Move to Jagran APP

राजकपूर और नरगिस में पहले नजदीकी और फिर अलगाव का गवाह है यही RK Studio

आरके स्टूडियो की स्थापना 1948 में राज कपूर ने की थी। यह स्‍टूडियो नरगिस और लता मंगेशकर से अलगाव का भी गवाह रहा है। कई हिट फिल्‍मों की शुरुआती चर्चा भी यहीं हुई थी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 05 May 2019 02:52 PM (IST)Updated: Mon, 06 May 2019 07:29 AM (IST)
राजकपूर और नरगिस में पहले नजदीकी और फिर अलगाव का गवाह है यही RK Studio

अनंत विजय। अपने जीवन के अंतिम दिनों में मेरे पिता ने बहुत कम पैसों में आरकेस्टूडियोज के दो स्टेज बेच दिए थे। उनके बेटे और उत्तराधिकारी के रूप में डब्बू, चिंपू और और मैं सफल फिल्में भले नहीं बना पाए, लेकिन हमने संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं बेचा। हमने अपनी विरासत संभाल कर रखी है। ये बातें ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा ‘खुल्लम-खुल्ला’ में लिखी हैं, जो 2017 में प्रकाशित हुई थी। जब आरके स्टूडियोज के बिकने की खबर आई तो उपरोक्त पंक्तियां अचानक दिमाग में कौंध गईं। दो साल पहले जो ऋषि कपूर अपनी विरासत को लेकर इतने बड़े दावे कर रहे थे, वो इतने कम समय में कैसे बदल गए, क्या हुआ कहा नहीं जा सकता है। क्या वजह रही कि राज कपूर के वारिसों ने, उनके बेटों ने ऐतिहासिक आरके स्टूडियोज को बेचने का फैसला किया। उन्हें यह हक है कि वो अपने पिता की संपत्ति को जिसे चाहे उसको बेचें। लेकिन भारतीय सिनेमा के इस अत्यंत महत्वपूर्ण स्मारक को गिराकर अब उसकी जगह शॉपिंग मॉल और लग्जरी अपार्टमेंट बनाए जाएंगे।

loksabha election banner

राज कपूर और हिंदी फिल्म प्रेमियों के लिए ये एक झटके की तरह था। हालांकि इस बात की आशंका तभी से जताई जाने लगी थी जब स्टूडियो भयानक आग का शिकार हुआ था और कहा गया था कि सबकुछ जलकर खाक हो गया। इस तरह की बातें भी आने लगी थीं कि अब फिल्म निर्माता चेंबूर जाकर फिल्मों की शूटिंग करना नहीं चाहते हैं, क्योंकि उससे ज्यादा सहूलियतें अंधेरी में उपलब्ध स्टूडियोज में है। इस वजह से आरके स्टूडियोज को चला और बचा पाना राज कपूर के वारिसों के लिए मुश्किल हो रहा था। दो एकड़ से अधिक में फैला ये परिसर हिंदी फिल्म का एक ऐसा स्मारक था, एक ऐसी जगह थी जो दर्जनों बेहतरीन फिल्मों के बनने की गवाह रही है।यहां राज कपूर की मुहब्बत की शुरुआत होती है और यहीं उस पर परदा भी गिरता है। यह वो जगह थी जिसने गीत और संगीत की दुनिया को कई सितारे दिए, शंकर जयकिशन से लेकर शैलेंद्र तक। बॉबी की डिंपल से लेकर राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी तक को इसी परिसर में काम करके प्रसिद्धि का स्वाद चखने को मिला था।

