सर्जिकल स्ट्राइकः मेजर ने बताया लौटते समय हर कदम पर थी मौत
'इंडियाज मोस्ट फीयरलैस, ट्रू स्टोरी ऑफ माडर्न मिल्ट्री हीरोज' में खुलासा...
नई दिल्ली, प्रेट्र: सर्जिकल स्ट्राइक से हर कोई वाकिफ है, लेकिन इस बात को कम लोग ही जानते हैं कि किस तरह से इन जाबांजों को हर कदम पर मौत का सामना करना पड़ा। दुश्मन का सफाया आसान था, लेकिन फिर से अपनी सीमा में पहुंचने का काम सबसे ज्यादा दुरुह था। हर कदम पर मौत थी। दुश्मन किसी भी सैनिक को जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था, लिहाजा उसने सारा गोला बारूद उन पर झोंक दिया।
शिव अरूर व राहुल सिंह ने अपनी किताब 'इंडियाज मोस्ट फीयरलैस, ट्रू स्टोरी ऑफ माडर्न मिल्ट्री हीरोज' में खुलासा किया है कि उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक का तानाबाना तैयार किया गया। भारतीय सैनिकों की बेमिसाल कार्रवाई के एक साल पूरा होने पर आई इस किताब में बताया गया है कि 19 जवानों की जो टीम तैयार की गई उसमें सबसे ज्यादा उन यूनिटों के जवान थे, जो उड़ी हमले का शिकार बनी थीं। मेजर माइक टेंगो (काल्पनिक नाम) को इसकी कमान सौंपी गई। आइबी व रा से मिली जानकारी के आधार पर जो रणनीति बनाई गई उससे सरकार को पहले ही अवगत करा दिया गया। टीम के निशाने पर सीमा पार चार आतंकी कैंप थे। इनका खुलासा भारत के उन सूत्रों ने किया था जो पाक में सक्रिय थे।
इनमें दो सीमा पार रहने वाले ग्रामीण थे जबकि दो पाकिस्तानी नागरिक। टीम को अत्याधुनिक हथियारों से लैस करके मेजर टैंगो ने आतंकी कैंपों का रुख किया। उन्होंने टीम को चार हिस्सों में बांटकर चारों कैंपों पर एक साथ हमले का फैसला लिया। इनमें दो कैंप एक दूसरे से पांच सौ मीटर की दूरी पर थे। पाक सेना की यूनिट उनके बेहद नजदीक थी। आइएसआइ की सीधी निगरानी में चलने वाले कैंपों से आतंकियों को सीमा पार भेजा जाता था। ये मेजर टैंगों की टीम के निशाने पर थे। टारगेट को तय करने के बाद रात के अंधेरे में टीमों ने भीषण गोलीबारी शुरू कर दी। आतंकी व पाक सेना जब तक संभलते चारों कैंपों को तबाह कर दिया गया था, लेकिन मेजर टैंगों कहते हैं कि 38 से 40 आतंकियों का खात्मा उतना मुश्किल नहीं था, जितना वहां से लौटना। वापसी में सैनिकों की पीठ पाक सेना की तरफ थी। ताबड़तोड़ चल रही गोलियों के बीच से निकलकर हमें अपनी सीमा में पहुंचना था।
कोई सैनिक हताहत न हो, इसके लिए जिस रास्ते से भीतर गए थे वापसी में उसका इस्तेमाल नहीं किया गया। जो रास्ता चुना गया वो घुमावदार पर सुरक्षित था। पाक सैनिकों की गोलियां हमारे बेहद नजदीक से गुजरी। कुछ तो कान के इंच भर दूर से होकर गईं। दुश्मन के गोला बारूद से कोई सैनिकों को बचा रहा था तो वह थे पेड़। सबसे ज्यादा मुश्किल आखिर के 60 मीटर तय करते समय हुई। उस समय सैनिकों को खाली मैदान से होकर अपनी सीमा तक पहुंचना था। सैनिक पेट के बल रेंग रहे थे। दुश्मन के गोले बेहद नजदीक आकर गिर रहे थे। लेकिन अंत भला तो सब भला को सार्थक करते हुए भारतीय सैनिक सुबह 4.30 बजे अपनी सीमा में पहुंच गए।
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