST)Updated: Fri, 30 Jun 2023 04:05 PM (IST)
आखिरी समय में कैदी के कान में जल्लाद कहता है कुछ शब्द

नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Death Sentence: अक्सर आपने सुना होगा कि किसी गंभीर अपराध के लिए दोषी को फांसी की सजा दी गई है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एक बार सजा तय होने के बाद आरोपी को किन नियमों के तहत फांसी दी जाती है। दरअसल, जेल नियमावली में फांसी की पूरी प्रक्रिया का विस्तृत विवरण दिया गया है। इसमें बताया गया है कि आखिर किन प्रक्रियाओं के तहत आरोपी को फांसी दी जाती है।

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जब भी किसी को फांसी पर लटकाने की खबर सुनते हैं, तो हमारे जहन में कई सवाल उठते हैं। सबसे पहले तो यह सवाल आता होगा कि क्या वाकई में सजायाफ्ता से उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है, दोषी का मुंह काले कपड़े से क्यों ढका जाता है, किन अधिकारियों की निगरानी में फांसी दी जाती है।

इस खबर में हम आपको जेल मैनुअल के मुताबिक, डेथ वारंट रिलीज होने से लेकर दोषी के शव को उसके परिजनों को सौंपे जाने तक की सभी प्रक्रियाओं के बारे में बताएंगे।

डेथ वारंट पर हस्ताक्षर करने के बाद निब तोड़ देते हैं जज

कोर्ट से दोषी को मौत की सजा मिलने के बाद डेथ वारंट या ब्लैक वारंट जारी किया जाता है। इस पेपर के चारों ओर काले रंग की धारी बनी होती है। इसको दोषी के सामने ही तैयार किया जाता है। डेथ वारंट बनाने के बाद जिस कलम से उसे लिखा जाता है, उसे तुरंत ही तोड़ दिया जाता है, जो इस बात की निशानी है कि आरोपी की जिंदगी भी खत्म होने वाली है। साथ ही, दूसरा तर्क यह है कि जज ऐसा इसलिए करता है, ताकि उसे दोबारा ऐसे किसी और काले वारंट पर दोबारा हस्ताक्षर न करना पड़े।

कैदी के परिवार और वकील को सौंपी जाती है डेथ वारंट की प्रति

इस वारंट की एक प्रति वकील को दी जाती है और एक प्रति दोषी के परिवार को सौंपी जाती है। यदि आरोपी किसी कारण जज के सामने पेश नहीं हो पाता है, तो ऐसे में किसी तरह कोशिश की जाती है कि आरोपी को इसके बारे में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए बताया जाए। यदि दोषी को वारंट में किसी तरह की त्रुटि नजर आती है, तो वो अपने वकील के जरिए इसके खिलाफ याचिका कर सकता है।

14 दिनों का समय देना जरूरी

नियमों के मुताबिक, डेथ वारंट रिलीज करने और फांसी की तय तारीख के बीच में 14 दिनों का समय होना अनिवार्य होता है। इस बीच में सजायाफ्ता को बाकी कैदियों से अलग रखा जाता है। हालांकि, वो बाकी कैदियों से मिल सकता है, लेकिन उनके साथ खाना नहीं खा सकता और ज्यादा समय नहीं बिता सकता है। इस दौरान निर्धारित समय के लिए दोषी को कैदखाने से निकल घूमने और खेलने का समय दिया जाता है, लेकिन उसे रहना अकेले ही होता है।

दोषी की मांगों को पूरा किया जाता है

दोषी चाहे तो, इस दौरान अपने परिवारवालों और दोस्तों से मिल सकता है। वह एक से ज्यादा बार उन्हें मिलने के लिए बुला सकता है और उसके साथ समय बिता सकता है। 14 दिन का समय इसलिए तय किया जाता है, ताकि आरोपी खुद को मानसिक रूप से तैयार कर सके और चाहे तो अपनी आखिरी इच्छा भी लिख सके। अगर मुजरिम अपने आखिरी समय में पंडित, मौलवी या किसी को शामिल करना चाहता है, तो इस बात को लिख कर दे सकता है।

क्या वाकई पूछी जाती है आखिरी इच्छा?

फिल्मों में देखा जाता है कि सजायाफ्ता को फांसी पर चढ़ाने से पहले उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है, लेकिन क्या हकीकत में ऐसा होता है, यह सवाल तो वाकई में कई लोगों के मन में आता होगा। कई लोग सोचते होंगे कि अपने आखिरी इच्छा में कैदी ने अपनी जिंदगी मांग ली, तो क्या उसे फांसी पर नहीं लटकाया जाता, लेकिन यह सच नहीं है। दरअसल, कैदी से उसकी आखिरी इच्छा इस बारे में पूछी जाती है कि वो आखिरी बार किससे मिलना चाहता है और खासकर क्या खाना चाहता है।

यदि कैदी इससे परे कोई चीज मांगता है, तो नियमावली के मुताबिक देखा जाता है कि यह इच्छा पूरी की जा सकती है या नहीं। यदि उसे पूरा करने में ज्यादा समय लग सकता है, तो उसे अस्वीकार्य माना जाता है। अपने आखिरी 14 दिनों में दोषी अपने पसंद की किताब पढ़ने के लिए मांग सकता है, उसे तुरंत वो किताब मुहैया कराई जाती है।

सूर्योदय के समय क्यों दी जाती है फांसी?

