उस देश की सरहद को कोई छू नहीं सकता, जिस देश की सरहद की निगेहबां हैंं आंखें
आज दिन है देश के उन शूरवीरों को याद करने का जिन्होंने हमारे कल के लिए हंसते-हंसते अपना आज कुर्बान कर दिया और वीरगति को प्राप्त हो गए।
नई दिल्ली। भगवत गीता का एक श्लोक है ‘हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्’ यानि 'या तो तू युद्ध में बलिदान देकर स्वर्ग को प्राप्त करेगा अथवा विजयश्री प्राप्त कर पृथवी का राज्य भोगेगा।' शायद इसी श्लोक को प्रेरणा मानकर भारत के उन शूरवीरों ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल की धरती से पीछे खदेड़ दिया था और आज ही के दिन 26 जुलाई 1999 को कारगिल की चोटी पर भारतीय तिरंगा फहराया था। तब से हर साल 26 जुलाई को कारगिल दिवस मनाया जाता है।
आज दिन है देश के उन शूरवीरों को याद करने का जिन्होंने हमारे कल के लिए हंसते-हंसते अपना आज कुर्बान कर दिया और वीरगति को प्राप्त हो गए। आज हम ऐसे ही कुछ शूरवीरों के साहस की कहानी आपको बता रहे हैं।
शहीद मनोहर लाल
हरियाणा में भूना से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित ढाणी डूल्ट के वीर सिपाही मनोहर लाल ने कारगिल युद्ध में जिले से पहले शहीद का गौरव हासिल किया था। हालांकि जिले से चार नौजवान देश की सेवा करते हुए शहीद हुए थे।
रामेश्वर लाल मावलिया के घर 1 जनवरी, 1976 को जन्मे मनोहर लाल ने 19 वर्ष आयु में सेना ज्वाइन कर ली थी। सेना की 18 ग्रिनेडियर बटालियन में देश की सेवा करते हुए पढ़ाई जारी रखी। सेना में अधिकारी बनने के लिए जरूरी टेस्ट पास कर लिया था। मगर लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति से पहले ही कारगिल युद्ध शुरू हो गया।
उस दौरान मनोहर लाल की ड्यूटी कश्मीर में थी। जंग की शुरुआत के साथ ही मनोहर लाल की तैनाती कश्मीर के तोलो¨लग में की गई। वहां पर उन्होंने लगातार सात दिनों तक दुश्मनों से लोहा लिया और दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर किया। लगातार सात दिनों तक युद्ध के दौरान उन्होंने कई दुश्मनों को मार गिराया। पाकिस्तान के बंकर तबाह कर दिए। 13 जून, 1999 को दुश्मनों के साथ आर-पार की लड़ाई चल रही थी। भारतीय सैनिक लगातार आगे बढ़ रहे थे। तभी सामने से दुश्मनों की एक गोली मनोहर को लगी। उसके बाद भी मनोहर लाल दुश्मनों से लगातार मुकाबला करते रहे। उसी दिन शाम को युद्ध करते हुए मनोहर लाल देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।
19 साल की उम्र में देश के लिए शहीद हो गए संजीव
19 वर्ष की आयु में ही देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले कुरुक्षेत्र के गांव कौलापुर के संजीव कुमार आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। गांव कौलापुर में मां पार्वती देवी व पिता रणजीत ¨ के घर में वर्ष 1980 में संजीव कुमार का जन्म हुआ था। बचपन से संजीव कुमार ने भारतीय सेना की बहादुरी किस्से सुन स्वयं भी सेना में भर्ती होने की ठान ली थी। 24 फरवरी, 1998 को संजीव कुमार भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट शामिल हो गया।
पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में संजीव कुमार की द्रास सेक्टर में तैनाती हुई। कई दिनों तक दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए उसने चार घुसपैठियों को मार गिराया। बहादुरी से लड़ते हुए दुश्मन को अपनी जमीन पर आगे बढ़ने नहीं दिया। घायल होने के बावजूद संजीव कुमार ने एक और घुसपैठिये को मार गिराया था। कारगिल युद्ध से करीब एक माह पहले शहीद संजीव अपने गांव कौलापुर आया था। घर में संजीव की शादी की बातें चलने लगी। संजीव कुमार ने मां से कहा कि वह अपने देश की रक्षा के लिए जा रहा है। युद्ध जीतने के बाद ही वह शादी के बारे में सोचेगा। अपनी शादी से पहले वह अपनी बहनों की शादी करेगा। शहीद मां ने बताया कि संजीव को बचपन से ही बंदूक चलाने का शौक था। यह शौक उसे भारतीय सेना में ले गया। पिता रणजीत सिंह ने कहा कि आज भी संजीव की यादें ¨जिंदा हैं।
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