फिल्म इतिहासकार मिहिर बोस के मुताबिक 1950 में राज कपूर ने आरके फिल्म्स को विस्तार देने की योजना बनाई थी और आरके स्टूडियोज के नाम से चेंबूर में सभी सुविधाओं से लैस एक स्टूडियो की स्थापना की थी। उस वक्त राज कपूर का ये स्टूडियो उनके घर से करीब चार किलोमीटर की दूरी पर था। जब राज कपूर ने इस स्टूडियो की स्थापना की थी तो यह इलाका बंबई का बाहरी हिस्सा हुआ करता था। आरके स्टूडियोज परिसर में राज कपूर का प्रसिद्ध कॉटेज होता था जहां कई ऐतिहासिक फिल्मों की शुरुआती बातें हुई थीं, कई मशहूर गानों और धुनों के बनाने- बनने पर बातें हुईं। फिल्मों को लेकर चर्चाओं के दौर चला करते थे। कई जगह यह भी उल्लेख है कि फिल्मों पर चर्चा सत्र को राज कपूर टेप किया करते थे। अगर ये सच है तो वो टेप फिल्म निर्माण करनेवालों के लिए अमूल्य हो सकते हैं। राज कपूर का कॉटेज स्टूडियो परिसर में कार्यालय के पीछे की तरफ था। कॉटेज में राज कपूर का एक कमरा था। अपने कॉटेज को राज कपूर अपनी कला का मंदिर मानते थे और अपने कमरे को मंदिर का गर्भगृह। राज कपूर के कमरे में सभी धर्मो के देवी देवताओं के चित्र लगे हुए थे, यहां तक कि कुरान की एक आयत भी दीवार पर उकेरी गई थी।

राज कपूर के लिए सिनेमा उनकी जिंदगी हुआ करती थी। कपूर खानदान पर पुस्तक लिखनेवाली मधु जैन ने लिखा है कि राज कपूर के कॉटेज का दरवाजा फिल्मकार राज कपूर और पति, भाई, पिता, दादा राज कपूर के बीच लाइन ऑफ कंट्रोल हुआ करता था। उनके परिवार ने कभी भी इस लाइन को लांघने की कोशिश नहीं की। आरके स्टूडियोज में राज कपूर के कमरे के पीछे नरगिस का भी एक कमरा हुआ करता था, और आरके स्टूडियोज में ही प्रसासनिक भवन के पीछे पहली मंजिल पर नरगिस का ड्रेसिंग रूम बना था। इसके ठीक सामने राज कपूर का ड्रेसिंग रूम था। नरगिस और राज कपूर के अलगाव के बाद उनका ड्रेसिंग रूम आरके बैनर तले काम करनेवाली अन्य नायिकाओं के उपयोग में आने लगा था। कॉटेज में नरगिस का जो कमरा था वो जस का तस बना रहा। नरगिस का सामान भी उसी तरह से रखा रहा था जैसा वो छोड़कर गई थी। राज कपूर ने नरगिस से अलगाव के करीब बीस साल बाद 1974 में एक इंटरव्यू में बताया कि जब नरगिस ने अलग होने का फैसला किया तो वो कभी आरके स्टूडियोज नहीं लौटीं। एक दिन उनका ड्राइवर आया और राज कपूर से कहा कि बेबी ने अपने हाईहील वाले सैंडल मंगवाए हैं। थोड़े दिनों बाद फिर ड्राइवर आया और उसने कहा कि बेबी ने बाजा (हारमोनियम) मंगवाया है। राज कपूर ने कहा कि जब ड्राइवर नरगिस का हारमोनियम ले जा रहे थे तो उनकी समझ में आ गया कि अब सबकुछ खत्म हो गया है।

इन दोनों के अलगाव का गवाह भी आरके स्टूडियोज ही बना था। वर्ष 1956 में एक फिल्म आई थी- जागते रहो। फिल्म की शूटिंग शुरू हुई तो नरगिस पूरी तरह से कंट्रोल कर रही थी। हर तरह के निर्देश आदि देती थी, लेकिन राज और उनके बीच के संबंध में खटास इतनी बढ़ गई कि इस फिल्म का आखिरी सीन नरगिस का आरके बैनर की अंतिम फिल्म साबित हुई। फिल्म के अंतिम सीन में जब प्यासा राज कपूर भटक रहे होते हैं तो नरगिस उनको पानी पिलाती हैं। नरगिस इस सीन को करना नहीं चाहती थी, पर वहां मौजूद सभी लोगों के आग्रह को वो टाल नहीं पाईं। माना यह गया कि ये सीन नरगिस को आरके स्टूडियोज की तरफ से फेयरवेल था।

