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50 फीसद मुकदमों में नहीं हो रहा स्थगन के नियम का पालन

सरकार ने इस समिति का गठन वाणिज्यिक विवादों के तेजी से निपटारे की न्यायिक प्रक्रियाओं में बदलाव के सुझाव देने के लिए किया था।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 08 Jun 2017 09:23 PM (IST)Updated: Thu, 08 Jun 2017 09:23 PM (IST)
50 फीसद मुकदमों में नहीं हो रहा स्थगन के नियम का पालन
50 फीसद मुकदमों में नहीं हो रहा स्थगन के नियम का पालन

नई दिल्ली, प्रेट्र। अधिकतम तीन स्थगन देने के तय नियम का पालन 50 फीसद से ज्यादा मुकदमों में नहीं हो रहा है। केंद्र की ओर से गठित एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है। समिति का मानना है कि तीन से अधिक बार स्थगन देने की प्रवृत्ति के कारण अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है।

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समिति का कहना है कि यदि लंबित मुकदमों की संख्या में कमी लानी है तो अधिकतम तीन स्थगन के नियम का सख्ती से पालन किया जाए। वर्तमान में देश की अदालतों में करीब तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं।

सरकार ने इस समिति का गठन वाणिज्यिक विवादों के तेजी से निपटारे की न्यायिक प्रक्रियाओं में बदलाव के सुझाव देने के लिए किया था। समिति को विश्व बैंक के कारोबार में सहूलियत सूचकांक (इंडेक्स ऑफ ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) में भारत की रैंकिंग में सुधार के तरीके बताने की भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

समिति ने हाल ही में हुई एक बैठक में कहा, किसी दीवानी मुकदमे में कुल समय के मानदंडों के प्रावधान दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) में पहले से ही उपलब्ध हैं। इसमें सामान्य परिस्थितियों में किसी मुकदमे में दिए जा सकने वाले स्थगनों का भी उल्लेख है।

समिति के मुताबिक, बहरहाल, समय के ये मानदंड और स्थगनों से जुड़े नियम का 50 फीसद से अधिक मुकदमों में पालन नहीं किया जाता है। कानून मंत्रालय में सचिव (न्याय) की अध्यक्षता वाली इस समिति ने एकमत से स्वीकारा है कि कम से कम वाणिज्यिक विवादों की सुनवाई के दौरान तो तीन स्थगनों के नियम का सख्ती से पालन होना चाहिए।

बार-बार होने वाले स्थगनों को लंबित मुकदमों की संख्या में बढ़ोत्तरी का बड़ा कारण माना जाता रहा है। देश के उच्च न्यायालय राज्यों में अपने अधीनस्थ अदालतों को समय-समय पर निर्देश देते रहे हैं कि वे मुकदमों में बार-बार स्थगन की अनुमति नहीं दिया करें।

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