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कोरोना में HCQ की उपयोगिता पर एम्स में शुरू हुआ शोध, 480 मरीजों पर किया जा रहा अध्ययन

डाक्टर रमन गंगाखेड़कर के अनुसार कोरोना मरीजों के इलाज और देशभाल में करने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स जो एचसीक्यू ले रहे थे उनकी स्टडी की गई।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 18 Apr 2020 08:45 PM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2020 08:47 PM (IST)
कोरोना में HCQ की उपयोगिता पर एम्स में शुरू हुआ शोध, 480 मरीजों पर किया जा रहा अध्ययन

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली के एम्स अस्पताल में कोरोना के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) की उपयोगिता पर अध्ययन शुरू हो गया है। 480 मरीजों को आठ हफ्ते तक एचसीक्यू देने के बाद उनके प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा। इसके साथ ही आइसीएमआर ने एचसीक्यू लेने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स पर एक अलग से अध्ययन किया है जिसमें कुछ मामलों में पेट दर्द या उल्टी जैसी शिकायतें आई हैं।

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आइसीएमआर के डाक्टर रमन गंगाखेड़कर ने कहा कि एम्स में एचसीक्यू को लेकर दोनों तरह की स्टडी हो रही है, जिसमें एक कोरोना को होने से रोकना और दूसरा होने के बाद मरीज को ठीक करने को लेकर है। उन्होंने कहा कि इस स्टडी ने 480 मरीज पंजीकृत किये जाएंगे और आठ हफ्ते तक उन्हें एचसीक्यू देकर उसके प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके रिजल्ट आने में दो-ढाई महीने का समय तो लगेगा ही। यही नहीं, लॉकडाउन के कारण आने वाली दिक्कतों की वजह से ज्यादा समय भी लग सकता है।

HCQ ले रहे मरीजों की गई स्टडी

डाक्टर रमन गंगाखेड़कर के अनुसार कोरोना मरीजों के इलाज और देशभाल में करने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स, जो एचसीक्यू ले रहे थे, उनकी स्टडी की गई। इन सबकी आयु लगभग 35 साल थी। स्टडी में पाया गया कि लगभग 10 फीसदी ने एचसीक्यू खाने के बाद पेट दर्द की बात बताई। वहीं छह फीसदी ने उल्टी जैसा महसूस किया। खतरनाक बात यह थी कि एचसीक्यू खाने वाले 22 फीसदी हेल्थ वर्कर को बीपी, डायबटीज और अन्य बीमारियां थी। हेल्थकेयर वर्कर होते हुए 14 फीसदी लोगों ने कभी ईसीजी नहीं देखा था। अभी यह स्टडी जारी है।

रेमडिसिविर दवा के प्रभाव के पुख्ता प्रमाण नहीं

डाक्टर रमन गंगाखेड़कर के अनुसार एंटी वायरल दवा रेमडिसिविर को लेकर अभी ट्रायल नहीं हुआ है। अभी कुछ गंभीर हालात वाले मरीजों को यह दवा दी गई और उसके आधार पर बताया गया कि 68 फीसदी लोगों में आक्सीजन की मांग कम हो जाती है। वहीं रेमडिसिविर बनाने वाली कंपनी ने 5500 मरीजों पर ट्रायल शुरू किया है, जिसमें मरीजों को पांच दिन और 10 दिन पर अलग-अलग दी जा रही है। उनका कहना है कि शायद यह दवा काम करती है। इसके ट्रायल का अंतरिम डाटा भी सामने नहीं आया है। लेकिन कंपनी का दावा है कि शायद इससे फायदा होगा और पांच दिन दवा देना ज्यादा प्रभावी होगा।

डाक्टर गंगाखेड़कर ने कहा कि ध्यान देने की बात है कि रेमडेसिविर एक पेंटेंटेड दवा है और अभी तक इसका भरोसेमंद डाटा सामने नहीं आया है। यदि एक दो हफ्ते बाद भी इसके प्रभावी होने की बात सामने आई तो हमारे पास दो उपाय हैं। एक तो कंपनी पर महामारी के कारण पेंटेंट पुलिंग में डालने का दबाव पड़ेगा। एचआइवी के बहुत सारे ड्रग पेटेंट पुलिंग में है। जिसमें दवा विकसित करने वाली कुछ रॉयलिटी चार्ज करती है, और जेनेरिक दवा निर्माता कंपनियों को उस दवा को बनाने की इजाजत दे देता है। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ की सोलिडरिटी ट्रायल में रेमडिसिविर पर शोध चल रहा है, जिसमें भारत भी भागीदार है।


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