पेंचीदा सड़क परियोजनाएं लेंगी गडकरी की परीक्षा, आसान नहीं होगा सौ दिन में वादा पूरा करना
सड़क निर्माण में जबरदस्त तेजी के बावजूद राजग सरकार की शुरू कुछ सड़क परियोजनाएं भी अटक गई हैं।
संजय सिंह, नई दिल्ली। केंद्रीय सड़क परिवहन नितिन गडकरी ने सौ दिन में लंबित राजमार्ग परियोजनाओं को पूरा कराने का वादा तो कर दिया है, लेकिन इसे पूरा करना आसान न होगा। कुछ पेंचीदा सड़क परियोजनाएं ऐसी वजहों से अटकी हैं जिनका समाधान बेहद कठिन है। इतने कम समय में सिर्फ उन्हीं परियोजनाओं को पूरा करना संभव है जिनकी समस्याओं को पहले सुलझा लिया गया हो। गडकरी ने इसीलिए सिर्फ 20-25 परियोजनाओं को लक्षित किया है। जबकि वास्तव में लंबित परियोजनाओं की संख्या इससे ज्यादा है।
बीते दिसंबर तक देश में 3.97 लाख करोड़ रुपये लागत की कुल 719 राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं चल रही थीं। इनमें से 71 सड़क परियोजनाएं समय से पीछे थीं। इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की समीक्षा करने वाली रेटिंग एजेंसी 'केयर' की रिपोर्ट के अनुसार इनमें भी 45 परियोजनाओं की लागत बढ़ गई थी।
गौरतलब है कि इनमें से अनेक परियोजनाएं संप्रग शासन काल के समय में शुरू हुई थीं। इन्हें जमीन अधिग्रहण, यूटिलिटी शिफ्टिंग और वन एवं पर्यावरण मंजूरी जैसी आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा किए बगैर अवार्ड किया गया था। इस कारण इनकी शुरुआत ही देर से हुई थी। जबकि बाद में कर्ज देने में बैंकों की आनाकानी, मुकदमों और टोल विवादों के कारण ये पिछड़ती चली गई। ऐसी परियोजनाओं में दिल्ली-आगरा, पानीपत-जालंधर, मेरठ-देहरादून, वाराणसी-लुंबिनी, दिल्ली-जयपुर तथा जम्मू-श्रीनगर हाईवे चौड़ीकरण की परियोजनाएं प्रमुख हैं, जिन पर आज भी किसी न किसी स्तर पर काम चल रहा है।
सड़क निर्माण में जबरदस्त तेजी के बावजूद राजग सरकार की शुरू कुछ सड़क परियोजनाएं भी अटक गई हैं। उदाहरण के लिए पिछले चार सालों के दौरान हाइब्रिड एन्युटी मॉडल पर अवार्ड की गई सौ से ज्यादा परियोजनाओं में से लगभग 65 फीसद पर ही अभी काम शुरू हो सका है। जबकि भूमि अधिग्रहण के लफड़ों के कारण 35 फीसद परियोजनाओं को अभी तक एनएचएआइ की अनुमति नहीं मिली है। नई सरकार आने के साथ इन्हें आगे बढ़ाने जा रही है।
अटकी हुई राजमार्ग परियोजनाओं में आठ-दस परियोजनाओं का संबंध उन निर्माताओं से हैं जिनका कार्यान्वयन लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (आइएल एंड एफएस) द्वारा किया जा रहा था।
एनएचएआइ ने आइएल एंड एफएस से इन सभी परियोजनाओं को उसे वापस करने को कहा है, ताकि वो उन्हें पूरा करने का काम दूसरी कंपनियों को सौंप सके। इनमें से ज्यादातर का कार्यान्वयन राज्यों के पीडब्लूडी के मार्फत किया जा रहा था। परंतु अब इनमें से कुछ अति महत्वपूर्ण परियोजनाओं को केंद्र सरकार स्वयं अपना पैसा लगाकर ईपीसी (इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन एंड प्रोक्योरमेंट) मोड से पूरा करेगी।
इन परियोजनाओं की कुल अनुमानित लागत लगभग 15 हजार करोड़ रुपये है। इनमें जम्मू-कश्मीर की रणनीतिक महत्व वाली जेड-मोड़ सुरंग परियोजना शामिल है। ये परियोजना देश की सबसे लंबी मानी जाने वाली जोजिला सुरंग परियोजना के अतिरिक्त है, जिसका ठेका भी विलंब के कारण दुबारा देना करना पड़ा था।
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