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चीन में 2015 से चल रहा था कोरोना वायरस पर शोध, जेनेटिक बदलाव कर देखा जा रहा था इंसानों पर इसका असर

य़े मानना है विज्ञान के मामलों के प्रमुख लेखक निकोलस वाडे का। उनके अनुसार जेनेटिक बदलाव कर देखा जा रहा था कोरोना वायरस का मानव पर उसका असर। विज्ञान मामलों के प्रमुख लेखक वाडे ने रखे तार्किक तथ्य- कहा सबसे मजबूत संकेत वायरस के लैब से निकलने के।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Sat, 22 May 2021 10:35 AM (IST)Updated: Sat, 22 May 2021 12:16 PM (IST)
चीन में 2015 से चल रहा था कोरोना वायरस पर शोध, जेनेटिक बदलाव कर देखा जा रहा था इंसानों पर इसका असर
चीन की लैब से कोरोना वायरस निकलने को लेकर तार्किक तथ्य।(फोटो: दैनिक जागरण)

नई दिल्ली, आइएएनएस। मानव आबादी पर खतरा बनकर मंडरा रहे कोरोना वायरस की उत्पत्ति और इसके संक्रमण को लेकर शक की सुई अभी भी चीन की साजिश की ओर ही इशारा कर रही है। पता चला है कि चीन में मानव कोशिकाओं पर इस वायरस के असर को लेकर 2015 से प्रयोग चल रहे थे। ये प्रयोग वुहान के वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट में चल रहे थे और इनमें बैट लेडी नाम से ख्यात महिला विज्ञानी शी झेंग-ली शामिल थी। शी अमेरिका की नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के प्रमुख कोरोना वायरस शोधकर्ता राल्फ एस बारिक के साथ भी काम कर रही थी। 

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चीन की वुहान लैब से निकला कोरोना वायरस !

कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर अभी तक जितनी भी आशंकाएं जताई गई हैं, उनमें सबसे पुख्ता वुहान की लैब से उसके बाहर आने की है। यह मानना है विज्ञान के मामलों के प्रमुख लेखक निकोलस वाडे का। एटॉमिक साइंटिस्ट्स के बुलेटिन में वाडे ने लिखा है कि वुहान की लैब से कोरोना वायरस के बाहर निकलने की आशंका सबसे ज्यादा है। क्योंकि पूरे चीन में वह इकलौती लैब है जहां पर कोरोना वायरस पर शोध चल रहा था। यहां पर चमगादड़ में पाए जाने वाले कोरोना वायरस को जेनेटिक इंजीनियरिंग से बदलकर उसका मानव कोशिकाओं पर प्रभाव देखा जा रहा था। ये प्रयोग दक्षिण चीन स्थित युन्नान की गुफाओं में रहने वाले सैकड़ों प्रजातियों के चमगादड़ लाकर उनके भीतर के वायरस निकालकर किए जाते थे। अगर इनमें से कोई वायरस किसी तरह से बाहर आ गया हो तो वह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। 

वाडे ने लिखा है कि इसमें कोई शक नहीं कि वुहान की लैब में कोरोना वायरस को आनुवांशिक रूप से बदलकर उसका मानव कोशिका पर हमला कराया जा रहा था और इस हमले का असर देखा जा रहा था। कोरोना वायरस बीते डेढ़ साल से जिस तरह से व्यवहार कर रहा है उससे साफ लगता है कि यह मूल स्वरूप में न होकर लैब में तैयार जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार ज्यादा असरदार कोरोना वायरस है, जो समय के साथ अपने स्वरूप बदलकर अपना दुष्प्रभाव दिखा रहा है।

चीन ने जिस तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन की जांच में देरी की और जांच दल के वुहान लैब में जाने को लेकर बाधाएं खड़ी कीं, उससे शक और गहरा हो जाता है। वाडे के अनुसार कोरोना परिवार के पूर्ववर्ती वायरसों का सक्रिय होने के कुछ महीनों बाद असर कम हो गया या वे मृत प्राय: हो गए लेकिन यह नया वायरस समय के साथ और मजबूत होता जा रहा है। इससे साफ है कि यह प्राकृतिक वायरस नहीं है।


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