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राजमार्गों से ज्यादा जानलेवा हैं मुहल्ले की सड़कें, आंकड़े दे रहे हैरान करने वाले सबूत

केंद्र और राज्य सरकारों के सारे प्रयास राजमार्गो पर हादसे कम करने को लेकर हैं, जबकि हादसों का असली ठिकाना राजमार्ग नहीं, वरन शहरों, कस्बों और मुहल्लों की सड़कें हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 09:02 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 09:31 PM (IST)
राजमार्गों से ज्यादा जानलेवा हैं मुहल्ले की सड़कें, आंकड़े दे रहे हैरान करने वाले सबूत
राजमार्गों से ज्यादा जानलेवा हैं मुहल्ले की सड़कें, आंकड़े दे रहे हैरान करने वाले सबूत

संजय सिंह, नई दिल्ली। केंद्र और राज्य सरकारों के सारे प्रयास राजमार्गों पर हादसे कम करने को लेकर हैं, जबकि हादसों का असली ठिकाना राजमार्ग नहीं, वरन शहरों, कस्बों और मुहल्लों की सड़कें हैं। इन भीतरी सड़कों पर न केवल सबसे ज्यादा सड़क हादसे होते हैं, बल्कि लोगों को मौत की नींद सुलाने अथवा अपाहिज बनाने में भी इन्हीं सड़कों का सर्वाधिक योगदान है।

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पिछले साल इन अंदरूनी मार्गों पर हुई तकरीबन दो लाख सड़क दुर्घटनाओं में 55 हजार लोगों को मौत का शिकार होना पड़ा। जबकि लगभग दो लाख व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार की चोटों का सामना करना पड़ा।
आंकड़े बता रहे कहानी
वर्ष 2017 में हुए लगभग 4.65 लाख सड़क हादसों में राष्ट्रीय राजमार्गो पर 30.4 फीसद और प्रादेशिक राजमार्गो पर 25.0 फीसद हादसे हुए। वहीं मोहल्ले की सड़कों पर हादसों का हिस्सा 44.6 प्रतिशत रहा। इससे पहले 2016 में भी कमोबेश यही स्थिति रही थी। तब राष्ट्रीय राजमार्गो पर 29.6 फीसद और प्रादेशिक राजमार्गो पर 25.3 फीसद दुर्घटनाएं हुई थी, जबकि शहरों के भीतर सड़कों पर 45.1 फीसद हादसे दर्ज किए गए थे।


एनएच से ज्‍यादा खतरनाक हैं शहर और कस्‍बों की सड़क
सड़क हादसों में मरने वालों के लिहाज से भी शहरों, कस्बों और मुहल्लों की सड़कें कहीं अधिक ज्यादा जानलेवा हैं। वर्ष 2017 में भीतरी मार्गो पर सड़क हादसों में 37.1 फीसद लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसके मुकाबले राष्ट्रीय राजमार्गो पर महज 36.0 फीसद और प्रादेशिक राजमार्गो पर 26.9 फीसद लोग ही दुर्घटनाओं में मारे गए। चोट के हिसाब से भी नगर निगमों और पालिकाओं के दायरे में आने वाली की सड़कों की स्थिति ज्यादा खतरनाक है। पिछले वर्ष इन सड़कों पर 44.3 प्रतिशत लोगों को किसी-न-किसी सड़क हादसे की वजह से चोट का शिकार होना पड़ा। इसके मुकाबले राष्ट्रीय राजमार्गो केवल 30.3 प्रतिशत व प्रादेशिक राजमार्गो पर महज 25.4 प्रतिशत लोग शारीरिक क्षति का शिकार हुए।

इस मामले में संतोष की बात सिर्फ इतनी है कि 2005 के बाद से अब तक राष्ट्रीय और प्रादेशिक राजमार्गो पर हादसों के साथ-साथ मरने और घायल होने वालों का प्रतिशत थोड़ा बढ़ा है। जबकि मुहल्ले के भीतर की सड़कों पर मरने वालों की संख्या को छोड़, दुर्घटनाओं और घायल होने वालों के प्रतिशत में कुछ कमी आई है।

क्या है वजह
आंतरिक सड़कों के ज्यादा मारक होने का सबसे बड़ा कारण वाहन चालकों द्वारा ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करना व मनमर्जी से ढंग से वाहन चलाना है। इसके साथ ही अधिक यातायात घनत्व, अतिक्रमण, यातायात संकेतकों एवं मार्ग चिह्नों का अभाव अथवा कमी, गलत कट और पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ का न होना दूसरी प्रमुख वजहें हैं। शहरों व कस्बों के भीतर यातायात नियमों का सबसे बड़ा उल्लंघन वाहन चालकों, खासकर बाइक, ऑटो रिक्शा, ई-रिक्शा और साइकिल, रिक्शा चालकों द्वारा उलटी दिशा में वाहन चलाना है।

इस कारण ऐसे खुले इलाकों में भी, जहां प्राय: बहुत कम यातायात रहता है, पचास फीसद से ज्यादा हादसे होते हैं। मुहल्लों में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा 19.2 फीसद सड़क दुर्घटनाएं रिहायशी इलाकों में पाई गई हैं।


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