राज कपूर और नरगिस से जुड़े सैकड़ों किस्से और यादें तो इस जगह से जुड़े ही हैं, अन्य नायक नायिकाओं और कलाकारों से जुड़े दिलचस्प किस्सों का भी ये परिसर गवाह रहा है। यहीं राज कपूर और राजेश खन्ना के बीच रात भर बात होती रही थी। राज कपूर चाहते थे कि सत्यम शिवम सुंदरम में राजेश खन्ना काम करें। उन्होंने रात को उनको अपने कॉटेज पर बुलाया और फिर रसरंजन के दौर चले, लेकिन बात नहीं बन सकी। जीनत अमान के साथ शशि कपूर को इस फिल्म में रोल मिला था। इस फिल्म को लेकर ही राज कपूर और लता मंगेशकर के रिश्तों में खटास शुरू हुई थी। दरअसल राज कपूर ने लता मंगेशकर के साथ मिलकर ‘सूरत और सीरत’ नाम से एक फिल्म की योजना बनाई थी जो परवान नहीं चढ़ सकी थी।

बाद में जब राज कपूर ने उसी थीम पर ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ बनाई तो लता को जीनत अमान का चुनाव अखर गया। लता और राज कपूर के संबंध भी बहुत मधुर थे। ऐसी कई घटनाओं का गवाह रहा आरके स्टूडियोज अब किताब के पन्नों में रह जाएगा। हिंदी सिनेमा के 100 साल के इतिहास में आरके स्टूडियोज लगभग 50 साल तक हिंदी फिल्मों के केंद्र में रहा, लेकिन अब वहां गगनचुंबी इमारत होगी और ये सभी यादें उनके नीचे दफन हो जाएंगी। राज कपूर से जुड़ी यादों को सहेजने के लिए कोई पहल नहीं हुई। राज कपूर और उनकी कला सिर्फ कपूर परिवार का नहीं है, वो हमारे देश का है। इसे बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी थी, पर ऐसा हो न सका।

जरूरत इस बात की है कि हमारे देश में एक सांस्कृतिक नीति बने जिसमें अपनी विरासत और धरोहर को संजोने के लिए ठोस कदम उठाने की नीति शामिल की जाए। ये केवल फिल्मों से जुड़ा मसला नहीं है हमारी कला संस्कृति की समृद्ध विरासत कई स्थानों पर बेहतर रख-रखाव आदि के अभाव में नष्ट हो रही है। भारतीय प्राच्य विद्या का खजाना कई प्राचीन पुस्तकालयों में नष्ट होने के कगार पर है। उनको संभालने की भी जरूरत है, अन्यथा एक समय ऐसा आ सकता है जब हम विकास की गगनचुंबी इमारत पर तो खड़े होंगे, लेकिन हमारे पास न तो कोई धरोहर बचेगा और न ही हमारी विरासत होगी। इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ ठोस नीति चाहिए।

भारत में फिल्म जगत का इतिहास मुंबई से ही जुड़ा है और इससे जुड़ी एक बड़ी धरोहर आरके स्टूडियोज को माना जाता है। हालांकि बीते वर्षो के दौरान उसकी खस्ताहाल दशा से संबंधित कई खबरें आईं, लेकिन हालिया खबर के मुताबिक इसके उत्तराधिकारियों ने इसे एक निजी कंपनी को बेच दिया है। निश्चित रूप से फिल्म जगत की विरासत को संजोने के संदर्भ में यह एक बुरी खबर कही जा सकती है

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.