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धार्मिक नगरी उज्जैन में महाकाल मंदिर के पास खुदाई, दिखा 1000 साल पुराने मंदिर का ढांचा

धार्मिक नगरी उज्जैन में मौजूदा ज्योतिर्लिंग महाकाल के पास ही में खुदाई चल रही थी। पुरातत्व विभाग की निगरानी में चल रही इस खोदाई में करीब एक हजार साल पुराने मंदिर का ढांचा मिला है। रिपोर्ट के मुताबिक जल्द ही मंदिर का मूलभाग सामने आ सकता है।

By Pooja SinghEdited By: Published: Sat, 26 Jun 2021 01:42 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jun 2021 01:42 PM (IST)
धार्मिक नगरी उज्जैन में महाकाल मंदिर के पास खुदाई, दिखा 1000 साल पुराने मंदिर का ढांचा
धार्मिक नगरी उज्जैन में महाकाल मंदिर के पास खुदाई, दिखा 1000 साल पुराने मंदिर का ढांचा

भोपाल, जेएनएन। मघ्य प्रदेश में स्थित धार्मिक नगरी उज्जैन में मौजूदा ज्योतिर्लिंग महाकाल के पास ही में खुदाई चल रही थी। पुरातत्व विभाग की निगरानी में चल रही इस खोदाई में करीब एक हजार साल पुराने मंदिर का ढांचा मिला है। रिपोर्ट के मुताबिक, जल्द ही मंदिर का मूलभाग सामने आ सकता है। अब तक हुई खुदाई में परमारकालीन मंदिर के पाषाण खंभ, छत का हिस्सा, शिखर आदि के अवशेष यहां से प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही दो हजार साल पुराने शुंग व कुषाण काल में निर्मित मिट्टी के बर्तनों के अवशेष भी मिल चुके हैं।

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खोदोई में मिली इन सब धरोहरों को खुदाई स्थल के समीप सहेजकर रखा गया है। करीब एक पखवाड़े चली खोदाई के बाद शुक्रवार को एक हजार साल पुराने मंदिर का ढांचा दिखाई देने लगा है। उम्मीद है कि अब जल्द ही मंदिर का पूरा मूलभाग सामने आएगा। बता दें कि मध्य प्रदेश शासन व महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा करीब 400 करोड़ रुपये की लागत से महाकाल मंदिर क्षेत्र का उन्नयन व सुंदरीकरण किया जा रहा है।

मंदिर के पास नवनिर्माण के लिए यहा पर खुदाई की जा रही है। इससे पहले दिसंबर, 2020 में यहां एक हजार साल पुराने मंदिर होने के प्रमाण मिले थे। इसकी अनदेखी के चलते पुरासंपदा फिर से जमींदोज होने के कगार पर थी। मामले के सामने आने के बाद मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग के आयुक्त शिवशेखर शुक्ला ने पुराविद् डा. रमेश यादव के नेतृत्व में चार सदस्यीय दल गठित कर पुरासंपदा का निरीक्षण करने के निर्देश दिए थे। इसकी खुदोई के लिए दल ने स्थल का निरीक्षण कर विभाग को विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस पर आयुक्त ने महाकाल मंदिर के गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग की निगरानी में खोदाई कराने का निर्णय लिया था। वहीं शोध अधिकारी डा. ध्रुवेंद्रसिंह जोधा को पुरातात्विक विधि से खुदाई कराने की जिम्मेदारी दी गई थी।


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