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आज भी भारतीय रणबांकुरों की यादें समेटे है हुसैनीवाला, जहां पाक को मिली थी करारी शिकस्‍त

तीन दिसंबर, 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान हुसैनीवाला पुल ने ही फिरोजपुर को बचाया था। उस समय पाक सेना ने भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहीदी स्थल तक कब्जा कर लिया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 05 Dec 2018 10:40 PM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2018 10:40 PM (IST)
आज भी भारतीय रणबांकुरों की यादें समेटे है हुसैनीवाला, जहां पाक को मिली थी करारी शिकस्‍त
आज भी भारतीय रणबांकुरों की यादें समेटे है हुसैनीवाला, जहां पाक को मिली थी करारी शिकस्‍त

फिरोजपुर [प्रदीप कुमार सिंह]। पूर्वी सीमा पर मुंह की खा रही पाकिस्तानी सेना ने 1971 में भारतीय सेना को पश्चिमी सीमा पर व्यस्त करने के लिए ध्यान भटकाने वाली कार्रवाई करते हुए 3 दिसंबर की शाम हुसैनीवाला बार्डर पर अचानक हमला कर दिया। हुसैनीवाला पुल के माध्यम से फिरोजपुर छावनी पर कब्जा करने की नीयत से तेजी से आगे बढ़ रही पाकिस्तानी सेना को भारतीय सेना के जाबांजों ने हुसैनीवाला पुल का कुछ हिस्सा उड़ाकर उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया था।

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पुल का हिस्सा जिस समय बम से उड़ाया गया उस समय पाकिस्तानी सेना का एक टैंक उसमें फंस गया था। टैंक का आधा हिस्सा पुल से नीचे झूलने लगा था। यह बातें रेलवे से रिटायर्ड गार्ड बाल कृष्ण ने बताई। बाल कृष्ण भारत-पाक बंटवारे के समय पाकिस्तान के गंड़ा सिंह वाले रेलवे स्टेशन से आई रेलगाड़ी के गार्ड थे, जिसे पाक में रोककर कत्लेआम मचा दिया गया था। उन्होंने बताया कि पाक हमले की जानकारी उन्हें व शहरवासियों को शहर में सायरन की आवाज व मुनादी से पता चली।

उन्होंने बताया कि पुल उड़ाए जाने की घटना को देख पाकिस्तानी सेना के दूसरे टैंक व जवान तेजी से पीछे की ओर भागे। पूरी रात्रि भारत व पाकिस्तानी सैनिको के मध्य भारी गोलाबारी हुई। यहीं नहीं अगले छह दिनों तक पाक सैनिकों की ओर से टैंक को हासिल करने की कोशिश में गोलाबारी की गई, परंतु भारतीय सैनिकों ने नाकाम बना दिया। अंतत भारतीय सेना ने पाक टैंक पर कब्जा कर लिया और विजय स्वरूप उसे फिरोजपुर कैंट स्थित बरकी मेमोरियल पर स्थापित किया गया।

1971 के युद्ध में पुल का रहा अहम रोल

तीन दिसंबर, 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान हुसैनीवाला पुल ने ही फिरोजपुर को बचाया था। उस समय पाक सेना ने भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहीदी स्थल तक कब्जा कर लिया था। मेजर कंवलजीत सिंह संधू व मेजर एसपीएस बड़ैच ने इसे बचाने के लिए पटियाला रेजीमेंट के 53 जवानों सहित जान की बाजी लगा दी थी। अंत में सेना ने पुल उड़ाकर पाकिस्तानी सेना को देश में प्रवेश करने से रोका था। उसके बाद यहां लकड़ी का पुल बनाकर हुसैनीवाला सीमा पर जाने का रास्ता तैयार किया गया था। 1973 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने पाकिस्तान के साथ समझौता कर फाजिल्का के 10 गांवों को पाकिस्तान को सौंपकर शहीदी स्थल को पाक के कब्जे से मुक्त करवाया था।

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12 अगस्त को लकड़ी की जगह कंक्रींट का पुल हुआ शुरू 
1971 की लड़ाई के बाद सेना ने सतलुज दरिया पर करीब 40 मीटर के हिस्से पर लकड़ी का पुल बनाकर शहीदों की समाधि स्थल तक का रास्ता बनाया था, जिसकी जगह पर सेना ने चेतक प्रोजेक्ट के तहत 2.48 करोड़ रुपये की लागत से 280 फुट लंबे पुल का निर्माण किया, पुल को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) की ओर से तैयार किया गया, जिसे 12 अगस्त की सुबह देश की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकार्पित किया। अब सेना ने पुल के लकड़ी वाले हिस्से को हटाकर कंक्रीट का पक्का पुल बनाने का काम 2015 में शुरु किया था।

1971 की लड़ाई मेंं प्रयोग हुआ विजयंता टैंक टाउन हाल पार्क की बढ़ा रहा शोभा 
भारत-पाक युद्ध का ऐतिहासिक टैंक 2016 मेजर जनरल वी पिंगले ने टाउन हॉल के बाहर लोकार्पित किया, टैंक को लोकार्पित करते समय पिंगले ने बताया था कि विजंता टैंक भारत का बना पहला टैंक था, और सन 1966 में इसे भारतीय सेना में शामिल किया गया था। चार दशक तक यह टैंक सेना का मुख्य बना रहा और 10 जनवरी 2004 को इस टैंक ने अंतिम बार गोलीबारी का अभ्यास करने के बाद टैंक की सेवाएं फौज ने सदा के लिए खत्म कर दी थी। उन्होंने बताया कि 105 एमएम की गन इससे निशाना लगाने की समर्थता रखती थी और 1971 के युद्ध में इसका खासा योगदान रहा है।


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