दशकों से राजपथ का रोमांच रहा है फौजियों का ये दस्ता, विश्व में नहीं मिलता ऐसा कोई दूसरा उदाहरण
राजपथ पर निकलने वाली परेड में सभी के लिए सजीले ऊंटों पर सवार सीमा सुरक्षा बल के जवान हमेशा से ही रोमांच का विषय रहे हैं। इस बार भी ये जवान इस परेड की शोभा बढ़ाने को तैयार हैं।
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। गणतंत्र दिवस की तैयारी इस वक्त दिल्ली में जोर-शोर से चल रही है। हर बार की तरह भारतीय सेना के जवान, अर्द्धसैनिक बल और दूसरे दस्ते राजपथ की शोभा बढ़ाने को बेताब हैं। लेकिन इन सभी में एक दस्ता बेहद खास है। ऐसा नहीं है कि ये दस्ता पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड का हिस्सा बन रहा है बल्कि ये दशकों से लगातार इस परेड का हिस्सा रहा है और ये है सीमा सुरक्षा बल।
इस बल के जवान गुजरात और राजस्थान में पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ऊंट पर सवार होकर सीमाओं की रक्षा में हर समय तत्पर रहते हैं। ये दुनिया का अपनी तरह का एकमात्र फौजी दस्ता है, जिसके कंधों पर देश की सरहदों की हिफाजत का दायित्व है। सीमा सुरक्षा बल के कंधों पर देश की करीब 6,385 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा का दायित्व है जिसमें मीलों तक फैला दुर्गम रेगिस्तान, नदी-घाटियों और हिमाच्छादित प्रदेश शामिल हैं। इसको फर्स्ट लाइन आफ डिफेंस भी कहा जाता है।
राजपथ पर सजीले ऊंटों पर सवार सीमा सुरक्षा बल का दस्ता पहली बार 1976 में शामिल हुआ था। 1990 से सीमा सुरक्षा बल का बैंड दस्ता भी परेड का हिस्सा बनने लगा। ऊंटों को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। रेगिस्तान में गाडि़यों का चलना काफी मुश्किल होता है लेकिन ऊंटों रेतों के टीलों पर आसानी से दौड़ सकता है। यही वजह है कि इन जवानों के लिए ऊंटों का चयन किया गया था। इस तरह के फौजी दस्ते का उदाहरण विश्व में किसी भी दूसरी जगह पर देखने को नहीं मिलता है।
गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ पर निकलने वाले ऊंटों के दस्ते में करीब सौ ऊंट शामिल होते हैं। इन ऊंटों को भी नाम दिए जाते हैं। ऊंटों के इस दस्ते पर बैठे छह फीट ऊंचे जवानों की एक पहचान उनकी रौबीली मूंछे होती हैं, जो हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं। इस बार इस दस्ते का नेतृत्व जिस ऊंट को दिया गया है उसका नाम है संग्राम। इस ऊंट पर सवार होंगे कमांडेंट मनोहर सिंह खीची। इनके पीछे जो ऊंट राजपथ की शोभा बढ़ाएंगे उनमें युवराज, गजेंद्र, मोनू, गुड्डू समेत दूसरे ऊंट भी शामिल होंगे।
हालांकि इस बार भी कोरोना महामारी के कारण राजपथ पर निकलने वाली परेड में कुछ बदलाव किए गए हैं, फौजी दस्तों को पहले की तुलना में छोटा किया गया है लेकिन इसका असर सीमा सुरक्षा बल के इस दस्ते पर नहीं पड़ा है। इस बार इस परेड के लिए जोधपुर और बीकानेर से बल के ऊंट शामिल किए गए हैं। ये ऊंट पारंपरिक गोरबंद, लूम समेत करीब 70 तरह के आभूषणों से सजे होंगे। इन पर बैठे जवान केसरिया साफा, अचकन, ब्रिजेस, सिरपेच कमरबंद, कलंगी लगाए इनकी शोभा बढ़ाएंगे। राजपथ पर निकलने वाले दस्ते में सीमा सुरक्षा बल का बैंड भी होगा।
आपको बता दें कि सीमा सुरक्षा बल के ऊंटों को जोधपुर में प्रशिक्षण दिया जाता है। इस बल के पास हजार से अधिक ऊंट हैं। राजपथ पर निकलने वाले ऊंटों का चयन भी एक बड़ा काम होता है। जिन ऊंटों का प्रशिक्षण करीब पांच वर्ष का होता है उन्हें ही इस परेड में हिस्सा बनाने के लिए आगे भेजा जाता है। इसके बाद ये देखा जाता है कि बैंड की धुनों पर ऊंट किस तरह से कदमताल करते हैं और उनके चलने फिरने, बैठने उठने और गर्दन घुमाने का तरीका कैसा है। इस बल का एक ऊंट करीब 15 वर्ष तक सेवा देता है और उसके बाद उसको रिटायर कर दिया जाता है।