दोषी को सूर्योदय के समय फांसी दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जेल में बाकी कैदियों और अधिकारियों का काम बाधित न हो। दूसरा कारण यह होता है कि इसके बाद परिवारवालों को दोषी का अंतिम संस्कार करने का समय मिल जाता है। फंदे पर लटकाने का समय मौसम के मुताबिक तय किया जाता है।

नवंबर से फरवरी यानी सर्दी के मौसम में सुबह 8 बजे का वक्त तय होता है। वहीं, मार्च, अप्रैल, सितंबर और अक्टूबर के महीने में सुबह 7 बजे, जबकि मई से अगस्त तक यानी गर्मी में सुबह 6 बजे फांसी दी जाती है। इसके अलावा, कैदी को पब्लिक हॉलिडे वाले दिन फांसी नहीं दी जाती है।

रेत की बोरी से किया जाता है निरीक्षण

कैदी को फांसी पर लटकाने की पूरी जिम्मेदारी जेल सुप्रिटेंडेंट की होती है। इन्हीं, 14 दिनों के अंतराल में मेडिकल ऑफिसर उसकी लंबाई और वजन के आधार पर ये तय करता है फांसी के तख्त के नीचे कितनी गहराई होनी चाहिए। इसके बाद उसके अनुसार तख्ता और बाकी चीजों की व्यवस्था की जाती है।

इस दौरान अधिकारी इस बात की भी ध्यान रखते हैं कि दोषी के वजन में ज्यादा फर्क न आए। जब फांसी के दो दिन बचे होते हैं, तो रेत की बोरी को लटका कर देखा जाता है कि रस्सी उसका वजन झेल पाएगा या नहीं। इस ट्रायल के दौरान ही तय किया जाता है कि कौन-सी रस्सी का ऑर्डर दिया जाए।

फांसी के दो दिन पहले आ जाता है जल्लाद

फांसी की तारीख तय होने के बाद जल्लाद को इसकी जानकारी दे दी जाती है। तारीख तय होने के दो दिन पहले जल्लाद जेल पहुंच जाता है। उसे देखना होता है कि सारी व्यवस्था ठीक तरीके से की गई है या नहीं। दरअसल, यह भी सुपरिंटेंडेंट की जिम्मेदारी होती है कि वो तय करें कि किस जल्लाद को बुलाना है।

पसंद का खाना खिलाया जाता है

जल्लाद सबसे पहले सुबह उठकर कैदी के पास जाता है और उसे नहाने के लिए कहता है और उसे साफ-सुथरे कपड़े पहनाए जाते हैं। इसके बाद कैदी से पूछा जाता है कि वो ब्रेकफास्ट करना चाहता है या नहीं, यदि कैदी को ब्रेकफास्ट करना होता है, तो उससे पूछकर उसकी पसंद का नाश्ता दिया जाता है।

मुजरिम को सुनाया जाता है डेथ वारंट

इन सब के दौरान जेल सुपरिंटेंडेंट के साथ असिस्टेंट जेल सुपरिंटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर, छह वार्डन और जल्लाद भी उस वक्त वहीं मौजूद होते हैं। सुपरिंटेंडेंट मुजरिम को वारंट पढ़कर सुनाता है और फिर उसके साइन लिया जाता है। इसके बाद दोषी को उसके सैल से निकालकर उस जगह ले जाया जाता है, जहां उन्हें फांसी देनी होती है।

काले कपड़े से दोषी के चेहरे को कवर करता है जल्लाद

इस समय जल्लाद, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और मजिस्ट्रेट पहले ही उस जगह पहुंच चुके होते हैं। वहीं, दूसरी ओर कैदी के साथ असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट और छह वार्डन होते हैं। इस दौरान कैदी के हाथों को पीछे बांध दिया जाता है। कैदी को तख्ते पर खड़ा किया जाता है और कुछ देर बाद जल्लाद उसके चेहरे को काले कपड़े से कवर कर देता है।

दोषी के कान में क्या कहता है जल्लाद?

फंदे पर लटकाने से पहले जल्लाद दोषी के कान में कुछ शब्द कहता है। यह कैदी के धर्म पर निर्भर करता है। दरअसल, उसके कान में कहता है 'हिंदुओं को राम राम और मुस्लिमों को सलाम। मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं। मैं आपके सत्य के राह पे चलने की कामना करता हूं।"

इसके बाद सबकी निगरानी में जल्लाद लीवर खींच देता है और तख्ता दो हिस्से में खुल जाता है, जिसके बाद कैदी फंदे से लटक जाता है और उसका दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है।

आधे घंटे तक फंदे से लटकता है शव

दोषी को आधे घंटे तक फंदे से लटके रहने दिया जाता है और इसके बाद मेडिकल ऑफिसर आकर चेक करता है। सुपरिंटेंडेंट फांसी का वारंट लौटा देता है और ये पुष्टि करता है कि फांसी की सजा पूरी हुई। साथ ही, इस बात की पुष्टि भी की जाती है कि दोषी को फांसी के फंदे तक सभी नियमों का पालन करते हुए पहुंचाया गया है। हर एक फांसी के तुरंत बाद सुपरिंटेंडेंट द्वारा इंस्पेक्टर जनरल को रिपोर्ट सौंपा जाता है और फिर वो वारंट कोर्ट को वापस लौटा दिया जाता है।

प्रशासन पर निर्भर करता है दोषी का अंतिम संस्कार

इसके बाद दोषी के शव को उतारकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है। पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोषी का शव उसके परिजनों को सौंप दिया जाता है। हालांकि, यह प्रशासन का निर्णय होता है कि शव को परिजनों को सौंपा जाएगा या फिर जेल में ही उसका अंतिम संस्कार किया जाएगा। 


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