हुनर को तराशने में कभी भी आड़े नहीं आता धर्म और जाति
मजहब कोई भी हो, उसका मकसद इंसान को इंसानियत का पाठ पढ़ाना ही है। शिक्षक कोई भी हो, उसका मकसद है उजियारा फैलाना।
नई दिल्ली [जेएनएन]। मजहब कोई भी हो, उसका मकसद इंसान को इंसानियत का पाठ पढ़ाना ही है। शिक्षक कोई भी हो, उसका मकसद है उजियारा फैलाना। न तो मजहब शिक्षा के आड़े आता है और न ही शिक्षा मजहब के। उत्तर प्रदेश और हरियाणा से दो प्रेरक कथाएं।
कूड़ा बीनने वाले मुस्लिम बच्चों को मंदिर में मिल रही बेहतर शिक्षा
हरियाणा के यमुनानगर का साईं मंदिर। जहां अनेक मुस्लिम बच्चे बेहतर शिक्षा हासिल कर भविष्य संवारने में जुटे हैं। भारत की हर गली, हर मुहल्ले में मंदिरों की कमी नहीं। यदि हमारा हर मंदिर यमुनानगर के इस मंदिर सा हो जाए, तो देश में कोई बच्चा शिक्षा से वंचिन न रहे, कोई गरीब न रहे, कोई भूखा न सोए। जिस मंदिर में केवल पूजा का दीया जलता था, वह अब समाज में उजियारा फैला रहा है।
कूड़ा बीनने वाले गरीब मुस्लिम परिवारों के बच्चे अकसर इस मंदिर के आस-पास फिरा करते। मैले-कुचेले। चेहरे पर बेबसी। कांधे पर कूड़े का बोरा। गंदगी से सने हाथों में खाली बोतल, कचरा, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इनके हाथों में आज कलम और किताब है। आंखों में सपने हैं और मन में हौसला। यमुनानगर के औद्योगिक क्षेत्र स्थित साईं सौभाग्य मंदिर एक बड़े बदलाव का प्रतीक बन गया है। अब यहां ऐसे 124 बच्चे निशुल्क पढ़ते हैं। 40 लड़कियों को रोजगारपरक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। भगवान के इस दर में धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं।
यहां मौसीना 10वीं कक्षा के बाद सिलाई सीख रही है। इसी कॉलोनी की शौकीना 10वीं में पढ़ती है। सबीना भी 10वीं में है। अलीशा 8वीं में। नूर मुहम्मद सातवीं में...। शमा अंसारी ब्यूटीशियन का कोर्स कर अपना पार्लर खोल चुकी हैं। यही नहीं, पिछड़े तबके से ताल्लुक रखने वाला रवि 8वीं में है। उसकी बहन आरती 11वीं में। मनीषा सिलाई कोर्स कर रही है...।
मंदिर की प्रबंधन समिति के महासचिव निपुण गर्ग बताते हैं कि 2009 से यह सिलसिला चल रहा है। ये सभी बच्चे गरीब परिवारों से हैं। किसी के माता-पिता मजदूरी करते हैं तो कोई कूड़ा बीनने का काम, लेकिन अब ये लोग अपने बच्चों से भी मजदूरी या कूड़ा बीनने का काम नहीं करवाते बल्कि उन्हें मंदिर में छोड़ जाते हैं। यहां उनके बच्चों को शिक्षा सहित दोपहर का भोजन भी दिया जाता है और शाम का खाना पैक कर घर भेजा जाता है। मंदिर में चल रहे इस स्कूल की प्रिंसिपल मीनू तलूजा बताती हैं कि स्कूल में 12वीं तक पढ़ाई होती है। हर विषय के शिक्षक नियुक्त हैं। कॉपी-किताब भी मंदिर समिति की ओर से ही मुहैया कराए जाते हैं।
मंदिर में मिलता ‘रहमत कार्ड’
हरियाणा के यमुनानगर जिले में स्थित साईं सौभाग्य मंदिर में पढ़ रहे गरीब मुस्लिम परिवारों के बच्चों को शिक्षा, कॉपी-किताब और दो वक्त का खाना तो निशुल्क दिया ही जाता है, परिवार की गरीबी बच्चों की शिक्षा में आड़े न आए इसका भी पूरा ध्यान मंदिर समिति ने रखा है। प्रत्येक बच्चे के परिवार को मंदिर समिति द्वारा ‘रहमत कार्ड’ दिया जाता है। इस कार्ड पर हर महीने पांच किलो आटा, तीन किलो दाल, तीन किलो चावल, एक लीटर खाद्य तेल, नहाने का साबुन, कपड़े धाने का साबुन और पाउडर सहित जरूरत के कुल 11 सामानों की किट निशुल्क दी जाती है। प्रत्येक परिवार को निशुल्क चिकित्सा सेवाएं भी मुहैया कराई जाती हैं।
जरूरतमंद बच्चों के मसीहा बने प्रधानाचार्य अहमद
बदायूं, उत्तर प्रदेश स्थित हाफिज सिद्दीकी इस्लामिया इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य खिजर अहमद ने चिकित्सक पिता से प्रेरणा लेकर गरीबों की मदद करने का सिलसिला शुरू किया था। जो भी जरुरतमंद दिखा उसकी मदद कर कामयाब बनाने के लिए प्रयास किया। वे गरीब बच्चों की फीस खुद ही जमा करते हैं। जरूरत पड़ने पर कॉलेज के शिक्षकों से अतिरिक्त कक्षाएं संचालित करा बच्चों को पढ़वाते हैं। दूरदराज के गरीब बच्चों का कॉलेज में ही रहने का इंतजाम भी कराते हैं।
वर्ष 1998-99 में अहमद के छात्र रहे नितिन रस्तोगी अब अमेरिका में सीनियर साइंटिस्ट हैं। 2002 में छात्र रहे होशियार सिंह इफ्को में अधिकारी हैं। माधव सिंह बलरामपुर में डॉक्टर हैं। बात-बात पर जाति-धर्म का बखेड़ा खड़ा करने वालों के लिए खिजर अहमद मिसाल हैं। बच्चों की मदद करने में कभी जाति-मजहब को नहीं देखा। उन्होंने ज्यादातर हिंदू छात्रों की मदद कर कामयाब बनाया है।
[पोपीन पंवार, यमुनानगर/ऋषिदेव गंगवार, बदायूं]