कोरोना महामारी की गिरफ्त में आने के बाद दुनिया बदल रही, मानव श्रम की जगह लेंगे रोबोट
COVID-19 कोरोना वायरस के प्रकोप ने इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है। हम जब इस संकट से पार पा लेंगे तो माना जा रहा है कि रोबोट हमारी दुनिया में ज्यादा सक्रिय होंगे।
नई दिल्ली, जेएनएन। COVID-19: एक बहस है, जो कभी एक पक्ष मजबूत करती है तो कभी दूसरा। यह बहस है रोबोट को लेकर। रोबोट हमारा काम आसान कर रहे हैं या फिर लोगों से उनका काम छीन रहे हैं। कोरोना महामारी की गिरफ्त में आने के बाद दुनिया बदल रही है। इसमें काम का तरीका भी शामिल है। कई बड़ी कंपनियां अपने काम को आसान बनाने के लिए रोबोट का सहारा ले रही हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि इसे बेहतर कहें या बदतर रोबोट मनुष्यों का जीवन बदलने जा रहे हैं, साथ ही वे मनुष्यों की नौकरियों को लील रहे हैं। बीबीसी के अनुसार कोरोना वायरस के प्रकोप ने इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है। हम जब इस संकट से पार पा लेंगे तो माना जा रहा है कि रोबोट हमारी दुनिया में ज्यादा सक्रिय होंगे।
नए अवसर खोल रहा कोरोना : रोबोट के तरीकों के बारे में लिखने वाले मार्टिन फोर्ड का मानना है कि लोग आमतौर पर अपनी बातचीत में मानवीय तत्व चाहते हैं, लेकिन कोविड-19 ने इसे बदल दिया है। कोविड -19, उपभोक्ता की वरीयता को बदलने जा रहा है और स्वचालन के लिए नए अवसरों को खोल रहा है। आने वाले वक्त में रोबोट अर्थव्यवस्था से जुड़ जाएंगे। बीबीसी के अनुसार बड़ी और छोटी कंपनियां इस बात पर विचार कर रही है कि कैसे वे रोबोट का इस्तेमाल कर शारीरिक दूरी बनाए रखें और ऑफिस आने वाले कर्मचारियों की संख्या कम करें। अमेरिका का सबसे बड़ा रिटेलर वॉलमार्ट रोबोट का इस्तेमाल कर रहा है। वहीं दक्षिण कोरिया में रोबोट के जरिए तापमान मापने और सैनिटाइजर वितरण किया जा रहा है। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि शारीरिक दूरी बनाए रखने के उपायों की 2021 तक आवश्यकता हो सकती है। इसके चलते रोबोट श्रमिकों की मांग अधिक हो सकती है।
स्वास्थ्य की चिंता : द कस्टमर ऑफ द फ्यूचर की लेखिका ब्लेक मॉर्गन कहती हैं कि ग्राहक अब अपने साथ श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य की भी परवाह करते हैं। स्वचालन की ओर कदम सभी को स्वस्थ रख सकता है और ग्राहक ऐसा करने वाली कंपनियों को सराहेंगे। मॉर्गन के मुताबिक, इसकी सीमाएं भी हैं। जब कई प्रणालियां अच्छी तरह से काम नहीं करती हैं या आसानी से टूट जाती हैं तो ग्राहक उनसे बचते हैं।
किराना दुकानों और रेस्तरां में उपयोग : कोरोना संकट के समय सफाई और स्वच्छता उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की मांग बढ़ी है। यूवीडी रोबोट, डेनमार्क के अल्ट्रावायलेट लाइट डिस्इंफेक्शन रोबोट का निर्माण करने वाली कंपनियों ने चीन और यूरोप के अस्पतालों को अपनी सैकड़ों मशीनें भेजी हैं। इन रोबोट का इस्तेमाल किराने का सामान देने वाली दुकानों और रेस्तरां में अधिक किया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि हम इस तकनीक को आगे भी अपना सकते हैं।
मानव श्रम की तुलना में सस्ते : यदि एक बार कोई कंपनी श्रमिक के बदले में रोबोट का इस्तेमाल शुरू करती है तो वो शायद ही इस व्यवस्था को बदले। रोबोट का निर्माण और उन्हें व्यवसाय में उतारना काफी महंगा होता है, लेकिन काम शुरू करने के बाद लंबे वक्त में यह मानव श्रमिकों की तुलना में सस्ते होते हैं। मार्टिन फोर्ड के अनुसार, इस महामारी के बाद रोबोट का इस्तेमाल कुछ मार्केटिंग फायदे भी दिला सकता है। वह बताते हैं कि लोग ऐसी जगह पर जाना पसंद करेंगे, जहां कर्मचारियों की संख्या कम और मशीनों की संख्या अधिक हो। यह इसलिए क्योंकि वे रोबोट को जोखिम कम करने वाला मानते हैं।
कई जगह रोबोट कर रहे काम : खाद्य सेवा एक अन्य क्षेत्र है जहां स्वास्थ्य चिंताओं के कारण रोबोट का उपयोग बढऩे की संभावना है। मैकडॉनल्ड्स जैसी फास्टफूड चेन कुक और भोजन परोसने वाले रोबोट का परीक्षण कर रही है। अमेजन और वॉलमार्ट अपने गोदामों में रोबोट का उपयोग दक्षता सुधार के लिए कर रहे हैं। कोविड-19 प्रकोप में दोनों कंपनियां शिपिंग और पैकिंग के लिए रोबोट का उपयोग बढ़ाने की कोशिश में हैं। लेकिन तकनीक से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार, यह कई लोगों को काम से बाहर कर देगा।
कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल : बड़ी तकनीकी कंपनियां कृत्रिम बुद्धि के उपयोग का विस्तार करने में जुटी हैं। फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियां अनुचित पोस्ट हटाने के लिए इसका उपयोग कर रही हैं। फिलहाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को विकसित किया जा रहा है जो स्कूल ट्यूटर, फिटनेस ट्रेनर और वित्तीय सलाहकारों को बदल सकता है। वहीं कइयों का मानना है कि यह इंसानों की नौकरियों में बढोतरी करेगा। वैश्विक सलाहकार मैकेंजी ने 2017 में अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि अमेरिका में 2030 तक रोबोट मानव श्रमिकों की एक तिहाई जगह ले लेंगे। लेकिन महामारी जैसी घटनाओं में सभी समय सीमाओं को बदलने की क्षमता होती है और विशेषज्ञों का कहना है कि यह वास्तव में मनुष्यों को तय करना है कि वे क्या चाहते हैं।